(नोट: यह लेख पूर्वांचल में इंसेफेलाइटिस से मरते मासूम बच्चों की मौतों पर सीरीज की पहली किस्त है. इस सीरीज में इंसेफेलाइटिस के अलावा हमारी बीमार स्वास्थ्य व्यवस्था की तहकीकात कर रहे हैं अाशुतोष कुमार सिंह)
महान स्वतंत्रता सेनानी एवं पूर्वांचल के गांधी कहे जाने वाले बाबा राघव दास ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उनके नाम से बना मेडिकल कॉलेज कभी जापानी इंसेफेलाइटिस से मरे शिशुओं की भटकती आत्माओं का डेरा होगा.
महाराष्ट्र के पुणे से आकर गोरखनाथ की नगरी में सेवा कार्य का संकल्प लेने वाले बाबा यही चाहते थे कि पूर्वांचल का यह क्षेत्र में स्वास्थ्य एवं शिक्षा का गढ़ बने. यहां पर अन्य राज्यों के लोग भी अपनी समस्या-समाधान के लिए आएं.
लेकिन महात्मा गांधी के इस अनुयायी को यह नहीं पता था कि जिस अगस्त महीने में 7 अगस्त 1972 को अस्पताल में पढ़ने के लिए एमबीबीएस का पहला बैच आया था, जिस अगस्त महीने में गांधी जी ने अंग्रेजों से भारत छोड़ने की अपील की थी और जिस अगस्त महीने में देश आजाद हुआ था, वही अगस्त गोरखपुर परिक्षेत्र में मौत की आंधी बनकर आएगा.
9 अगस्त को जब पूरा भारत भारत छोड़ो आंदोलन की 75वीं वर्षगाठ मना रहा था और अखंड भारत के सपने दिखाए जा रहे थे उस समय पूर्वांचल के गोरखपुर में भारत के भविष्य जीवन-मृत्यु का खेल खेल रहे थे. उनके अभिभावक बीआरडी अस्पताल को इस कोने से उस कोने तक पैदल माप रहे थे.
शिशु वार्ड में घंटे-दो-घंटे में चीख-पुकार की आवाज सुनाई देती. फिर वो सिसकियों में बदल जाती. मुंबई के समुद्र किनारे उठने वाले ज्वार-भाटे जैसा माहौल था. यह सिलसिला अगले एक सप्ताह तक चलता रहा. कई राजनीतिक नेता आए और चले गए. बयानबाजी हुई और आज भी हो रही है. जांच चल रही है, चलेगी भी. कुछ पकड़े जाएंगे. फिर छूट जाएंगे. जैसा आज तक होता आया है.
लेकिन ब्रह्मदेव यादव के ऊपर जो दुख का पहाड़ टूटा है उस पहाड़ से जीवन की राह निकालने वाला कोई दशरथ माझी नहीं दिख रहा है. ब्रह्मदेव यादव के घर इसी साल अगस्त की 3 तारीख को जुड़वा बच्चों का जन्म हुआ था. वह भी आठ वर्ष के बाद. ओझा-गुनी, डाक्टर, वैद्य, देवता-मुनी सभी से गुहार लगाने के बाद खुशियों की बौछार हुई थी.
सावन के महीने में आई इन खुशियों से ब्रह्मदेव का परिवार खुशियों से लहलहा उठा था. लेकिन यह खुशी 6 दिन भी नहीं रह पाई. इसी महीने के 9 तारीख को जुड़वा बच्चों में एक बच्चे की मौत हो गई और दूसरे की ठीक अगले दिन ऑक्सीजन की कमी के कारण. 24 घंटों के अंदर ब्रह्मदेव यादव के परिवार का सबकुछ लूट गया.
पूरा देश प्रधानमंत्री के आह्वान पर भुखमरी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, गरीबी एवं अस्वच्छता को देश से भगाने का संकल्प ले रहा था वहीं दूसरी ओर ब्रह्मदेव के परिवार की खुशहाली को गरीबी और भ्रष्टाचार ने निगल लिया. यहां ब्रह्मदेव यादव तो एक प्रतीक मात्र हैं. ऐसे हजारों ब्रह्मदेवों के घर में चूल्हे नहीं जल रहे हैं और अस्पताल कहने को सबकी सेवा करने में जुटा है!
बाल संस्थान खुद बीमार है
ध्यान से देखिए ऊपर दिए गए इस तस्वीर को. इसकी ऊंची इमारतों को. इसके ईंट-बालू को. देखने में आपको सिर्फ कंकरीट का मलबा लगेंगे लेकिन आपको नहीं पता कि यह बाल संस्थान का भवन है. जो बन रहा है. जी हां सरकारी फाइलों में यही कहा जा रहा है कि यह बन रहा है. कब तक सच में बन जाएगा, इसकी खोज-खबर लेने वाला कोई नहीं है.
इस बाल संस्थान में 500 बेड बनेंगे. यह 14 मंजिलों की एक भव्य इमारत बनेगी. उसके बाद इसमें शिशुओं का इलाज करने वाले धरती के भगवान आएंगे और फिर गोरखपुर परिक्षेत्र में मर रहे शिशुओं की मौत के आंकड़ों को कम किया जा सकेगा. जी हां, यह सबकुछ भविष्य में होगा.
वर्तमान में सत्य यही है कि 2012 में अखिलेश सरकार ने इस प्रोजेक्ट को पास किया था. और इसे अबतक बन जाना चाहिए था. लेकिन 14 में सिर्फ 8 मंजिल ही बनाई जा सकी है. और इसे बनने में 274 करोड़ रुपए की लागत अनुमानित है. जिसे सरकार ने पास कर दिया है. देखना यह है कि यह बाल संस्थान कब तक बनकर तैयार हो पाता है?
नवंबर 1969 में इस अस्पताल का शिलान्यास करने वाले महान स्वतंत्रता सेनानी एवं यूपी के मुख्यमंत्री स्व. चन्द्रभानु गुप्ता जी अथवा बाबा राघव दास की आत्मा चाहे जितना विलाप कर ले लेकिन जबतक सही अर्थों में व्यवस्थागत भ्रष्टाचार खत्म नहीं होगा तब तक तो शिशुओं के पारिवारीजनों की सिसकियां ही बीआरडी में सुनाई पड़ती रहेंगी.
(लेखक स्वास्थ्य कार्यकर्ता हैं. हाल ही में स्वस्थ भारत अभियान के तहत 'स्वस्थ बालिका-स्वस्थ समाज' का संदेश देने के लिए 21000 किमी की भारत यात्रा कर लौटे हैं. )
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