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मोदी सरकार के 4 साल: कैसे बड़े प्रोजेक्ट्स को ब्यूरोक्रेसी ने लटकाया?

अगले महीने एनडीए सरकार के चार साल पूरे होने जा रहे हैं. चार साल के इस सफर को सरकार के विभिन्न मंत्रालय रिपोर्ट कार्ड के रूप में लोगों के सामने पेश करने वाले हैं.

Updated On: Apr 24, 2018 04:54 PM IST

Yatish Yadav

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मोदी सरकार के 4 साल: कैसे बड़े प्रोजेक्ट्स को ब्यूरोक्रेसी ने लटकाया?

अगले महीने एनडीए सरकार के चार साल पूरे होने जा रहे हैं. चार साल के इस सफर को सरकार के विभिन्न मंत्रालय रिपोर्ट कार्ड के रूप में लोगों के सामने पेश करने वाले हैं. इसके लिए सभी मंत्रालय इन चार सालों में अपने द्वारा किए गए कार्यों और उपलब्धियों का ब्यौरा देने के लिए एक बुकलेट छपवाने जा रहे हैं. इस बुकलेट में दिए गए विवरण से पता चलेगा कि क्या उनके द्वारा किए गए कार्य और 2014 के चुनाव प्रचार के दौरान किए गए वादे लोगों की उम्मीदों पर कितने खरे उतरे और वो शासन के कामकाज को बदलने में कितने सफल हो सके.

पिछले 47 महीनों के एनडीए शासन में सरकार ने कई ऐतिहासिक फैसले लिए जिसमें नोटबंदी, मोदी केयर की शुरुआत और आजादी के बाद का सबसे बड़ा टैक्स सुधार जीएसटी लागू करना शामिल है. लेकिन शासन के ऊपरी स्तर पर बैठे लोगों में बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजक्ट को लागू करने में आ रही समस्या को लेकर चिंता बढ़ गई है. इसके पीछे सबसे बड़ी समस्या है नौकरशाही की बीच का आपसी तालमेल, जिसके अभाव में योजना उस गति से आगे बढ़ ही नहीं पाती जिसकी उम्मीद होती है.

इसे कम करने के लिए पीएम नरेंद्र मोदी ने खुद पहल की और एक ऐसी व्यवस्था बनाने की कोशिश की जिससे कि योजनाओं पर नजर रखी जा सके. लेकिन इसके बावजूद भारी भरकम अंतर मंत्रालय समुह और स्टेकहोल्डर्स के साथ क्लियरेंस की समस्या जारी रहने से जमीन पर काम में कमी आ गई है. सिविल सर्विसेज डे के दिन 21 अप्रैल को अपने संबोधन में पीएम मोदी ने इशारा करते हुए व्यंग्य किया कि सिस्टम को बदलने की जरूरत है क्योंकि अभी भी फाइलें 32 चक्कर लगाने के बाद भी मोक्ष प्राप्त करने में सफल नहीं हो पाती हैं.

सरकार की नवीनतम रिपोर्ट के मुताबिक 150 करोड़ के ऊपर वाले परमाणु ऊर्जा, रेलवे और भारी उद्योग की परियोजनाओं में विलंब हो रही है. परमाणु ऊर्जा विभाग के चारों बड़े प्रोजेक्ट यूपीए सरकार की पॉलिसी पैरालाइसिस से लटके हुए थे. यहां तक कि भावीनी में फास्ट ब्रीडर रिएक्टर की स्थापना के लिए अटर बिहारी वाजपेयी सरकार ने 2003 सितंबर में मंजूरी दी थी. इसके प्रोडक्ट की अनुमानित लागत 3492 करोड़ रुपए थी और ये सितंबर 2010 तक ऑपरेशनल हो जाना चाहिए था. लेकिन न केवल इस प्रॉजेक्ट ने अपनी डेडलाइन मिस की बल्कि इसका खर्च भी काफी बढ़ गया.

Narendra Modi and Boris Johnson in London

अभी तक इस पर 5566 करोड़ रुपए खर्च किए जा चुके हैं. सरकार का अनुमान है कि योजना इस साल जून तक संपन्न हो जाएगी और इसका खर्च बढ़ कर 6100 करोड़ रुपए हो जाएगा. उसी तरह से काकड़ापार और राजस्थान एटॉमिक पावर प्रोजेक्ट को अक्टूबर 2009 में मंजूरी मिली. इन दोनों परियोजनाओं की वास्तविक डेडलाइन दिसंबर 2015 और दिसंबर 2016 निर्धारित की गई थी लेकिन ये दोनों डेडलाइन मिस हो चुकी हैं और अब ये 2019 और 2020 से पहले शुरू नहीं हो पाएंगे.

उसी तरह से मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने मार्च 2013 में कुडानुकुलम न्यूक्लियर पावर प्रोजेक्ट को मंजूर किया था. इसे 2020 नवंबर तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया था लेकिन अभी इस परियोजना की जो गति है उसको देखते हुए खुद सरकार का अनुमान है कि 2023 के अखिर से पहले ये समाप्त नहीं हो पाएगा. . सरकार की रिपोर्ट कहती है कि इन चार न्यूक्लियर पावर प्रोजेक्टस के पूरा होने में हो रही देरी से परियोजनाओं का खर्च 2608 करोड़ रुपया बढ़ गया है. रिपोर्ट के अनुसार 264 प्रोजेक्ट में देरी हुई है,केवल 14 अपने निर्धारित समय से आगे चल रहे हैं और 308 प्रोजेक्ट अपने समय से चल रहे हैं. इस साल फरवरी में जारी रिपोर्ट के मुताबिक देश में 603 ऐसे प्रोजेक्टस भी चल रहे हैं जिनकी समाप्ति की कोई समय सीमा ही नहीं निर्धारित की गई है.

रिपोर्ट के मुताबिक छत्तीसगढ़ का एक पावर प्रोजेक्ट, मध्य प्रदेश में शहरी विकास मंत्रालय का एक प्रोजेक्ट और रेलवे की तीन परियोजनाओं जिसमें, सूरतपुरा-हनुमानगढ़-श्रीगंगानगर गेज परिवर्तन, रत्नागढ़-बीकानेर गेज परिवर्तन और रोहतक-भिवानी में रेल लाइन का दोहरीकरण का काम पूरा हो गया है. लेकिन 50 मेगावॉट का विंग पावर प्रोजेक्ट जिसे 310 करोड़ रुपए के लागत से नवंबर 2011 तक बन जाना चाहिए था वो समय से काफी पीछे चल रहा है. शहरी विकास मंत्रालय 38 विशाल परियोजनाओं पर काम कर रहा है और इनमें से कुछ तो यूपीए 1 के शासनकाल में मंजूर किए गए थे. सरकार कि रिपोर्ट बताती है कि इन परियोजनाओं में 72 महीनों तक का यानि 6 साल तक का विलंब है.

पिछले साल नवंबर में सरकार ने कुल 1283 उन परियोजनाओं की समीक्षा की जिनपर नजर रखी जा रही थी. इनमें से 302 परियोजनाएं अपने निर्धारित समय से काफी देर चल रही थी और खास बात ये थी कि इन परियोजनाओं का खर्च 1.45 लाख करोड़ रुपए बढ़ चुका था. लेकिन इन चिंताओं के बीच दूरसंचार का क्षेत्र सरकार के लिए राहत लेकर आया है. इस क्षेत्र की 9 में से 7 बड़ी परियोजनाएं 2018 में संपन्न हो जाएंगी.

सरकार के मुताबिक प्रत्येक मंत्रालय में एक स्टैंडिंग कमेटी बनाई गई थी जिसका काम था समय और खर्चे में बढ़ोत्तरी की जिम्मेदारी तय करने की. लेकिन देखा गया कि पर्यावरणीय अनुमति,वैधानिक अनुमति,भूमि अधिग्रहण और सुरक्षा की अनुमति के अभाव में ये मुश्किल था कि जमीन पर परियोजना की देरी के लिए बाबुओं को जिम्मेदार ठहराया जा सके.

पिछले साल दिसंबर में सरकार ने कहा कि वो 380 मेगा प्रोजेक्ट्स जिनकी लागत 1000 करोड़ से ज्यादा है, उसकी निगरानी कर रहा है. इन परियोजनाओं के पूरा होने की अनुमानित लागत 11.96 लाख करोड़ रुपए थी लेकिन अब इसके पूरा होने की अनुमानित लागत बढ़कर 13.62 लाख करोड़ रुपए हो गई है. यानि कि कुल 1.66 लाख करोड़ रुपए ज्यादा. कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्री विजय गोयल ने इस साल जनवरी में लोकसभा में परियोजनाओं के देरी होने की और भी कई कारण गिनाए.

vijay goel

गोयल ने संसद में बताया कि परियोजनाओं में समय और लागत में बढ़ोत्तरी प्रोजेक्ट विशेष से संबंधित है और उसके पीछे कई तकनीकी,वित्तीय और प्रशासनिक कारण हैं. गोयल के अनुसार अलग-अलग प्रोजेक्ट के अनुसार अलग-अलग आंकड़े हैं. गोयल के अनुसार परियोजनाओं की लागत बढ़ने की मुख्य वजह उसके वास्तविक लागत को कम आंकना, विदेशी मुद्रा की दरों में बदलाव, पर्यावरण संरक्षण और पुनर्वास में अधिक खर्च, भूमि अधिग्रहण में अधिक मुआवजे की दर और प्रशिक्षित कामगारों की कमी है.

सरकार ने 2016 में 8 क्षेत्रों में सचिवों के 8 ग्रुप का निर्माण किया था. ये थे –ट्रांसपोर्ट और कम्यूनिकेशन,एनर्जी और एनवायरमेंट,हेल्थ एंड सेनिटेशन, एजुकेशन और सोशल डेवलपमेंट, कॉमर्स और इंडस्ट्री, साइंस और टेक्नोलॉजी, गवर्नेंस और क्राइसिस मैनेजमेंट. इसका मकसद था कि ये लोग मिल कर एक समयबद्ध कार्य योजना बनाएं जो कि विभागों और मंत्रालयों की बड़ी योजनाओं को समय पर पूरा करने में सहायता करें.

सरकार को लगता है कि प्रोजेक्ट अप्रेजल सख्त होना चाहिए इसके अलावा मंत्रालयों में संशोधित कास्ट कमिटी का गठन हो जो कि समय और लागत पर नजर रखे और देरी होने पर इसकी जिम्मेदारी तय करे. इसके अलावा इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्टस की लगातार समीक्षा संबंधित प्रशासनिक मंत्रालयों के द्वारा की जाए और राज्यों में सेंट्रल सेक्टर प्रोजेक्टस कोऑर्डिनेशन कमेटी (CSPCCs) का गठन संबंधित चीफ सेक्रेटरी के अंतर्गत हो जो कि इन परियोजानाओं के पूरा होने में आ रही समस्याओं को दूर करे और महत्वपूर्ण प्रोजेक्टस के पूरा होने में गति प्रदान करे.

सरकार के पास प्रोजेक्ट मॉनिटरिंग ग्रुप भी है (PMG) जिसका काम मुख्य रूप से बड़ी परियोजनाओं के पूरा होने में आ रहे अवरोधों को अंतर मंत्रालय मीटिंग के द्वारा समाप्त करना है. इस ग्रुप ने सुनिश्चित किया कि 273 में से कम से कम 197 मेगा पावर प्रोजेक्ट्स में आ रही बाधाएं दूर हो जाए और इसके लिए इन्होंने कई मंत्रालयों के साथ मीटिंग करके कई समस्याओं का निदान निकाला.

जनवरी 2018 की एक रिपोर्ट के मुताबिक 210 परियोजनाएं 515 क्लियरेंस मामलों के इतंजार में अटकी हुई हैं जिसकी कुल अनुमानित लागत 9.34 लाख करोड़ रुपए है. सरकार ने प्रोजेक्ट्स को गति देने के लिए तकनीक का भी सहारा लेना शुरू किया है. एक परिजयोजना के शुरू होने में केंद्र के द्वारा 75 महत्वपूर्ण स्वीकृति की आवश्यकता होती है ऐसे में सरकार ने 67 सेवाओं को एकीकृत रुप से मंजूरी देने के लिए एक ऑनलाइन प्लेटफार्म का निर्माण किया है जिसके माध्यम से न केवल मंजूरी मिलने में हो रही देरी का पता चल सकेगा बल्कि उसके बाद संबंधित अधिकारियों तक इसको पहुंचा कर इसे तुरंत दुरुस्त भी कर दिया जाएगा. ग्रुप ऑफ सेक्रेटरीज ने महसूस किया है कि सरकार को योजना की स्वीकृति सोच समझ कर देनी चाहिए जिसमें विषय, समय, दिशानिर्देश, व्यय इत्यादि का ख्याल रखा जाए. इन सभी पैरामीटर्स पर खरा उतरने वाले राज्यों को मंत्रालयों की सलाह के साथ अपनी योजनाओं को तैयार करने की हक मिलना चाहिए.

बजट प्रक्रिया,चुनौती और प्राथमिकता में सुधार लाने के लिए हाल ही में आईएमएफ के साउथ एशिया ट्रेनिंग एंड टेक्निकल असिस्टेंस सेंटर (SARTTAC) ने सामाजिक क्षेत्र के महत्वपूर्ण मंत्रालयों के साथ एक मीटिंग की जिसमें अंतर्राष्ट्रीय स्तर की कार्यप्रणाली को लागू करने पर चर्चा की. फ़र्स्टपोस्ट को मिले दस्तावेज के मुताबिक SARTTAC के अधिकारियों ने डिपार्टमेंट ऑफ इकोनॉमिक अफेयर्स के तीन मीटिंग 21,22 फरवरी और 1 मार्च 2018 को की. इस बैठक में सुधार की चुनौतियों पर गंभीर चिंतन हुआ. SARTTAC टीम के दस्तावेजों से ये भी पता चला कि उन्होंने आवास और शहरी विकास मंत्रालय, ग्रामीण विकास और स्वास्थ्य मंत्रालय के साथ भी चर्चा की.

नागरिक आधारित शासन को शाबाशी

केंद्रीय मंत्रालयों ने पिछले सात सालों के दौरान जन शिकायतों के निवारण में होने वाली समस्याओं से पार पाया है. 9 फरवरी 2018 की मीटिंग के फाइनल किए नवीनतम रिपोर्ट के मुताबिक लोगों की अधिकतर शिकायतें उन्हें सेवा के निर्धारित समय पर नहीं मिलने की वजह से थी.

ऐसे में जल संसाधन मंत्रालय के पास आने वाली शिकायतों के निवारण का प्रतिशत 98.55 फीसदी था. वहां पर 200 सौ शिकायतों के मामले पेंडिंग हैं जिसमें से चार शिकायतों एक साल से ज्यादा से लंबित हैं और सात शिकायतें 6-12 महीने पुराने. उसी तरह से अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय के द्वारा निपटारा किए गए शिकायतों का प्रतिशत 93.47 फीसदी था.

यहां 341 शिकायतों लंबित हैं जिसमें से 21 एक साल से ज्यादा से पेंडिंग हैं जबकि 49 शिकायतें 6-12 महीने से पेंडिंग हैं. इस मंत्रालय में मीटिंग के बाद पता चला कि अधिकतर शिकायतें स्कॉलरशिप से जुड़ी हुई हैं साथ ही एक साल से ज्यादा लंबित शिकायतों की संख्या ज्यादा है. उसी तरह से आवास मंत्रालय में शिकायतों के निपटारे की दर 98.18 फीसदी थी. यहां पर 764 शिकायतें पेंडिंग थी जिसमें से 13 शिकायतें एक साल से पुरानी और 39 शिकायतें 6-12 महीने पुरानी थी.

सरदार पटेल भवन में हुई मीटिंग में ये स्पष्ट कर दिया गया कि मंत्रालय अपने यहां आने वाली शिकायतों की उच्च स्तर पर समय समय पर समीक्षा करें और उन शिकायतों का अधिक से अधिक 2 महीने के भीतर निपटारा कर दें. इसके अलावा मंत्रालयों को ये भी निर्देशित किया गया कि वो शिकायतों केवल अपने से जुड़े निचले अधिकारियों और फील्ड ऑफिस में भेजकर खानापूर्ति करके बंद न करें बल्कि शिकायत बंद करते समय नागरिक को उचित जवाब देकर और पूरी तरह से संतुष्ट करके ही उसे बंद करें.

पीएम मोदी लागातर कहते रहे हैं कि 'मिनीमम गवर्नमेंट मैक्सिमम गवर्नेंस' और ये सरकार के सबसे ज्यादा ध्यान देने वाले सुधारों में से एक है. इसके अंतर्गत कई बेकार कानूनी बाधाओं को समाप्त किया गया है और तकनीक का इस्तेमाल करके पारदर्शिता में इजाफा किया गया है. सरकार उन सभी 18 विषयों पर ध्यान देने में सफल हुई है जिसके सुधार की बात कही जा रही थी.

नई योजनाओं में सरकार का एयर सर्विस सेक्टर से निकलना शामिल है जिसके लिए सरकार ने एयर इंडिया में से अपनी 76 फीसदी हिस्सेदारी को बेचने का फैसला किया है. फ़र्स्टपोस्ट के द्वारा सामाजिक क्षेत्र में सरकार के द्वारा किए जा रहे कार्यों की समीक्षा के दौरान पता चला कि प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण का क्रियान्वयन शानदार तरीके से हो रहा है.

राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों ने 74.48 लाख घरों के निर्माण की स्वीकृति दी है और 31 मार्च 2018 तक 33 लाख बन भी गए. सरकार की योजना है कि 2022 तक 2.95 करोड़ घरों का निर्माण किया जाए. वहीं प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के दूसरे चरण की जहां तक बात है वहां पर सरकार ने अपने द्वारा तय किए गए 50 हजार किलोमीटर के टारगेट में से 32 हजार किलोमीटर लंबाई की सड़क का निर्माण कर दिया है.

वहीं 1.63 लाख सड़कों से कटी बस्तियों में से इस साल फरवरी तक 1.30 लाख बस्तियां जुड़ गयी है. दीनदयाल अंत्योदय योजना के अंतर्गत,जिसका मुख्य लक्ष्य ग्रामीण गरीबों को सशक्त बनाना है, वहां पर 2017-18 के वित्तीय वर्ष में कुल 6.81 लाख सेल्फ हेल्प ग्रुप को वित्तीय मदद की गई. ये आंकड़े वर्ष 2016-17 के आंकड़ों से ज्यादा है जब देश में 5.7 लाख सेल्फ हेल्प ग्रुप की मदद की गई थी.

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