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अमेठीः साइकिल कंपनी बंद होने के बाद राजीव गांधी ट्रस्ट को दे दी गई किसानों की जमीन

1984 में 100 बीघा जमीन सरकार को सरेंडर कर देने वाले किसान आज साइकिल ट्यूब की पंक्चर ठीक कर बमुश्किल से अपना गुजारा कर पाते हैं

Updated On: Feb 03, 2019 09:31 AM IST

Vivek Vikram Singh

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अमेठीः साइकिल कंपनी बंद होने के बाद राजीव गांधी ट्रस्ट को दे दी गई किसानों की जमीन

यहां के एक छोटे से घर के बाहर एक पेड़ के नीचे बैठे और कमजोर दिख रहे योगेंद्र पाठक एक तरह से मायूसी की तस्वीर बयां करते हैं. उनकी यहीं पर साइकिल मरम्मत की दुकान है और वह इस दुकान पर आने वाले पड़ोसियों के साथ पुराने अच्छे दिनों को याद करते हैं, जब वह जमींदार जैसे थे. उनकी गिनती उन चुनिंदा जमींदारों में होती थी, जिसका सम्मान और रुतबा न सिर्फ उनके गांव में बल्कि आसपास के इलाकों में भी था. आज उनकी हालत ऐसी है कि वह साइकिल ट्यूब की पंक्चर ठीक कर बमुश्किल से अपना गुजारा कर पाते हैं.

योगेंद्र पाठक की दुकान से कुछ ही दूरी पर ललन पाठक काठ से बने अपने स्टॉल में बैठकर पान के पत्तों पर चूना-कत्था लगाते नजर आते हैं, जबकि पान और तंबाकू के प्रेमी इस बात को लेकर सर खुजा रहे हैं कि चार महीने बाद होने वाले लोकसभा चुनावों में क्या होगा, किस पार्टी के सिर पर जीत का सेहरा बंधेगा और कौन सी पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ेगा. दरअसल, योगेंद्र की तरह ललन भी पुराने समय में कभी बड़ी जमीन के टुकड़े के मालिक हुआ करते थे और इस जमीन पर मौसमी फसल की खेती कर पैसे कमाते थे. हालांकि, फिलहाल उनकी स्थिति भी काफी खराब है.

कई किसानों ने साइकिल फैक्ट्री के निर्माण के लिए अपनी पूरी जमीन दे दी थी योगेंद्र (65 साल) ने 1984 में 100 बीघा जमीन सरेंडर कर दी थी. उत्तर प्रदेश सरकार ने उन्हें मुआवजे के तौर पर 5,000 रुपए प्रति बीघा सम्राट बाइसिकल्स प्राइवेट लिमिटेड की मैन्युफैक्चरिंग ईकाई में नौकरी दी थी. तकरीबन दो साल बाद फैक्ट्री में कामकाज बंद हो गया और वेतन रुक गया. तब से वह बेहद आर्थिक तंगी में जी रहे हैं.

इसी तरह अपने अच्छे दिनों में ललन (62 साल) अपने गांव के लोगों को मुफ्त में फल और लकड़ी बांटा करते थे, लेकिन अब वह पान की दुकान चलाकर अपना जीवनयापन करने को मजबूर हैं. योगेंद्र और ललन उन 192 किसानों की जमात में शामिल हैं, जिन्होंने 1984 में देश के नवनियुक्त प्रधानमंत्री राजीव गांधी की महज एक अपील पर उत्तर प्रदेश राज्य औद्योगिक विकास निगम (यूपीएसआईडीसी) को अपनी जमीन दे दी थी. राजीव गांधी अपनी मां इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उपजी सहानुभूति लहर पर सवार होकर अभूतपूर्व बहुमत के साथ सत्ता में पहुंचे थे.

किसानों ने मुआवजा और रोजगार के वादे पर जो जमीन दी थी, उसमें सम्राट बाइसिकल्स की मैन्युफैक्चरिंग ईकाई स्थापित करने की बात थी और इससे यहां के स्थानीय लोगों को बड़ी संख्या में रोजगार मिलता. हालांकि, जमीन देने वाले कुछ किसानों को मुआवजा और रोजगार दिया गया था, लेकिन फैक्ट्री में उत्पादन का काम ठप होने से मामला ठंडे बस्ते में चला गया और मालिकों ने वेतन का भुगतान करना रोक दिया.

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अमेठी स्थित सम्राट साइकिल की बंद बड़ी फैक्ट्री (फोटो: विवेक विक्रम सिंह)

जमीन देने वाले किसान परेशानी में, लेकिन कोई सुध लेने वाला नहीं

सरकारें आईं और गईं; कई विधानसभा और लोकसभा चुनाव हुए. इस प्रक्रिया में सोनिया गांधी और राहुल गांधी भी आए और गए, लेकिन किसी ने किसानों की शिकायतों को सुनने की जहमत नहीं उठाई. नतीजा- अब राहुल गांधी जब भी अमेठी जाते हैं तो कांग्रेस अध्यक्ष को किसानों के विरोध का सामना करना पड़ता है, खास तौर पर उन लोगों का जो जमीन अधिग्रहण और रोजगार के नाम पर ठगे गए और अब उनके पास रोजी-रोटी कमाने के लिए संघर्ष करने जैसी हालत है. किसानों की मांग है कि उनकी जमीन को वापस लौटाया जाए ताकि वे अपनी आजीविका के लिए एक बार फिर से खेती का काम शुरू कर सकें.

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योगेंद्र पाठक का तो यहां तक कहना है कि उन्हें कम से कम कुछ नकदी चाहिए ताकि बेहतर ढंग से आजीविका हासिल करने के लिए वह एक ठीक ढंग की दुकान खोल सकें. उन्होंने बताया, 'बिना पैसे और आय के नियमित साधन के अभाव मैं किस तरह से बेहतर जीवन की उम्मीद कर सकता हूं? मुझे सरकार के आह्वान पर अपनी जमीन देने का अफसोस है. हमने अपने राजनीतिक नेताओं से अपील की है कि वे हमारी जमीन वापस दिलाने में हमें मदद करें, लेकिन हमारी हालत को लेकर कोई चिंतित नहीं नजर आता.'

ललन भी कुछ ऐसे ही निराशाजनक तरीके से अपनी बात रखते हैं. उन्होंने कहा, 'हम अब यह महसूस करते हैं कि अपनी जमीन समर्पित कर देना सबसे बड़ी गलती थी. हालांकि, उस वक्त हमारे पास कोई विकल्प नहीं था, उसी तरह अब भी हमारे पास विकल्प नहीं है.' उन्होंने आगे बताया, 'चुनाव के दौरान राजनीतिक नेता वोट मांगने आते हैं और वादा करके जाते हैं. हालांकि, चुनाव खत्म होने के बाद वे पूरी तरह से अपने चुनावी वादे भूल जाते हैं.'

वकील और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के पूर्व जिला अध्यक्ष उमाशंकर पांडे के मुताबिक, इस मामले में एक बुनियादी गड़बड़ी है, जिस पर इससे संबंधित किसी भी पक्ष ने बिल्कुल ध्यान नहीं दिया है. उन्होंने बताया, 'औद्योगिक मकसद के लिए अधिग्रहण की गई जमीन का इस्तेमाल औद्योगिक गतिविधियों के लिए ही किया जाना चाहिए और इसे किसी प्राइवेट ट्रस्ट या संगठन को नहीं दिया जाना चाहिए.'

पांडे ने पिछले कुछ साल में इस मुद्दे को जमकर उठाया है. 2014 के लोकसभा चुनावों में उन्होंने बीजेपी नेता स्मृति ईरानी को कांग्रेस पर हमला करने के लिए इसे इस्तेमाल करने की सलाह भी दी थी. राहुल गांधी पर दबाव बनाने के लिए ईरानी अमेठी की अपनी हर रैली में इस मुद्दे को उठा रही हैं, लेकिन इसका असर नहीं दिख रहा है.

गौरतलब है कि राज्य सरकार ने 1984 में कौहर औद्योगिक इलाके में सम्राट बाइसिकल्स की मैन्युफैक्चरिंग ईकाई स्थापित करने के लिए 65.57 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया था. सम्राट बाइसिकल्स का मालिकाना हक संजय जैन के पास है. इस सिलिसिले में मौजूद दस्तावेजों के मुताबिक, यूपीएसआईडीसी ने 8 अगस्त 1986 को 65.57 एकड़ जमीन का रजिस्ट्रेशन किया था.

जोर पकड़ रही है किसानों को जमीन लौटाने की मांग

फैक्ट्री द्वारा दो साल बाद मैन्युफैक्चरिंग का काम बंद कर दिया गया था और तकरीबन तीन दशक बाद 24 फरवरी 2014 को 20.10 करोड़ रुपए में जमीन की नीलामी की गई. नीलामी के बाद जमीन राजीव गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट को ट्रांसफर कर दी गई, जिसने स्टांप ड्यूटी के रूप में 50,000 रुपए का भुगतान किया. इसके कुछ समय बाद एक विचित्र घटनाक्रम के तहत यूपीएसआईडीसी ने इस नीलामी को अवैध करार दिया और मामला गौरीगंज सब-डिविजन के मैजिस्ट्रेट की अदालत में पहुंच गया. अदालत ने सम्राट बाइसिकल्स को यूपीएसआईडीसी को जमीन लौटाने का आदेश दिया.

राजीव गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट को जमीन की बिक्री के फैसले का बचाव करते हुए कांग्रेस के जिला अध्यक्ष योगेंद्र मिश्रा ने कहा, 'ट्रस्ट ने कानूनी तरीके से जमीन के लिए बिड कर इसे हासिल किया. अगर कोई गैर-कानूनी सौदा हुआ या किसी तरह की गड़बड़ी हुई तो इसके लिए यूपीएसआईडीसी, अमेठी प्रशासन और सम्राट बाइसिकल्स को जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए, न कि राजीव गांधी ट्रस्ट पर इसका ठीकरा फोड़ा जाना चाहिए.'

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इस सिलसिले में प्रतिक्रिया के लिए उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष राज बब्बर को फोन किया गया, लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो पाया. हालांकि, वरिष्ठ वकील और न्यायिक कार्यकर्ता कन्हैया पाल ने बताया, 'मुझे नहीं पता कि संबंधित लोगों द्वारा इस मामले को क्यों लटकाया जा रहा है. कानून के मुताबिक, अगर वह मकसद खत्म हो चुका है, जिसके लिए सरकार ने जमीन का अधिग्रण किया था, तो जमीन को फिर से इसके मूल मालिकों को लौटा दिया जाना चाहिए. मौजूदा मामले में अगर स्थापित की गई साइकिल फैक्ट्री का काम कुछ समय बाद बंद हो गया तो प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए किसानों को जमीन लौटा दी जानी चाहिए.'

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अपने संसदीय क्षेत्र अमेठी में लोगों से मिलते हुए राहुल गांधी (फोटो: ट्विटर से साभार)

जमीन पर मालिकाना हक संबंधी विवाद के बीच यह समस्या बरकरार है कि सही मालिक अपनी जमीन से वंचित कर दिए गए और इसका अब इस्तेमाल नहीं हो रहा है जबकि इस पर खेती की जानी चाहिए. फैक्ट्री का इंफ्रास्ट्रक्चर भी उपेक्षित अवस्था में हैं, जबकि स्थानीय लोगों के लिए कुछ उत्पादक परियोजनाएं तैयार की जा सकती थीं.

लोकसभा चुनाव करीब है और ऐसे में भारतीय जनता पार्टी और अन्य पार्टियां कांग्रेस और गांधी परिवार को किनारे करने के लिए फिर से इस मुद्दे का इस्तेमाल करेंगी. पिछले हफ्ते जब राहुल गांधी ने अमेठी का दौरा किया, तो किसानों ने इसका विरोध किया और अपनी जमीन वापस लौटाए जाने की मांग की. हालांकि, इस दौरान किसानों के विरोध पर कांग्रेस अध्यक्ष का ज्यादा ध्यान नहीं गया, जो फिलहाल छोटे-मोटे स्थानीय मामलों में फंसने के बजाय बड़ी चीजों पर नजरें केंद्रित कर रहे हैं. इस बीच, इस पूरे विवाद का केंद्र जैन परिवार पूरे भारत में सफलापूर्वक अपना साइकिल मैन्युफैक्चरिंग बिजनेस चला रहा है.

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