दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की कार चोरी की घटना हो या यूक्रेन के एंबेस्डर के मोबाइल चोरी की, दोनों ही केस पुलिस ने दो दिन के अंदर निपटा दिए. अरविंद केजरीवाल की कार गाजियाबाद से बरामद कर ली गई, वहीं यूक्रेन के एंबेस्डर का मोबाइल चोर समेत बरामद कर लिया. इसके अलावा यूपी पुलिस ने भी आजम खान की भैंस ढूंढ कर साबित कर दिया था कि कोई भी चोर कानून के शिकंजे से बच नहीं सकता. ये सारे केस इसलिए सॉल्व हुए क्योंकि ये VIP केस थे.
पुलिसिया सतर्कता और न्याय की परिभाषा आम जनता के लिए बिल्कुल उलट है, यह कोई हमारा कहना नहीं है इसका खुलासा एक सर्वे से होता है. इंडिया स्पेंड में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक मेट्रो सिटी (दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, बेंगलुरु) में सिर्फ 6-8 प्रतिशत पीड़ित व्यक्ति ही चोरी की घटना में FIR दर्ज करवाने में सफल हो पाते हैं. बाकि बची हुई 92-94 प्रतिशत शिकायत किसी रिकॉर्ड में ही दर्ज नहीं होती. इन शहरों में चोरी की सबसे ज्यादा घटना दिल्ली में और सबसे कम बेंगलुरु में होती हैं. अब सोचिए कि अगर शिकायत ही नहीं दर्ज होगी तो पुलिस कार्रवाई की जहमत क्यों उठाने लगी?
रिपोर्ट के मुताबिक लोगों का पुलिस से विश्वास उठने के दो मुख्य कारण हैं. पहला- पीड़ित पुलिस के पास शिकायत लेकर जाने से डरते हैं. दूसरा- पुलिस विभिन्न कारणों से केस दर्ज नहीं करती. इसी रिपोर्ट में इस बात का खुलासा भी हुआ कि जब दिल्ली में पीड़ितों से बात की गई तो 30 प्रतिशत का कहना था कि पुलिस ठीक बर्ताव नहीं करती. जिसके कारण चोरी जैसी घटना में उन्हें पुलिस के पास जाना ठीक नहीं लगता.
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इसके अलावा दिल्ली पुलिस की वार्षिक रिपोर्ट (2016) की के मुताबिक पिछले साल राजधानी में 73 प्रतिशत दर्ज केस हल ही नहीं हुए थे. जिसमें चोरी की घटनाएं भी शामिल हैं. 2016 में दिल्ली में 2,09,519 केस रजिस्टर हुए थे. इसमें से 1,53,562 (73.3) केस हल ही नहीं हुए थे. जबकि 2015 में 1,91,562 केस दर्ज हुए थे. 2016 में 9.48 प्रतिशत ज्यादा केस रजिस्टर हुए थे.
एक्सपर्ट्स की राय-
यूपी के पूर्व DGP प्रकाश सिंह ने इस मुद्दे को पुलिस डिपार्टमेंट और पीड़ित दोनों के लिए खतरा बताया. उन्होंने कहा 'यह बात सही है कई लोग पुलिस में जाने से डरते हैं. यह कोई दिल्ली, यूपी या भारत की ही समस्या नहीं है. यह पूरे विश्व की समस्या है. विदेशों में भी लोग चोरी की शिकायत पुलिस में दर्ज करवाने से डरते हैं.'
उन्होंने कहा 'एक तरफ चोरी है, दूसरी तरफ मर्डर जैसे बड़े अपराध. पुलिस के पास बड़े-बड़े काम ज्यादा होते हैं. इसके अलावा पुलिस अंडर प्रेशर काम कर रही है. चोरी का क्राइम एक साधारण क्राइम होता है, लेकिन मर्डर या डकैती जैसी घटनाओं में पुलिस अपना काम भी जल्दी करती है.'
VIP घटनाओं में पुलिस की तेज-तर्रार कार्रवाई पर सिंह ने कहा 'इसके पीछे मुख्य वजह प्रेस और मंत्रियों का प्रेशर होता है. पुलिस तो हर केस में कार्रवाई करना चाहती है, लेकिन स्टाफ की कमी सामने आ जाती है. पुलिस के पास लोग जाने से डरते हैं. यह सच है. ऐसा नहीं होना चाहिए. एक थाने में 100 पुलिस वालों के स्टाफ की जरूरत होती है तो उसमें 80 होते हैं, इसमें से 15 तबीयत खराब होने के कारण छुट्टी पर होते हैं. मुश्किलें पुलिस के लिए भी बहुत हैं.'
एक तरफ जहां पुलिसवालों की देश में भारी कमी है. वहीं दूसरी तरफ ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च एंड डेवलेपमेंट के आंकड़ों के मुताबिक एक VIP को औसतन 3 पुलिसवाले सुरक्षा के लिए दिए जाते हैं. भारत में 19.26 लाख पुलिस ऑफिसर हैं. जिसमें से 56,944 पुलिसवाले 20,828 VIP की सुरक्षा के लिए नियुक्त हैं. औसतन 2.73 पुलिसवाले प्रत्येक VIP के लिए.
आम आदमी की सिक्योरिटी राम भरोसे
इसी रिपोर्ट के आधार पर अब आम आदमी की बात करते हैं. तो आंकड़े बिल्कुल उलट नजर आते हैं. रिपोर्ट की मानें तो 663 भारतीय नागरिकों की सुरक्षा के लिए सिर्फ एक पुलिसवाला होता है. राज्यों के आधार पर बात करें तो दिल्ली में 489 VIP को सुरक्षा देने के लिए सबसे ज्यादा 7,420 पुलिसवाले नियुक्त किए गए हैं. दूसरी तरफ मुजफ्फरनगर दंगे हों या संतरामपाल को गिरफ्तार करने उसकी दहलीज पर पहुंची पुलिस हो. दोनों ही जगह पुलिस की भारी कमी दिखी थी. जिससे इन छोटी सी घटनाओं ने तूल पकड़ा और कई लोगों को अपनी चपेट में ले लिया.
दो तस्वीरें सामने आती हैं, एक- पुलिस की कमी. दूसरा- स्टाफ कम होने के बाद भी VIP लोगों की शिकायत में तेजी. सारी घटनाओं को देखा जाए तो यह कहना गलत नहीं होगा- VIP सिर्फ व्यक्ति नहीं होता, VIP उससे जुड़ी हर चीज होती है, चाहे वो उसकी गाड़ी हो, मोबाइल हो या कोई व्यक्ति हो.
दिल्ली के जंतर-मंतर से आम आदमी की आवाज बुलंद करने वाले अरविंद केजरीवाल VIP तो बहुत पहले ही बन गए थे, लेकिन उन्हें एहसास अब हुआ है. VIP होने की मुहर तो आम आदमी पार्टी के विधायकों पर तब ही लग गई थी. जब बुराड़ी से आप विधायक संजीव झा ने थाने में अपने समर्थकों के साथ तोड़फोड़ की थी. झगड़ा सिर्फ संजीव झा की गाड़ी थाने के बाहर बैठे संतरी के रोकने से शुरू हुआ था. इसके बाद झा के समर्थकों ने थाने में जमकर उत्पात मचाया. इसमें 17 पुलिस वाले भी घायल हो गए थे.
मतलब साफ है अरविंद केजरीवाल की गाड़ी, आजम खान की भैंस मिलने के पीछे उनके VIP होने का योगदान है. जहां एक तरफ आम आदमी रिपोर्ट दर्ज करवाने के लिए थाने जाने से डरता है. वो भी देश की राजधानी दिल्ली में. वहीं दूसरी तरफ VIP बिना थाने जाए अपना चोरी हुआ सामान ढुंढवा लेते हैं. रेप, डकैती जैसे मुख्य अपराध छोड़कर पुलिस पूरा ध्यान मंत्रियों पर देने लग जाती है.
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