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अयोध्या मामले में एक और तारीख: संघ परिवार की उम्मीदों पर फिरा पानी?

अयोध्या मामले में सुनवाई पर तारीख पर तारीख मिलते जाने को लेकर संघ परिवार, वीएचपी और साधु-संतों के भीतर परेशानी है, जो पहले से ही जल्द से जल्द सुनवाई करने की मांग कर रहे हैं.

Updated On: Jan 10, 2019 03:06 PM IST

Amitesh Amitesh

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अयोध्या मामले में एक और तारीख: संघ परिवार की उम्मीदों पर फिरा पानी?

अयोध्या मामले में सुनवाई पर तारीख पर तारीख मिलते जाने को लेकर संघ परिवार, वीएचपी और साधु-संतों के भीतर परेशानी है, जो पहले से ही जल्द से जल्द सुनवाई करने की मांग कर रहे हैं. वीएचपी के कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार ने इस मसले पर सुनवाई टलने पर निराशा जताई है.

आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत ने पहले ही कोर्ट की तरफ से हो रही देरी के चलते अपनी नाखुशी जताई थी. भागवत ने कहा था, ‘यह मामला कोर्ट में है. इस मामले पर फैसला जल्द से जल्द आना चाहिए. ये भी साबित हो चुका है कि वहां मंदिर था. सुप्रीम कोर्ट इस मामले को प्राथमिकता नहीं दे रहा है.’ मोहन भागवत ने कहा था कि अगर किसी कारण, अपनी व्यस्तता के कारण या समाज की संवेदना को न जानने के कारण कोर्ट की प्राथमिकता नहीं है तो सरकार सोचे कि इस मंदिर को बनाने के लिए कानून कैसे आ सकता है और जल्द ही कानून को लाए. यही उचित है.

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संघ प्रमुख ने कोर्ट पर समाज की संवेदना नहीं जानने का आरोप लगाया था. मोहन भागवत ने इसी के बाद सरकार को उसकी भूमिका की याद दिलाते हुए अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए कानून बनाने की मांग की थी. वीएचपी और साधु-संतों की तरफ से पिछले साल 25 नवंबर को पहले अयोध्या और फिर 9 दिसंबर को दिल्ली की धर्मसभा में इस मामले का जल्द फैसला नहीं आने पर कानून या अध्यादेश का रास्ता अख्तियार करने की मांग की गई थी.

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इसके लिए 31 जनवरी तक का अल्टीमेटम भी दिया गया है. क्योंकि अब अगली धर्मसभा का आयोजन 31 जनवरी और 1 फरवरी को प्रयागराज के कुंभ में होना है, जिसमें अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के बारे में फिर से आंदोलन तेज करने या फिर अगले कदम को लेकर रणनीति तय की जाएगी.

लेकिन, सरकार ने अध्यादेश या कानून की किसी भी संभावना को फिलहाल खारिज कर दिया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ से इस नए साल के पहले दिन अपने साक्षात्कार में साफ कर दिया गया कि सरकार का अध्यादेश लाने का अभी कोई इरादा नहीं है. सरकार राम मंदिर मसले पर कोर्ट के फैसले का इंतजार करेगी.

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था, ‘70 सालों तक सत्ता में रहने वाले लोगों ने अयोध्या का हल निकालने के रास्ते में कई व्यवधान पैदा करने की कोशिश की. इसलिए कांग्रेस से मेरा अनुरोध है कि उन्हें अपने वकीलों को देश की शांति को ध्यान में रखते हुए अयोध्या विवाद में खलल डालने से रोकना चाहिए. इस मुद्दे को राजनीतिक तराजू में नहीं तौलना चाहिए. कानूनी प्रक्रिया को अपना रास्ता तय करने देना चाहिए.’

मोदी की तरफ से कांग्रेस के वकीलों पर निशाना साधा गया था और इस मामले की सुनवाई को टालने के लिए कांग्रेस के वकीलों को जिम्मेदार ठहराया गया था. पहले मुस्लिम पक्षकारों की तरफ से वकील कपिल सिब्बल की तरफ से मामले की सुनवाई 2019 के चुनाव तक टालने की मांग की गई थी. कपिल सिब्बल कांग्रेस के नेता भी हैं. लिहाजा प्रधानमंत्री को कांग्रेस पर हमला करने का मौका मिल गया.

75 years of Dainik Jagran New Delhi: Prime Minister Narendra Modi during the Jagran forum on the 75th anniversary of Dainik Jagran newspaper, in New Delhi, Friday, Dec. 07, 2018. (PTI Photo/Manvender Vashist)(PTI12_7_2018_000102B)

लेकिन, अब मुस्लिम पक्षकार के वकील राजीव धवन की तरफ से जस्टिस यू.यू. ललित पर सवाल खड़ा करने के बाद एक बार फिर सुनवाई टल गई है. जस्टिस यू.यू. ललित ने इस मामले की सुनवाई से अपने-आप को अलग कर लिया.

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29 जनवरी से पहले उनकी जगह किसी दूसरे जस्टिस को पांच जजों की संवैधानिक बेंच में शामिल किया जाएगा, जिसके बाद इस मामले में सुनवाई शुरू हो सकेगी. गौरतलब है कि जस्टिस ललित 1995 में कल्याण सिंह के लिए पेश हुए थे. लिहाजा सवाल खडा करने के बाद उन्होंने अपने-आप को अलग कर लिया.

सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के अलावा जस्टिस एस ए बोबडे, जस्टिस एन वी रमण, जस्टिस यू. यू. ललित और जस्टिस धनन्जय वाई चन्द्रचूड़ शामिल थे. लेकिन, अब जस्टिस यू.यू. ललित की जगह किसी दूसरे जस्टिस को संविधान पीठ में शामिल करने के बाद यह इस मामले में सुनवाई हो सकेगी.

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