15 जून को अन्ना हजारे का जन्मदिन है. सन 1937 को महाराष्ट्र के अहमदनगर के रालेगण सिद्धि गांव के एक मराठा किसान परिवार में जन्मे अन्ना हजारे को देश में सामाजिक आंदोलन का अगुआ माना जाता है. बात चाहे महाराष्ट्र भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन की हो या लोकपाल विधेयक आंदोलन की, उन्होंने जो कुछ भी किया उसे पूरी शिद्दत से जनता की मदद से और जनता के लिए किया. लोगों को इसका लाभ भी मिला, कुछेक मामलों में हालांकि उन्हें नाकामी मिली लेकिन वे हारे नहीं. आज भी नहीं. जब उन्हें मौका मिलता है, जनता की आवाज बुलंद करने वे सड़कों पर उतर जाते हैं. आज इस खास दिन पर आइए जानते हैं उनके आंदोलन और उसका फलसफा.
महाराष्ट्र भ्रष्टाचार विरोधी जन आंदोलन-1
सन 1991 देश के इतिहास में एक खास वर्ष के रूप में दर्ज है. इसी साल अन्ना हजारे ने महाराष्ट्र में शिवसेना-बीजेपी की सरकार के कुछ 'भ्रष्ट' मंत्रियों पर जोरदार प्रहार करते हुए उन्हें हटाने की मांग उठाई और भूख हड़ताल पर चले गए. जिन मंत्रियों पर आरोप लगाए गए उनमें शशिकांत सुतर, महादेव शिवांकर और बबन घोलाप के नाम थे. अन्ना का आरोप था कि इन मंत्रियों ने सरकार में रहते हुए आय से अधिक संपत्ति बनाई.
हड़ताल पर गए अन्ना को सरकार ने मनाने की बहुत कोशिश की लेकिन वे माने नहीं. अंत में महाराष्ट्र सरकार को झुकना पड़ा और दागी मंत्रियों शशिकांत सुतर और महादेव शिवांकर को अपना पद गंवाना पड़ा. तीसरे आरोपी मंत्री घोलाप ने अन्ना के खिलाफ मानहानि का केस कर दिया. अन्ना कोर्ट में घोलाप के खिलाफ अपना आरोप सिद्ध नहीं कर पाए जिससे उन्हें तीन महीने की जेल हो गई.
तब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री मनोहर जोशी थे. अन्ना का सम्मान करते हुए एक दिन की हिरासत के बाद उन्हें छोड़ दिया गया. बाद में एक जांच आयोग ने शशिकांत सुतर और महादेव शिवांकर को निर्दोष पाया. नेता भले निर्दोष पाए गए लेकिन उस वक्त अन्ना को जनता का अपार समर्थन मिला.
सूचना का अधिकार आंदोलन
आज हम जिसे सूचना का अधिकार या आरटीआई के नाम से जानते हैं, उसके पीछे अन्ना हजारे की बड़ी भूमिका थी. इस आंदोलन में और भी कई मशहूर हस्तियां रहीं लेकिन अन्ना का रोल अलहदा था, सबको साथ लेकर चलने वाला था. बात 1997 की है जब अन्ना हजारे ने सूचना का अधिकार अधिनियम के समर्थन में मुंबई के आजाद मैदान से अपना अभियान शुरू किया. 9 अगस्त 2003 का वाकया खास रहा क्योंकि इस दिन वे मुंबई के आजाद मैदान में आमरण अनशन पर बैठ गए. यह आंदोलन लगातार 12 दिन तक चला और देश के कोने-कोने से लोगों का समर्थन मिला.
अंततः 2003 में ही महाराष्ट्र सरकार को इसका अधिनियम पारित करना पड़ा. गौर करने वाली बात है कि अन्ना के इसी आंदोलन के बाद आरटीआई का राष्ट्रीय आंदोलन विस्तृत फलक पर पसर गया. नतीजन 12 अक्टूबर 2005 को देश के संसद ने भी सूचना का अधिकार अधिनियम पास कर दिया. अन्ना यही तक नहीं रुके, फिर अगस्त 2006 में सूचना का अधिकार अधिनियम में संशोधन प्रस्ताव के खिलाफ वे 11 दिन तक एक और आमरण अनशन पर बैठ गए. इसे भी देशभर में अपार समर्थन मिला. अंत-अंत में सरकार ने संशोधन का इरादा बदल दिया और अन्ना के आंदोलन को पूरा सम्मान मिला.
महाराष्ट्र भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन-2
महाराष्ट्र सरकार में 1991 में खलबली मचा चुके अन्ना हजारे 2003 में इसी मुद्दे को लेकर फिर एक बार सक्रिय हो गए. इस बार बारी थी एनसीपी सरकार के चार मंत्रियों की. ये मंत्री थे- सुरेश दादा जैन, नवाब मलिक, विजय कुमार गावित और पद्मसिंह पाटिल. अन्ना ने इन्हें भ्रष्ट बताकर इनके खिलाफ बड़ी मुहिम छेड़ी और भूख हड़ताल पर चले गए. वैसा ही हुआ जैसा अमूमन होता है. हड़ताल से तत्कालीन महाराष्ट्र सरकार दबाव में आ गई और मंत्रियों पर आरोप के खिलाफ एक जांच आयोग बना दिया. तबतक नवाब मलिक ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया. आयोग ने जब सुरेश जैन के खिलाफ आरोप तय किए तो उन्हें भी पद छोड़ना पड़ा.
लोकपाल विधेयक आंदोलन
यही एक ऐसा आंदोलन है जिसमें अन्ना हजारे को मनमाफिक रिजल्ट नहीं मिला, हालांकि उन्होंने कोशिशें कई कीं. यह आंदोलन जो कि अब भी जारी है, जन लोकपाल विधेयक (नागरिक लोकपाल विधेयक) बनाने के लिए है. सरकार और प्रशासनिक कामकाज में पारदर्शिता लाने के लिए अन्ना ने 5 अप्रैल 2011 को अपने साथियों के साथ दिल्ली के जंतर-मंतर पर आंदोलन शुरू किया. यह आंदोलन अनशन के साथ शुरू हुआ. इसमें अब के मुख्यमंत्री और तत्कालीन आरटीआई कार्यकर्ता अरविंद केजरीवाल, भारत की पहली महिला प्रशासनिक अधिकारी किरण बेदी, प्रसिद्ध वकील प्रशांत भूषण जैसे गणमान्य शामिल थे.
देखते-देखते यह आंदोलन और अन्ना का अनशन समूचे भारत में फैल गया और इसके समर्थन में लोग सड़कों पर उतरने लगे. आंदोलन में भारत सरकार से एक मजबूत भ्रष्टाचार विरोधी लोकपाल विधेयक बनाने की मांग की गई और इसके तहत सरकार को लोकपाल बिल का एक मसौदा भी प्रदान किया गया. तब केंद्र में मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार थी. तत्कालीन सरकार ने इस मसौदे को लेकर आनाकानी की और इसकी उपेक्षा की.
हालांकि आंदोलन का असर देखकर सरकार ने आनन-फानन में एक समिति बनाकर संभावित खतरे को टाला और 16 अगस्त तक संसद में लोकपाल विधेयक पारित कराने की बात मान ली. अगस्त से शुरू हुए मानसून सत्र में सरकार ने जो विधेयक प्रस्तुत किया वह कमजोर और जन लोकपाल से अलग था. अन्ना हजारे ने फिर इसके खिलाफ 16 अगस्त से अनशन पर जाने की बात दुहराई. 16 अगस्त को सुबह साढ़े सात बजे जब वे अनशन पर जाने के लिए तैयारी कर रहे थे, तब दिल्ली पुलिस ने उन्हें घर से ही गिरफ्तार कर लिया. उनके टीम के बाकी लोग भी गिरफ्तार कर लिए गए. तब से लेकर अन्ना ने कई अनशन किए लेकिन मामला जस का तस लटका हुआ है.
इस आंदोलन के तहत अन्ना ने मांग उठाई है कि तमाम सरकारी कर्मचारियों को लोकपाल के दायरे में लाया जाए, तमाम सरकारी कार्यालयों में एक नागरिक चार्टर लगाया जाए और सभी राज्यों में लोकायुक्त हो. हजारे तब से लेकर अब तक कहते रहे हैं कि अगर जन लोकपाल विधेयक पर संसद चर्चा करती है और शर्तों पर सदन के भीतर सहमति बन जाती है तो वह अपना अनशन समाप्त कर देंगे, अन्यथा करते रहेंगे.
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