इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी-मद्रास अपने छात्रों के लिए संस्कृत का नया विभाग लेकर आ रही है, जिसमें वेदों में जो पारंपरिक साइंस और टेक्नोलॉजी की जानकारी दी गई है, उसके बारे में खोज की जाएगी और खास तौर इसमें संस्कृत भाषा पर ध्यान भी दिया जाएगा. इस विभाग को सोशल साइंस और ह्यूमेनिटीज डिपार्टमेंट के तहत रखा गया.
इस खास मुहिम को फंड कर रहे हैं साइंस ऑफ स्पिरिचुएलिटी और सावन कृपाल रूहानी मिशन के संत राजिंदर सिंह जी महाराज जो एक आध्यात्मिक गुरु हैं और वो खुद आईआईटी मद्रास के पूर्व छात्र भी हैं.
संत राजिंदर सिंह जी महाराज ने 1967 में आईआईटी मद्रास से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में बी.टेक किया है.
आईआईटी मद्रास के एक सीनियर प्रबंधक कहना है कि महाराज ने इसके लिए 90 लाख रुपए का फंड भी दिया है जिसके इस्तेमाल से हम एक विभाग बनाकर वेदों में दी गई साइंस और टेक्नोलॉजी की जानकारी को खोजेंगे. संपादानंदा मिश्रा इसके मुख्य बनेंगे. मिश्रा संस्कृत के ज्ञाता और श्री ऑरोबिन्दो फाउंडेशन फॉर इंडियन कल्चर (एसएएफआईसी) के डायरेक्टर हैं.
जानकारी के मुताबिक, इस फंड के तहत पहले 75 लाख रुपए दिए जाएंगे और अगले 4 सालों तक छात्रों को स्कॉलरशिप देने के लिए 15 लाख की रकम तय की गई है.
संपादानंद मिश्रा का मानना है कि लोग किसी भी भाषा को सिर्फ किसी खास धर्म या मजहब से जोड़कर देखते हैं जैसे संस्कृत को भी हिंदुत्व से जुड़ा हुआ माना जाता है जबकि संस्कृत ने संपूर्ण मानव जाति को खासकर वैज्ञानिकों को भी विज्ञान को समझने में बहुत मदद की है.
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