चीन की उत्तराखंड के कालापानी में घुसपैठ की धमकी के बाद देश की सुरक्षा को लेकर खतरे की घंटी बज गई है, खासकर नेपाल और चीन से लगी भारतीय सीमाओं पर बहुत चौकस रहने की जरूरत है.
भारत-नेपाल सीमा के नजदीक उत्तराखंड के पिथौरागढ़ ज़िले के पहाड़ों में स्थित कालापानी इलाके की सुरक्षा का जिम्मा फिलहाल इंडो-तिब्बतन बॉर्डर पुलिस यानी आईटीबीपी के पास है. एक समय नेपाल इस विवादित जमीन पर अपना दावा जता चुका है, वहीं चीन भी इस जमीन पर नीयत खराब किए बैठा है. हाल ही में चीनी विदेश मंत्रालय के एक बयान के बाद कालापानी का नाम सुर्खियों में आया है.
चीन की धमकी के मायने
डोकलाम मुद्दे पर तिलमिलाए चीनी विदेश मंत्रालय ने भारत को धमकी भरे अंदाज में कहा था कि, 'क्या होगा अगर हम कश्मीर और उत्तराखंड के कालापानी में घुस जाएं?' ये बयान सीमा और समुद्री मामलों के डिप्टी डायरेक्टर जनरल वेंग वेनेली दिया था, ये विभाग चीनी विदेश मंत्रालय के अंतर्गत आता है.
इस समय जब भारतीय और चीनी सैनिक डोकलाम में ट्राई पॉइंट जक्शन के नजदीक आमने-सामने हैं, ऐसे में चीन का ये बयान भारतीय सीमाओं की सुरक्षा को लेकर खास महत्व रखता है.
उत्तराखंड सीमा पर भारत को चीन से दूसरी बार खतरा उत्पन्न हुआ है, एक साल पहले उत्तराखंड के चमौली जिले के बारा होती इलाके में चीनी सैनिकों की बढ़ती गतिविधियों की रिपोर्ट आई थी. आपको बता दें कि बारा होती इलाका अपने हरे-भरे चारागाहों के लिए मशहूर है.
चीन की धमकी के बाद अंतरराष्ट्रीय सीमा से सटे उत्तराखंड के इलाकों में सुरक्षा संबंधी उपायों को तत्काल मजबूत करने की जरूरत है. कुछ अरसा पहले गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने हिमालय क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले पांच राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक की थी, इस बैठक के दौरान गृह मंत्री ने चीन द्वारा अपनी 3488 किमी. लंबी सीमा पर किए जा रहे सड़कों, पुलों और दूसरी तरह के कई निर्माणों पर चिंता जताई थी.
क्यों जरूरी है उत्तराखंड की सुरक्षा?
उत्तराखंड भी हिमालय क्षेत्र में आता है और चीन के साथ 345 किमी. लंबी सरहद साझा करता है. यही वजह है कि उत्तराखंड के सीमावर्ती इलाकों में चीनी सैनिकों की सरगर्मियों का लंबा इतिहास रहा है.
उत्तराखंड के तीन जिले उत्तरकाशी, चमोली और पिथौरागढ़ चीन की सीमा के नजदीक हैं. पहाड़ी इलाकों में स्थित इन तीनों जिलों में पलायन एक बड़ी समस्या है. शिक्षा और बेहतर रोजगार की तलाश में यहां के निवासी बड़ी तादाद में महानगरों में जाकर बस रहे हैं. एक जमाने में यहां के निवासियों के तिब्बत से व्यापारिक संबंध थे, लेकिन 1962 में चीन से जंग के बाद ये संबंध टूट गए.
कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर जाने वाले श्रद्धालु पिथौरागढ़ जिले के बेलचाधूरा पास और लिपूलेक पास से होकर गुजरते हैं, जबकि माना पास, नीति पास और बारा होती चारागाह चमोली जिले में आते हैं, जबकि उत्तरकाशी का निलोंग पास इलाका भारत और तिब्बत के बीच व्यापार के लिए मशहूर रहा है. लेकिन 1962 में चीन से युद्ध के बाद निलोंग घाटी के निवासी उत्तरकाशी शहर में जाकर बस गए.
अब निलोंग घाटी में जाने के लिए लोगों को प्रशासन से इजाजत लेना पड़ती है. चीन के साथ युद्ध से पहले तिब्बत से व्यापार ही यहां के लोगों का मुख्य आर्थिक आधार था. यहां मौजूद गरतांग गली नाम का लकड़ी का एक संकरा पुल इस इलाके के गौरवशाली और संपन्न अतीत का गवाह है.
भारत ने नहीं लिया है चीन से सबक
चीन को ऐसा लगता है कि उत्तराखंड की बात आने पर भारत बेचैन हो जाता है, लिहाजा चीन उत्तराखंड से लगी अपनी सीमा पर कुछ ज्यादा ही सक्रिय है. चीन ने इस इलाके में निर्माण कराकर अपने आधारभूत ढांचे को खासा मजबूत किया है, ताकि अपनी सैन्य टुकड़ियों को कम वक्त में और आसानी के साथ सीमा पर तैनात किया जा सके.
लेकिन भारत ने चीन से कोई सबक नहीं लिया, न ही पिथौरागढ़ और उत्तरकाशी में किसी तरह के निर्माण कराए गए, और न ही सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए. हालत ये है कि सीमा से सटे गांवों को अभी तक जरूरी जनसुविधाओं का इंतजार है.
धारचूला स्थित भारत की आखिरी पोस्ट लिपूलेक तक जाने वाली सड़क की हालत भी काफी खराब है. कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर जाने वाले ज्यादातर श्रद्धालु लिपूलेक पास का रास्ता ही चुनते हैं. फिलहाल बॉर्डर रोड्स ऑर्गेनाइजेशन इस दुर्गम पहाड़ी इलाके में 76 किमी. लंबी सड़क बनाने में जुटी हुई है.
चीनी सीमा के नजदीक चमोली जिले की नीति घाटी में एक गांव है, जहां करीब 250 परिवार रहा करते थे, लेकिन अब यहां सिर्फ 50 परिवार ही बचे हैं. ये सभी परिवार घुमंतू जीवन जीते हैं, सर्दियों में ये लोग मैदानी इलाकों में चले जाते हैं, वहीं गर्मियों में नीति घाटी में वापस लौट आते हैं.
चमोली जिले का बारा होती इलाका सड़क के जरिए जोशीमठ से जुड़ा हुआ है, वहीं यहां से रिमखिम पोस्ट तक भी 100 किमी लंबी एक सड़क है, जिसपर वाहनों की आवाजाही आसान है.
उत्तराखंड में बढ़ा है चीनी घुसपैठ
फ़र्स्टपोस्ट की पूर्व प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक बारा होती विवाद की जड़े अंग्रेजी राज में मिलती हैं, 1952 की खुफिया विभाग की एक रिपोर्ट के मुताबिक होती के लोग गर्मियों में व्यापार के लिए तिब्बत जाया करते थे, लेकिन 1954 में तिब्बत में व्यापार और धार्मिक यात्राओं से संबंधित पंचशील एग्रीमेंट के तहत भारत ने तिब्बत से व्यापार रोक दिया.
साल 2013 में आंतरिक सुरक्षा के मुद्दे पर दिल्ली में एक अहम बैठक हुई थी, जिसमें उत्तराखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने खुलासा किया था कि साल 2007-2012 के बीच चीन ने बारा होती में 37 पर घुसपैठ की कोशिश की. पिछली साल जुलाई में भी बारा होती में चीनी सैनिकों द्वारा सीमा के उल्लंघन का मामला सामने आया था.
इस साल जुलाई में भी ऐसी ही कुछ रिपोर्ट्स उस वक्त सामने आई थीं, जब कुछ चरवाहे अपने मवेशी लेकर बारा होती घाटी के चारागाह में गए थे, इन चरवाहों ने घाटी में चीनी सैनिकों की घुसपैठ और सरगर्मियों की जानकारी दी थी.
सीमावर्ती इलाकों में खराब आधारभूत ढांचे के चलते हमारी द्वितीय रक्षा पंक्ति शक्तिहीन नजर आती है, जिसके चलते भविष्य में उत्तराखंड को भारी कीमत चुकानी पड़ी सकती है. प्रशासन के पास इलाके में चीनी घुसपैठ की खबरें काफी देर से पहुंचती हैं, जोकि उत्तराखंड की सुरक्षा के लिए अच्छा संकेत नहीं है.
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