कश्मीर में युवाओं के जेहाद और आजादी के नाम पर भटकाव पर चिंता जताते हुए आर्मी चीफ बिपिन रावत ने कहा कि युवाओं को बंदूक थमा कर कथित आजादी की जंग में झोंकने वाले लोग उन्हें केवल गुमराह कर रहे हैं. उन्होनें कहा कि भटके हुए युवा बंदूकों से सेना का मुकाबला नहीं कर सकते हैं और जो लोग आजादी के नाम पर सुरक्षाबलों, पुलिस और राजनेताओं पर हमले करेंगे उनको सेना हमेशा माकूल जवाब देगी. लेकिन साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि भारतीय सुरक्षाबल सीरिया और पाकिस्तान की सेना की तरह क्रूर नहीं है और उसे किसी को मारकर खुशी नहीं मिलती है.
ठीक ही कहा है सेनाध्यक्ष जनरल बिपिन रावत ने कि कश्मीर में भारतीय सुरक्षाबल इतने क्रूर नहीं हैं जितनी क्रूरता सीरिया और पाकिस्तान में सेना करती है. सीरिया की सरकार पर विद्रोहियों के खिलाफ कार्रवाई की आड़ में अपनी ही अवाम पर केमिकल हथियारों के इस्तेमाल के इस्तेमाल का आरोप लगता है.
उधर बलूचिस्तान से लेकर पाक अधिकृत कश्मीर तक पाकिस्तानी सेना का दमन देखा जा सकता है. पाकिस्तान में तख्ता पलट का इतिहास गवाही देता है कि वहां अवाम और लोकतंत्र से चुनी हुई सरकार की हैसियत क्या है. सीरिया और पाकिस्तान में विरोध प्रदर्शन कुचलने के लिए सेनाएं हवाई हमलों के साथ टैंक तक का इस्तेमाल करती हैं.
लेकिन कश्मीर में जब कभी बाढ़ कहर बन कर टूटती है तो भारत की यही सेना और उसके जांबाज जान पर खेल कर एक एक जिंदगी बचाते हैं और तब ये फर्क नहीं करते हैं कि कौन सा इलाका अलगाववादियों का है तो कौन से लोग आजादी की मांग करने वाले पत्थरबाज़ हैं.
सेनाध्यक्ष ने कश्मीर में ‘आजादी’ मांग रहे भटके हुए और पाकिस्तान की तरफ से उकसाए हुए युवाओं को सख्त और नरम लहजे में समझाने की कोशिश की है. ये वाकई बड़ी बात है कि किसी देश का सेनाध्यक्ष खुद ये कह रहा हो कि कश्मीर समस्या का सिर्फ सैन्य हल नहीं हो सकता और सेना को कार्रवाई करने में खुशी नहीं मिलती है.
दरअसल कश्मीर में आतंक से सुलगती घाटी में सेना को नई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. सेना के सामने आतंक की बंदूक उठाए घाटी के वो युवा हैं जिनकी पहचान विदेशी नहीं बल्कि कश्मीरी है. घाटी की आबो-हवा में पले-बढ़े नौजवान सुरक्षा बलों पर बेधड़क हमला कर रहे हैं. मुल्क के खिलाफ अपनी साजिश और दहशत के वीडियो सोशल मीडिया पर पोस्ट कर नई पीढ़ी को ठीक उसी तरह गुमराह कर रहे हैं जिस तरह इराक में आईएसआईएस ने अपना वीडियो प्रोपेगेंडा किया था.
एक तरफ सुरक्षा बलों पर आतंकी हमले तो दूसरी तरफ पत्थरबाजी की घटनाओं में हुए इजाफे के बावजूद सेना की कोशिश यही रहती है कि उसके किसी भी सैन्य ऑपरेशन में कम से कम लोग हताहत हों. सेना खुद ये पहल कर चुकी है कि भटके हुए आतंकी अगर हथियार छोड़ कर वापस मुख्यधारा में लौटेंगे तो उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं की जाएगी. सेना लगातार परिवारवालों से आतंकी बने युवाओं के लिए घर वापसी की अपील भी कराती है.
घाटी में सेना का एक चेहरा ये भी है कि वो लोगों में भरोसा जगाने के लिए दूरस्थ इलाकों में स्वास्थ संबंधी सेवाएं भी देती है. यही वजह है कि सेना को कई दफे लोकल सपोर्ट की मदद से कई वांटेड आतंकियों का सफाया करने में कामयाबी मिल सकी है.
सेनाध्यक्ष बिपिन रावत की चिंता भटके हुए उन युवाओं को लेकर है जो घाटी में आतंकवाद के पोस्टर बॉय बुरहान वानी को अपना हीरो मानकर आतंक की राह पर उतर चुके हैं. कश्मीर के कुछ भटके हुए युवा बुरहान वानी में अपना अक्स देख रहे हैं. साल 2016 में आतंकी बुरहान वानी का एनकाउंटर हुआ था जिसके बाद से घाटी में हालात तेजी से बिगड़ना शुरू हो गए थे. पिछले दो साल में घाटी में मरने वाले आतंकियों में ज्यादातर स्थानीय युवा रहे हैं जिस वजह से उनके एनकाउंटर के बाद घाटी में हालात बेकाबू होते चले गए. इससे पहले घाटी में अधिकतर विदेशी आतंकवादी ही मारे जाते थे.
दरअसल पाकिस्तान की नई साजिश के तहत घाटी में एक तीर से दो शिकार किए जा रहे हैं. एक तरफ पाकिस्तान की आईएसआई और सेना कश्मीर में ही युवाओं को बंदूकें थमा कर आजादी के नाम पर आतंकी बना रही है तो वहीं दूसरी तरफ एनकाउन्टर में मारे जाने के बाद उन आतंकियों के इलाकों में भारतीय सेना के खिलाफ जहर भरने का काम किया जा रहा है.
अलगाववादी ताकतें स्थानीय लोगों की भावनाओं को भड़काने का काम कर रही हैं. यहां तक कि डरा-धमका कर लोकल सपोर्ट के जरिए आतंकियों के महफूज ठिकानों का इंतजाम भी कराया जाता है. कई दफे सेना को किसी इलाके में छिपे आतंकी की धरपकड़ से पहले वहां के लोगों के विरोध प्रदर्शन और पत्थरबाजी का भी सामना करना पड़ता है. कई जगहों पर स्थानीय लोगों की मदद की वजह से आतंकियों को फरार होने का मौका भी मिला है.
लेकिन इसका मतलब ये कतई नहीं है कि आम कश्मीरी आतंकियों के समर्थन में है. आम कश्मीरी आतंक से सुलगती घाटी में सिर्फ कश्मीरी होने की कीमत चुका रहा है. तभी आर्मी चीफ गुमराह हुए लोगों को ये समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि आजादी के नाम पर सेना को हराने का ख्वाब देखना छोड़ दें.
अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस को दिए इंटरव्यू में बिपिन रावत ने साफ किया कि सेना को कश्मीर में आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई करने में खुशी नहीं मिलती बल्कि वो खुद चाहते हैं कि इस समस्या का शांति से समाधान निकले. वो चाहते हैं कि कश्मीर के स्थानीय नेता और राजनीतिक प्रतिनिधि दक्षिण कश्मीर के हिस्से में जाकर लोगों को समझाएं और भरोसा दिलाएं कि सिर्फ कश्मीर की समस्या का हल शांति में हैं, सेना के साथ संघर्ष में नहीं.
आर्मी चीफ का ये सवाल भी वाजिब है कि अगर मिलिट्री ऑपरेशन खत्म कर दिया जाए तो इस बात की गारंटी कौन लेगा कि सेना के जवानों पर हमले नहीं होंगे?
लेफ्टिनेंट उमर फैय्याज जब छुट्टी पर घर लौटे तो आतंकियों ने उन्हें अगवा कर मार डाला. इसी तरह श्रीनगर में पुलिस अधिकारी डीएसपी अयूब की भीड़ ने पीट-पीटकर हत्या कर दी. सुरक्षित न तो सेना के जवान हैं और न ही पुलिस के. स्थानीय होने की वजह से वो आतंकियों के निशाने पर पहले नंबर पर हैं. आतंकी नहीं चाहते हैं कि घाटी के युवा पुलिस या फिर सेना में भर्ती हों.
सेना के काफिले को मौका मिलने पर पत्थरबाजों की भीड़ कहीं भी घेर लेती है. इसके बावजूद सेना की कोशिश होती है कि किसी तरह उस भीड़ से बिना गोली चलाए बच निकला जाए. लेकिन कई दफे परिस्थितियां सीमा से बाहर चली जाती हैं, जैसा कि शोपियां में हुआ था.
इसी साल 27 जनवरी को शोपियां के पास गनोवपोरा गांव से गुजरते वक्त सेना का काफिला सैकड़ों पत्थरबाजों की भीड़ में फंस गया था. जब सेना के पास कोई रास्ता नहीं बचा तो उसे मजबूरी में फायरिंग करनी पड़ी जिसमें दो लोगों की मौत हो गई. लेकिन इस घटना के बाद महबूबा सरकार ने जम्मू-कश्मीर पुलिस को आदेश देकर सेना के खिलाफ एफआईआर दर्ज करा दी थी.
घाटी में सेना के जवान किन हालातों में डटे हुए हैं इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती. इसके बावजूद सेना के बूटों ने आतंक को कुचलने के लिए दमन की नीति को नहीं अपनाया. सरकार बातचीत के जरिए समाधान निकालने की कोशिश कर रही है. ऐसे में आर्मी चीफ का ये बयान संजीदगी से भरा हुआ है, जिसे समझने वाले मशविरा भी मान सकते हैं तो चेतावनी भी.
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