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कौन हैं स्टरलाइट के मालिक अनिल अग्रवाल जिनके प्लांट के आगे भून दिए गए 13 लोग

अनिल अग्रवाल की वेदांता रिसोर्सेज ऐसी पहली कंपनी होगी जो इतने कम वक्त में कहां से कहां पहुंच गई

Updated On: May 24, 2018 03:56 PM IST

FP Staff

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कौन हैं स्टरलाइट के मालिक अनिल अग्रवाल जिनके प्लांट के आगे भून दिए गए 13 लोग

तमिलनाडु के तूतीकोरिन में स्टरलाइट कॉपर प्लांट का विरोध कर रहे लोगों पर पुलिस की गोलीबारी में कुल 13 लोगों की मौत हो चुकी है. गंभीर हालात को देखते हुए शहर में जगह-जगह सुरक्षा बलों की तैनाती की गई है.

हिंसा में शामिल होने के आरोप में अब तक 67 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है. वहीं शहर में अगले पांच दिनों के लिए इंटरनेट सेवाएं भी बंद कर दी गई है. ये सेवा बुधवार रात 9 बजे से बंद की गई है. स्टरलाइट कॉपर का कारखाना फिलहाल बंद है. मद्रास हाई कोर्ट ने प्लांट के प्रस्तावित विस्तार पर रोक लगा दी है.

बता दें कि स्थानीय लोग प्रदूषण चिंताओं की वजह से पिछले 100 दिन से इस कॉपर कॉपर प्लांट को बंद किए जाने की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. दो दिन पहले यह विरोध प्रदर्शन इतना भड़का कि पुलिस को फायरिंग करनी पड़ी. यहां जान लेना जरूरी है कि स्टरलाइट कॉपर वेदांता की सब्सिडरी कंपनी है, जो दुनिया की सबसे बड़ी खनन कंपनियों में से एक है. इसके मालिक बिहार के पटना में जन्मे अनिल अग्रवाल हैं.

कौन हैं स्टरलाइट कंपनी के मालिक अनिल अग्रवाल

अनिल अग्रवाल ने मुंबई में 'वेदांता' नाम से एक कंपनी बनाई जिसे उन्होंने लंदन स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध कराया. स्टरलाइट तमिलनाडु के तूतीकोरिन और सिलवासा में चलती है. एक आंकड़े के मुताबिक तूतीकोरिन कारखाने में हर साल लगभग चार लाख टन तांबे का उत्पादन होता. साल 2017 में इस कंपनी का टर्नओवर 11.5 अरब डॉलर था.

फोटो रॉयटर से

फोटो रॉयटर से

अनिल अग्रवाल और उनका 'मेटल' का धंधा

बिहार के पटना में जन्मे अनिल अग्रवाल ब्रिटिश नागरिक हैं. पटना में उनके पिता द्वारका प्रसाद अग्रवाल एल्युमिनियम कंडक्टर का बिजनेस करते थे, जिसे आगे चलकर उन्होंने संभाला. 19 साल की उम्र में अनिल अग्रवाल पटना छोड़कर मुंबई आ गए और कबाड़ का धंधा शुरू किया. इस धंधे ने उन्हें मेटल की दुनिया का बेताज बादशाह बनाया.

अग्रवाल के रसूख का पता इसी से चलता है कि कांग्रेस राज में वेदांता को राजस्थान के तांबे की खदानें और कंपनियां बेधड़क सौंपी गईं. इतना ही नहीं छत्तीसगढ़ के कोरबा में एक एल्युमिनियम कंपनी वेदांता को कम कीमत में दे दी गई, जिसका काफी विरोध भी हुआ था. इनकी कंपनी नियमगिरि खदान को लेकर भी विवादों में रही है. बॉक्साइट खनन को लेकर लोगों ने इस पहाड़ी इलाके में इतना विरोध किया कि कंपनी को अपना बोरिया-बिस्तर बांधना पड़ा.

बात नियमगिरि की हो या तूतीकोरिन की, विरोध प्रदर्शनों के बावजूद वे अपने बिजनेस को लेकर कुछ अलहदा ढंग से सोचते हैं. कबाड़ के धंधे से अपना बिजनेस शुरू कर 'मेटल' की दुनिया में धाक जमाने वाले अग्रवाल मानते हैं कि 'कुछ स्वार्थी ताकतें हैं जो भारत को आयात निर्भर देश बनाए रखना चाहती हैं ताकि उनका बाजार यहां चलता रहे, कड़ी मेहनत से कमाई विदेशी पूंजी खर्च होती रहे और लाखों रोजगार घटते जाएं.'

अग्रवाल इन चिंताओं से भी बेपरवाह दिखते हैं कि तूतीकोरिन में देश का दूसरा सबसे बड़ा प्लांट किस कदर प्रदूषण फैलाता है, जिसके विरोध में आम जन से लेकर पर्यावरणविद् तक आवाज बुलंद करते रहे हैं.

फोटो रॉयटर से

फोटो रॉयटर से

देश में ऐसी कई कंपनियां हैं जिनका इतिहास दशकों पुराना है लेकिन अनिल अग्रवाल की वेदांता रिसोर्सेज ऐसी पहली कंपनी होगी जो इतने कम वक्त में कहां से कहां पहुंच गई. 1979 में भारत में छोटे स्तर से शुरू हुई वेदांता आज कई देशों में अपनी धमक जमा चुकी है. अफ्रीका, आयरलैंड और ऑस्ट्रेलिया ऐसे देश हैं जहां इस कंपनी का अच्छा-खासा बिजनेस चल रहा है.

कब-कब हुआ विवाद

जी न्यूज़ की वेबसाइट पर प्रकाशित एक खबर के मुताबिक साल 2004 में सुप्रीम कोर्ट की एक कमेटी ने पाया कि वेदांता के तूतीकोरिन प्लांट ने काफी जहरीले आर्सेनिक से युक्त कचरे के निपटान के लिए कोई व्यवस्था नहीं बनाई. इतना ही नहीं प्लांट पर मुनासिब मात्रा से ज्यादा सल्फर डायऑक्साइड वातावरण में छोड़ने का आरोप लगा.

इसी खबर में सेंटर फॉर साइंस एंड इनवायरमेंट के हवाले से बताया गया है कि 'साल 2010 में प्लांट इसलिए बंद किया गया क्योंकि यह पर्यावरण को प्रदूषित कर रहा था और नियमों को ताक पर रख काम हो रहा था.'

द हिंदू में प्रकाशित एक खबर के मुताबिक2005 में भी सुप्रीम कोर्ट की एक कमेटी ने पाया कि ओडिशा में इस कंपनी के बॉक्साइट खदान के कारण आसपास के हजारों परिवारों को विस्थापन का दंश झेलना पड़ा. कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा, 'खदान के आसपास के गांवों के लोगों को डराने के लिए गुंडों का सहारा लिया गया और लोगों को मारा-पीटा गया'.

देश की कौन कहे अग्रवाल की वेदांता विदेशों में भी विवादों में रही है. जांबिया में अपनी कॉपर प्लांट से निकले कचरे को काफू नदी में डंप करने का आरोप लगा. इस कारण बड़ी संख्या में लोगों की तबीयत खराब हुई. नदी-नालों में मछलियों के अस्तित्व पर संकट आया. वहां के तकरीबन 2 हजार लोगों ने कंपनी के खिलाफ मुकदमे दर्ज कराए.

घटना का पूरा ब्योरा

स्टरलाइट कॉपर प्लांट को 27 मार्च को 15 दिनों तक मरम्मत के लिए बंद किया गया था. ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि कंपनी उत्पादन क्षमता को बढ़ाना चाहती है. कंपनी फिलहाल 4 लाख टन कॉपर बनाती है जिसे बढ़ाकर 8 लाख टन तक ले जाने की योजना है.

मरम्मत के बाद प्लांट शुरू होने से पहले तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने वेदांता को पर्यावरण नियमों के उल्लंघन का दोषी पाया और दोबारा प्लांट शुरू होने पर रोक लगा दी. 2013 में भी कुछ इन्हीं कारणों से प्लांट को बंद किया गया था.

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