सरकार फिलहाल नोएडा में नाइजीरियाई छात्रों पर हुए हमले के नुकसान को कम करने की कोशिश में लगी है. ऐसे में सबक के लिहाज से यह देखना ठीक होगा कि ऑस्ट्रेलिया की सरकार ने वहां भारतीय छात्रों पर हो रहे हमलों से निबटने के लिए क्या उपाय किए.
पढ़ने के लिए ऑस्ट्रेलिया गए भारतीय छात्रों पर तकरीबन एक दशक पहले हिंसक हमले हो रहे थे. भारत में अफ्रीकी छात्रों पर हो रहे हमलों से इसकी बहुत कुछ समानता है. छात्रों पर हो रहे हिंसक हमलों के कारण तकरीबन एक साल तक भारत-आस्ट्रेलिया के संबंधों में खटपट रही. भारतीय छात्रों की हिफाजत के लिए आस्ट्रेलिया की सरकार ने एकमुश्त कदम उठाए तब जाकर कहीं दोनों देश के संबंध सामान्य ढर्रे पर आए.
मोदी सरकार फिलहाल दिल्ली स्थित 43 अफ्रीकी देशों के राजदूतों के बयान से पसोपेश में है. हमलों को विदेशियों के प्रति विद्वेषपूर्ण और नस्ली करार देते हुए इन राजदूतों ने चेतावनी दी है कि वे मामले की अफ्रीकन यूनियन कमीशन में रिपोर्ट करेंगे. साथ ही उनकी कोशिश होगी कि संयुक्त राष्ट्रसंघ का मानवाधिकार आयोग मामले की स्वतंत्र जांच करे.
नाइजीरिया के छात्रों पर ग्रेटर नोएडा में मार्च में दो बार हमले हुए. एक बार भीड़ ने कुछ नाइजीरियाइयों पर यह कहते हुए हमला किया कि उन लोगों ने एक किशोर को मार डाला है. इस घटना के दो दिन बाद दो नाइजीरियाई छात्रों पर एक स्थानीय मॉल में हमला हुआ. इस हमले की कोई साफ वजह नहीं पता चली है. ऐसी भी खबरें हैं कि नाइजीरियाई लोगों के अपार्टमेंट पर धावा बोलने वाली भीड़ आरोप के स्वर में कह रही थी कि ये लोग “आदमखोर” हैं.
अफ्रीकी देशों का कड़ा रुख
अफ्रीकी राजनयिक मिशन का अप्रत्याशित और कड़े शब्दों वाला यह बयान मिशन की ओर से इसके डीन अलेम वोल्डेमेरियम ने जारी किया है. वे इरीट्रिया के राजदूत भी हैं. अफ्रीकी देशों के राजदूतों ने कहा है कि अफ्रीकियों के खिलाफ चले आ रहे अनसुलझे मामलों की भारतीय अधिकारियों ने पर्याप्त निंदा नहीं की है. राजदूतों ने फैसले के अंदाज में कहा है कि भारत सरकार ने हमलों को रोकने के लिए कोई भी 'ठोस, प्रत्यक्ष और पर्याप्त उपाय' नहीं किए हैं.
राजदूतों के बयान को दुर्भाग्यपूर्ण करार देते हुए भारत के विदेश मंत्रालय ने इस दिशा में उठाये गये कदमों का ब्योरा दिया है कि घटना की एफआईआर दर्ज कराई गई है और अफ्रीकी देशों के नागरिकों की हिफाजत और बेहतरी के इंतजाम को मजबूत बनाने के उपाय किए गये हैं. लेकिन विदेश मंत्रालय ने अफ्रीकी नागरिकों पर हो रहे हमले को छिटपुट अपराधों की श्रेणी में ऱखते हुए लिखा है कि 'चंद अपराधियों का यह कृत्य अपराध की अपवादजनक स्थिति है और भारत की मजबूत संस्थाएं इनसे निपटने के लिए पर्याप्त हैं.'
दिल्ली में अफ्रीकी मुल्कों की एक अच्छी-खासी आबादी रहती है. इनमें कुछ छात्र हैं तो कुछ इलाज की जरूरत से आए हैं. कुछ अफ्रीकी नागरिक छोटे-मोटे उद्यमी हैं जबकि कुछ अपनी वीजा की अवधि खत्म हो जाने के बाद भी दिल्ली में रह रहे हैं.
अफ्रीकी मुल्कों के निवासी अक्सर शिकायत करते हैं कि उनके साथ गलियों और सड़कों पर आते-जाते भेदभाव होता है, नस्ली वजहों से बुरा बर्ताव किया जाता है. लेकिन सरकार यह मानने से झिझकती है कि अफ्रीकी मुल्क के लोगों पर होने वाले हमले अपने स्वभाव में नस्ली हैं.
पिछले साल कांगो के एक नागरिक की नई दिल्ली में हत्या हुई. उस वक्त अफ्रीकी मुल्कों के राजदूतों ने धमकी दी कि हम भारत के विदेश मंत्रालय की ओर से किए जा रहे अफ्रीका डे सेलिब्रेशन का बहिष्कार करेंगे. ऐसे में विदेश मंत्रालय को नुकसान से बचने के लिए फौरी तौर पर कदम उठाने पड़े थे.
ऑस्ट्रेलिया के सबक
वीजा की शर्तें आसान होने की वजह से ऑस्ट्रेलिया भारतीय छात्रों के लिए एक पसंदीदा जगह बनकर उभरा लेकिन 2009 में मेलबर्न और अन्य शहरों में भारतीय छात्रों पर हमले हुए. सबसे ज्यादा हमले विक्टोरिया में हुए. यहां की सूबाई सरकार और ऑस्ट्रेलिया की केंद्रीय सरकार ने शुरू-शुरू में हमलों को रोकने के मोर्चे पर सुस्ती दिखाई.
मेलबर्न के पुलिस चीफ ने कहा कि ये अपराध की छिटपुट घटनाएं हैं. उन्होंने इस बात से भी इनकार किया कि ये हमले नस्ली वजहों से किए जा रहे हैं. इस बात पर भारत की मीडिया में बहुत हो-हल्ला मचा. हमले जारी रहे और आखिरकार ऑस्ट्रेलिया की सरकार को मजबूरन कार्रवाई करनी पड़ी.
ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने ढेर सारे उपाय कर बद से बदतर होती जा रही स्थिति में सुधार किया. विदेशी छात्रों की पढ़ाई की ऑस्ट्रेलियाई व्यवस्था में कई किस्म की खामियां थीं. कई भारतीय छात्रों का दाखिला व्यावसायिक पाठ्यक्रमों या फिर ऐसे संस्थानों में हुआ था जिन्हें शिक्षा की दुकान या फिर हद से हद कोचिंग सेंटर कहा जा सकता है. ऐसे ज्यादातर संस्थान अवैध रुप से चल रहे थे. भारतीय छात्रों को रहने-जीने के पैसे जुटाने के लिए देर रात तक काम करना पड़ता था और ये छात्र जिन सस्ती जगहों पर रहते थे वहां पुलिस-गश्त भी खास नहीं थी.
ऑस्ट्रेलिया की सरकार ने अवैध रुप से चल रहे शिक्षा संस्थानों को बंद कर दिया और विदेशी छात्रों की शिकायत दूर करने के उपाय किए. जिन शिक्षा संस्थानों में विदेशी छात्र थे उन्हें निर्देश दिया गया कि दूसरे देशों से पढ़ने आये छात्रों को संस्थान के आस-पास के इलाके में रहने-ठहरने की जगह दिलाने में मदद करें.
भारतीय छात्रों के रिहाइशी इलाके में पुलिस की गश्त को बेहतर बनाया गया. कोशिश हुई कि इंडियन स्टुडेन्ट एसोसिएशन से छात्रों का निरंतर संपर्क बना रहे. इससे छात्रों में अपनी सुरक्षा को लेकर इत्मीनान का भाव पनपा.
पढ़ाई के लिए ऑस्ट्रेलिया जाने की योजना बना रहे छात्रों के लिए भारत में काउंसलिंग (परामर्श) की व्यवस्था की गई. इस दौरान ऑस्ट्रेलिया से भारत में कई मंत्रियों का आना-जाना हुआ. तालमेल भरे प्रयासों से द्विपक्षीय संबंध को फिर से पटरी पर लाने में मदद मिली.
भारत सरकार ने 2015 में हुए इंडिया-अफ्रीका फोरम समिट के बाद से अफ्रीकी देशों में पहुंच बनाने के व्यापक प्रयास किए हैं. ऐसे में भारत आये अफ्रीकी मुल्क के नागरिकों पर हुए हमले को चंद ‘छुटभैये अपराधियों की कारस्तानी’ करार देने भर से अफ्रीकी समुदाय के गुस्से को ठंडा नहीं किया जा सकता. अफ्रीकी मुल्क के राजदूतों के बयान से साफ जाहिर है कि वे सरकार की प्रतिक्रिया से संतुष्ट नहीं हैं. यह धारणा मिटाने की जरुरत है कि भारत सरकार अफ्रीकी नागरिकों की हिफाजत के भरपूर प्रयास नहीं कर रही और इसके लिए सरकार को उपाय ढूंढ़ने होंगे.
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