आसाराम (असुमल सिरुमलानी) जैसे बलात्कारी को किस तरह दशकों तक 'बापू' की तरह पवित्र मानकर उसका सम्मान किया जाता रहा? हम किस तरह से इतने भोले-भाले और नावाकिफ हो सकते हैं कि बिना किसी तरह का सवाल पूछे और किसी तरह का विचार किए किसी को बेहद आसानी के साथ 'बापू' या 'मां' की तरह स्वीकार कर लें? हमारे दिमाग में कौन सी ऐसी चीज है, जो भक्ति के बाजार में इन अवैध माई-बाप को फलन-फूलने का मौका मुहैया कराती है?
इतने नादान क्यों हैं हम?
इसकी वजहों को लेकर कई तरह की व्याख्याएं हैं. हालांकि, इसका सीधा जवाब यह है कि हम ऐसे किसी भी शख्स से प्रभावित होने के लिए मजबूर हैं, जो लंबा चोला पहनता हो और अपने सिंहासन से उपदेश देता हो. हमारे लिए भगवा/सफेद रंग पवित्र है और प्रवचन (चाहे वह बकवास क्यों नहीं हो) को धार्मिक सिद्धांतों का ब्रह्म वाक्य माना जाता है.
एक बार जब हम समर्थकों और अनुयायियों की फौज के साथ पवित्र रंगों और इस तरह के कपड़ों में किसी को देखते हैं, तो तर्क के आधार पर सोचने की हमारी क्षमता गायब हो जाती है और हम मूर्ख में तब्दील हो जाते हैं. हमारी शख्सियत ऐसे बेवकूफ शख्स में बदल जाती है, जो किसी प्रपंची शख्स के खतरनाक फंदे में फंसता दिख रहा हो.
हमारे देश के सबसे पुराने महाकाव्यों में से एक ग्रंथ हमें इस बात की याद दिलाता है कि दानव अक्सर संत का रूप धारण कर ही छलने के लिए लोगों के पास पहुंचते हैं. रामायण में रावण द्वारा सीता का अपहरण कर लिया जाता है.
सीता का अपहरण करने के लिए रावण साधु का रूप धारण कर भिक्षा की मांग करते हुए राम और सीता की कुटिया तक पहुंचता है. रावण के छद्म रूप के कारण सीता की बुद्धि भ्रष्ट हो गई और वह लक्ष्मण रेखा पार कर गईं. जाहिर तौर पर सीता को सहज तरीके से किसी पर भी विश्वास करने के स्वभाव की भारी कीमत चुकानी पड़ी. हम लोगों ने यह कहानी कई बार सुनी है. इस कहानी को कई बार सुनने के बावजूद हम कहानी से सबक सीखने में नाकाम रहे हैं.
कई बाबा हुए बेनकाब
पिछले कुछ साल में कई बाबा बेनकाब हुए हैं और उनकी काली करतूतें सामने आई हैं. इनमें से कई ने खुद को ही भगवान मानते हुए देवत्व का चोला ओढ़ रखा था और बाद में पूरी तरह से उनकी कलई खुल गई.
इसके बावजूद अब भी दर्जनों (या शायद इससे और ज्यादा) की संख्या में बाबाओं का धंधा फल-फूल रहा है. कई और कथित बाबा और संत जनता को नैतिकता का पाठ पढ़ाने की आड़ में अपने अनैतिक कामों को अंजाम देने के लिए तैयार हैं.
हम आसाराम, राम-रहीम, रामपाल, राधे, ओशो आदि से जुड़े मामलों से कोई सबक नहीं सीखते हैं. इसके साथ ही, भोले-भोले भारतीयों की अवैध 'मां' और 'बापू' को वैधता प्रदान करने का सिलसिला जारी रहता है.
काफी पढ़े-लिखे और रसूख वाले भी फर्जी बाबाओं के असर से नहीं हैं अछूते भक्ति के नाम पर हो रहे फर्जीवाड़े और कुकर्म का सबसे दुखद पहलू यह है कि सिर्फ कम पढ़े-लिखे या पूरी तरह से अशिक्षित और गरीब लोग ही इस फंदे में नहीं फंसते हैं. इन फर्जी साधुओं/साध्वियों के समर्थक और भक्तों में बड़ी संख्या में सेलिब्रिटी, नेता और अमीर व रसूख वाले लोग शामिल हैं.
समाजिक और आर्थिक रुतबे के लिहाज से बड़े माने जाने वाले ये लोग इन फर्जी बाबाओं के संत और साधु होने पर मुहर लगाने जैसा काम करते हैं. मैंने इन फर्जी बाबाओं की खातिर रिटायर्ड नौकरशाहों, यूनिवर्सिटी प्रोफेसरों और पुलिस अधिकारियों का दयनीय रवैया देखा है.
ऐसे अफसर, प्रोफेसर और पुलिस अधिकारी बाबा की तरफ से इस्तेमाल किए गए पानी की एक बूंद पीने, उनके चरण धोने और प्लेट में इन बाबाओं द्वारा छोड़ा गया जूठन खाने के लिए भगदड़ मचाते हुए अफरातफरी का माहौल बना देते हैं. किसी पर (ऐसे बाबाओं और साधुओं समेत) पर बिना सोचे समझे सहज रूप से विश्वास करने की बीमारी पूरे भारत में है. बाबाओं और साधुओं का भक्त बनने के मामले में कभी-कभी तो स्थिति बद से बदतर हो जाती है. सनसनीखेज खुलासे के एक मामले में ओशो की शिष्या आनंद शीला ने अपनी किताब में बताया है कि उनकी (ओशो की) कुछ शिष्याएं सिर्फ इसलिए वेश्या बन गईं कि वे आश्रम में रह सकें और अपना खर्च जुटाने के लिए पर्याप्त रकम की कमाई कर सकें.
इस बीमारी का क्या है इलाज?
यहां अहम सवाल है कि बडे़ पैमाने पर फैली इस बीमारी पर किस तरह से काबू पाया जा सकता है. इसका जवाब यह है कि फर्जी बाबा-देवदूत और सन्यासिनें अपनी पोंजी स्कीम चलान में सक्षम नहीं हों, इसे सुनिश्चित करने के लिए भारत में सख्त नियमों की जरूरत है.
भक्ति के मार्केटप्लेस में एक फॉलोअर की मुलाकात दूसरे फॉलोअर से हो जाती है और इस तरह से मल्टी लेवल (बहुस्तरीय) चेन की तरह यह मामला बढ़ता रहता है. जिस तरह से फर्जी डॉक्टरों, फर्जीवाड़े से जुड़े अन्य कामों में संलिप्त लोगों के लिए कानून है, उसी तरह से हमें इन कथित देवदूतों द्वारा आम लोगों को ठगे जाने से रोकने के लिए असरदार नियम-कानून की जरूरत है.
दरअसल, जितना मुश्किल यह जान पड़ता है, उतना मुश्किल नहीं है. धार्मिक प्रवचन देने का काम करने वाले और ऐसे बाबा आम लोगों से जुड़े होते हैं. इन गतिविधियों के एवज में प्रवचन का काम करने वाले ज्यादातर साधु और खुद को संत बताने वाले पैसा कमाते हैं और चल-अचल संपत्तियां इकट्ठा करते हैं. ऐसे में बाबागीरी को कारोबार या किसी अन्य पेशे की तरह मानना बेहतर आइडिया है. लिहाजा, इस संबंध में कानून और नियमन के जरिए काम करना बेहतर होगा.
बाबागीरी बेहतर बिजनेस
पहली बात यह है कि बाबा/बापू/मां के लिए अपना बिजनेस चलाने की खातिर लाइसेंस लेना जरूरी किया जाना चाहिए. व्यापक स्तर पर बैकग्राउंड की जांच-पड़ताल, संबंधित शख्स के चरित्र के आकलन, मनोवैज्ञानिक मुल्यांकन और अन्य जरूरी शर्तों के पूरा होने के बाद ही उन्हें शिक्षा देने, प्रवचन देने और अनुयायी बनाने की इजाजत दी जानी चाहिए. इस संबंध में बनाए जाने वाले कानून के दायरे से बाहर काम करने वाले किसी भी बाबा या अन्य शख्स को फर्जी डॉक्टर की तरह जेल भेज दिया जाना चाहिए.
मिसाल के तौर पर असुमल सिरुमलानी के मामले की बात करते हैं. नाबालिग लड़की से रेप के मामले में पकड़े जाने से पहले भी इस शख्स के संदेहास्पद व विवादास्पद अतीत को लेकर कई सवाल थे. यहां तक कि आसाराम के अपराध जगत से भी जुड़े रहने की अफवाह भी उठी थी.
'बापू' बनने से पहले इस शख्स के अतीत के 'काले अध्यायों' को हटाकर और इतिहास को साफ-सुथरा कर उसकी छवि को सकारात्मक तरीके से बदलते हुए नया रूप दिया गया. अगर किसी ने इस शख्स के बैकग्राउंड की जांच-पड़ताल की होती, उसके इतिहास के पन्ने पलटे होते, तो असमुल लोगों के लिए खतरनाक पाया जाता.
हालांकि, विवादास्पद अतीत के साथ ही भी इस शख्स को 'बापू' बनने दिया गया. इस तरह से यह शख्स भक्ति, बिजनेस और ब्लैकमेल के खतरनाक कॉकटेल के जरिये बेरोकटोक लोगों की जिंदगी बर्बाद करता रहा. भारत में फर्जी बाबाओं और माताओं के फलने-फूलने और आगे बढ़ने के लिए परिस्थितियां बेहद अनुकूल हैं. यहां बड़े पैमाने पर निरक्षरता है.
शिक्षा और तर्कपूर्ण सोच है जरूरी
इसके अलावा, शिक्षा के बावजूद तर्कपूर्ण सोच का अभाव है और अंधविश्वास और अंधी आस्था भी है. साथ ही, लालच, असुरक्षा और कड़ी प्रतिस्पर्धा आदि भी इसके लिए जिम्मेदार हैं. हमें बचपन से बताया जाता है कि भगवान की पूजा करने, तीर्थयात्रा पर जाने आदे से हमारे पाप धुल सकते हैं.
कई धूर्त, बेईमान और अपराधी लोग इसका फायदा उठाने को इच्छुक रहते हैं और खुद को भगवान के एजेंट की तरह पेश कर हमारे पापों को धोने, चमत्कार को अंजाम देने और हमारी समस्याएं को सुलझने की क्षमता रखने दावा करते हैं.
संत के छद्म रूप में हमारे पास आने वाले हर शैतान के फंदे से बचने में सिर्फ सख्त कानून कारगर हो सकते हैं. भारत के लोगों को ऐसे फर्जी 'बापू' और 'मांओं' से बचाने के लिए सरकार को सख्त कानून, सजा और जुर्माने के रूप में लक्ष्मण रेखा खींचने की जरूरत है.
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