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#AvniKillingRow: पहले अवनी को ढूंढकर गोली मारी गई, फिर अब मौत की जांच का तमाशा क्यों?

अवनी नहीं रही... बड़े दुख की बात है. सब ने कहा था अवनी बचनी चाहिए थी. लेकिन फिर भी उसे मार दिया गया

Updated On: Nov 08, 2018 04:13 PM IST

Subhesh Sharma

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#AvniKillingRow: पहले अवनी को ढूंढकर गोली मारी गई, फिर अब मौत की जांच का तमाशा क्यों?

अवनी नहीं रही... बड़े दुख की बात है. सब ने कहा था अवनी बचनी चाहिए थी. लेकिन फिर भी उसे मार दिया गया. उसके मरने के बाद जांच बिठाई जा रही है. मेरा सवाल है क्यों... अब क्यों, बहुत देर हो गई, वो हमारे बीच नहीं रही. चली गई वो. उसकी गलती ये थी कि उसने करीब 13 लोगों की जान ली. यकीनन इसकी सजा तो मिलनी चाहिए थी. लेकिन सजा का तरीका गोली मारने की बजाय कुछ और भी हो सकता था. उसे ट्रैंकुलाइज कर बाड़े में रखा जा सकता था. पर अब जब उसे गोली मार दी गई है फिर उसकी मौत के बाद जांच की बात हो रही है. अब ये तमाशा क्यों?

कौन है अवनी

अवनी वही बाघिन है, जिसने महाराष्ट्र के यवतमाल के जंगलों में कम से कम 13 लोगों की जान ली. लेकिन कितने समय में, ये एक बड़ा सवाल है. T1 ने दो साल में अलग-अलग जगह 13 लोगों को अपना शिकार बनाया. उसे अपने दो बच्चों के साथ कई बार देखा गया. लेकिन उस तक पहुंचना आसान नहीं था. अवनी की लोकेशन और उसकी तस्वीरों के लिए कैमरा ट्रैप लगाए गए. विदेशी नस्ल के शिकारी कुत्ते मंगवाए गए, हाथी पर बैठ खोजबीन की गई. यही नहीं वन विभाग के 100 से ज्यादा कर्मियों ने पैदल भी उसे ढूंढने का प्रयास किया. पर अवनी सब को चकमा देकर निकल जाती.

वो देश के 2500 बाघों में से एक थी

केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी तक ने अवनी की मौत पर दुख व्यक्त किया. पर अब क्यों मैडम. अब वो हमारे बीच नहीं है. अवनी (T1) हमारे देश में खुलेआम जंगल में जीवन जीने वाले करीब 2,500 टाइगर्स में से एक थी. उसके मरने के बाद उसके बच्चों का ध्यान कौन रखेगा? उसके बच्चे हमारे-आप जैसे नहीं है. उन्हें शिकार करना सीखना पड़ेगा, अगर जंगल में अपनी दम पर जीना है तो...

इस सब के बीच बार-बार एक सवाल आकर खड़ा हो जाता है कि क्या वाकई अवनी मैनईटर थी? वन विभाग के पास इस बात के ठोस सबूत नहीं थे कि 13 लोगों की मौत के लिए अवनी ही जिम्मेदार थी.

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वन्यजीवन से प्यार करने वाले जेरियल बैनट ने इसे लेकर दो बार कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया था. उन्होंने कहा था कि डीएनए की पहचान नहीं हुई है और साइंटिफिक डेटा भी मौजूद नहीं है. सबूत पैरों के निशान और कैमरा ट्रैप के आधार पर जुटाए जा रहे हैं. इसका ये मतलब नहीं है कि वो आदमखोर है.

मैन ईटर ऑफ चंपावत की कहानी से समझ सकते हैं अवनी का केस

अगर वो मैनईटर होती, तो शायद हर चौथे या पांचवे दिन इंसान को अपना शिकार बनाती. पर अवनी के केस में ऐसा नहीं हुआ. उसने करीब दो साल में 13 लोगों की जान ली. इसे हम एक उदाहरण से समझ सकते हैं. अगर अवनी नरभक्षी थी तो उसने 'मैन ईटर ऑफ चंपावत' के जैसे 436 लोग क्यों नहीं मारे?

आपको बता दें कि 19वीं सदी का माहौल नेपाल और भारत के उत्तराखंड के कुमाऊं के लोगों के लिए बड़ा खौफनाक था. लोग अपने घरों से निकलने में डरते थे. जंगलों में लकड़ियां काटने जाने में डरते थे. हर तरफ माहौल दहशत का था. कुछ लोग तो ये तक मानने लगे थे कि चंपावत गांव पर किसी 'चुड़ैल' का साया पड़ गया है, जो लोगों के खून की प्यासी है.

photo source: wikipedia

photo source: wikipedia

लेकिन लोगों की जान का दुश्मन कोई भूत नहीं बल्कि एक टाइगर था, जिसने 436 लोगों को मौत के घाट उतारा था. हालांकि कहा जाता है कि ये आंकड़ा करीब 500 था. लेकिन मशहूर शिकारी और बाद में बाघों के सबसे बड़े संरक्षक बने जिम कॉर्बेट ने इस बाघिन को मार कर हजारों लोगों को नई जिंदगी दी थी.

अवनी को मारने वाला है कौन?

अवनी को नवाब अली खां बहादुर के पोते असगर अली ने मौत के घाट उतारा है. उनका कहना है कि वो 'खानदानी' लोग हैं. हथियार चलाना और घुड़सवारी करना करना उनके खून में है. ये वही असगर अली हैं, जिन्होंने 2015-16 में बिहार में 250 नीलगाय और मध्यप्रदेश में 15,000 वाइल्ड बोर (जंगली सुअर) को गोली मारी थी. इन्होंने कभी कुछ 'गलत' नहीं किया. जो भी किया सब सरकार और कोर्ट के दिशा निर्देशों के अनुसार किया.

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असगर साहब के हिसाब से इंसानों और जानवरों के बीच बढ़ते विवाद के लिए जानवर जिम्मेदार है, क्योंकि वो इंसान के इलाके में आता है. इंसान तो 'बेचारा' है. क्योंकि भारत में इंसानों की आबादी सवा सौ करोड़ है और वो वोट देता है. लेकिन टाइगर तो आज भी 2200 के आसपास हैं. पर बिचारों को वोट देना नहीं आता. अंगूठा लगाना नहीं आता. क्या पता आता होता तो शायद बच जाते बेचारे...

कॉर्बेट क्या कहते थे

जिम कॉर्बेट ने अपनी मशहूर किताब 'मैन ईटर्स ऑफ कुमाऊं' में टाइगर्स और लेपर्ड्स के साथ में अपने कई किस्सों की कहानी बताई है. कॉर्बेट ने करीब 33 बाघ और तेंदुए मारे. लेकिन इनमें से शायद इक्के-दुक्के ही होंगे, जिन्होंने जान के इंसान को अपना निवाला बनाया हो. कॉर्बेट हमेशा कहते थे, कोई भी बाघ खुद से आदमखोर नहीं होता है, मजबूरी उसे ऐसा करने पर मजबूर करती है.

टाइगर को शहादत कब मिलेगी

अवनी को लेकर आज हम सब सोशल मीडिया पर आवाज उठा रहे हैं, लेकिन उसकी मौक के एक या दो दिन बाद लखीमपुरी खीरी के दुधवा टाइगर रिजर्व में एक बाघिन को ट्रैक्टर से कुचल कर मार दिया जाता है. इस पर लोग क्यों नहीं बोल रहे. कोई भी टाइगर मीडिया की 'नजरों' में मरेगा क्या तभी उसे शहादत मिलेगा? हम सब को समझना होगा कि बाघ है तो जंगल है, जंगल है तो हम हैं, नदियां हैं, पहाड़ हैं, वन्य जीवन है पर जिस दिन बाघ खत्म हो गए उस दिन देश से जंगल खत्म हो जाएंगे.

क्या किया जाए

ऐसे में फैसला हमें करना है कि असगर अली के हाथों में मामला देकर बाघ को मार दिया जाए या फिर उसे मारने से पहले सबके हित में कुछ कदम उठाए जाएं. 1972 में प्रोजेक्ट टाइगर लॉन्च हुआ तब भी 1400 के आसपास टाइगर थे और आज 2018 में भी 2200 के आसपास टाइगर हैं. अब हमारे देश के राष्ट्रीय जानवर की संख्या क्यों नहीं बढ़ पा रही फैसला आपको करना है?

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