(नोट: यह लेख पूर्वांचल में इंसेफेलाइटिस से मरते मासूम बच्चों की मौतों पर सीरीज की पांचवी किस्त है. इस सीरीज में इंसेफेलाइटिस के अलावा हमारी बीमार स्वास्थ्य व्यवस्था की तहकीकात कर रहे हैं अाशुतोष कुमार सिंह)
रोटी कपड़ा और मकान के बाद चौथी सबसे जरूरी चीज चिकित्सा सेवा को माना गया है. मनुष्य के जीवन-मृत्यु के बीच चिकित्सा सेवा एक मजबूत कड़ी है. जब यह कड़ी टूटती है तो जीवन-मृत्यु के बीच का फासला भी कम हो जाता है. भारत जैसे विकासशील देश में यह फासला कुछ ज्यादा ही है. आधुनिक स्वास्थ्य व्यवस्था के आने के बावजूद कई ऐसे हादसे हुए हैं अथवा कराए गए हैं जो चीख-चीख कर कह रहे हैं कि स्वास्थ्य मानकों पर हम भारतीय अभी कोसो दूर हैं.
भारत में राजनीतिक रूप से सबसे मजबूत कहे जाने वाले राज्य उत्तर प्रदेश भी पिछले कई दशकों से चिकित्सा सेवा दुरुस्त करने का दावा कर रहा है. लेकिन तमाम दावों के बाद भी जीवन-मृत्यु के फासले को यह प्रदेश दूर करने में सफल नहीं हो पाया है. स्वास्थ्य-सेवा में सुधार करने के लिए सरकारे बजट बनाती हैं, बजट का आवंटन होता है. लेकिन तय समय पर शायद ही कोई काम हो.
यूपी का गोरखपुर परिक्षेत्र बेसक इन दिनों जापानी इंसेफेलाइटिस/एक्यूट इंसेफलाइटिस के कारण चर्चा में है, बावजूद इसके अन्य तमाम बीमारियों से भी लोग स्वास्थ्य सेवा के अभाव में अपनी जान गंवा रहे हैं.
राजनीति के खेल में मर रहे हैं पूर्वांचल के लोग
पूर्वांचलियों की स्वास्थ्य सेवा के लिहाज से गोरखपुर एक प्रमुख केन्द्र रहा है. विगत वर्षों में यहां की स्वास्थ्य सुविधाओं का भार बीआडी मेडिकल कॉलेज उठा रहा है. यह मेडिकल कॉलेज अपने स्थापना काल से ही किस दूर्गति को प्राप्त है, किसी से छुपी हुई बात नहीं है.
इंसेफेलाइटिस ने इस अस्पताल को किलर अस्पताल के रूप में कुख्यात कर दिया है. अस्पताल में न तो पर्याप्त ड़ॉक्टर हैं और न ही स्पेशलिस्ट नर्सिंग स्टॉफ. जो हैं उन्हें समय से वेतन तक नहीं मिल पाता. जिसका परिणाम हम सब देख ही चुके हैं.
किस तरह कोई डॉक्टर निजी प्रैक्टिस करते हुए पकड़ा गया तो कोई ऑक्सिजन सिलेंडर में हेरा-फेरी करते हुए. यहां की साफ-सफाई की जो अव्यस्था है, वो भी किसी से छुपी हुई बात नहीं है. ऐसे में आज चर्चा बीआरडी की न कर के गोरखपुर में बनने जा रहे अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान का करना जरूरी है. क्योंकि आने वाले समय में इस अस्पताल पर पूर्वांचल की स्वास्थ्य व्यवस्था की बड़ी जिम्मेदारी आने वाली है.
गोरखपुर में एम्स, का बात करते हैं!
एक महीना पहले गोरखपुर के बीआरडी अस्पताल का जायजा लेने जब गया था तब मैंने वहां के कुछ लोगों से गोरखपुर में बनने वाले एम्स के बारे में जानना चाहा. 8-10 लोगों से हुई बातचीत में 1 व्यक्ति ऐसे मिले जिन्हें पता था कि गोरखपुर में एम्स खुलने वाला है. बाकी किसी के पास एम्स की जानकारी नहीं थी.
जिन्हें पता था वे भी जाते-जाते यह कह गए कि भाई साहब एम्स का खेल बस राजनीतिक फायदे के लिए खेला जा रहा है. उनकी बात सुनकर उस समय ठीक से कुछ समझ में नहीं आया था. और वे भाई साहब ठीक से समझाने की बजाए अपना गमछा सीधा करते हुए चले गए. तब से एम्स के राजनीतिक खेल को समझने का प्रयास कर रहा हूं.
2014 से चल रहा है गोरखपुर एम्स का राजनीतिक खेल
2014 में लोकसभा चुनाव-प्रचार के दौरान नरेन्द्र मोदी ने गोरखपुर का दौरा किया था. वहां के मानबेला मैदान में हजारों लोगों के सामने उन्होंने वादा किया था कि उनकी सरकार बनेगी तो गोरखपुर को एम्स की सौगात दी जाएगी. उनके इस वायदे पर खूब तालियां बजी थीं. पूर्वांचलियों ने जमकर बीजेपी को वोट दिया और नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने में मुख्य भूमिका निभाई.
सरकार बनते ही गोरखपुर के लोगों ने सरकार पर यह दबाव बनाने की कोशिश शुरू कर दी कि अब मोदी जी अपने वायदे के मुताबिक एम्स जल्द से जल्द खुलवाएं. लेकिन शुरू के एक-डेढ़ साल तक मोदी जी ने इसकी सूध नहीं ली.
यूपी विधानसभा चुनाव बनाम एम्स
उत्तर प्रदेश में चुनावी बिगुल बजने वाला था. यह बात केन्द्र को अच्छी तरह से पता था कि अगर चुनाव के पहले एम्स पर कुछ नहीं किया गया तो पूर्वांचल में वोट पाना मुश्किल हो जाएगा. कैबीनेट ने आनन-फानन में गोरखपुर में एम्स खोलने की मंजूरी दे दी.
जिस तेजी से एम्स खोलने की मंजूरी मिली उसी तेजी से इसका उद्घाटन करने के लिए भी प्रधानमंत्री मोदी 22 जुलाई, 2016 को पहुंच गए. लीजिए एम्स का उद्घाटन भी हो गया. कमाल की बात यह थी कि उद्घाटन होने तक एम्स को प्रस्तावित जमीन हंस्तांतरित तक नहीं की गई थी. इसके बाद शुरू हुआ दबाव व प्रभाव का खेल.
जब सांसद योगी जी हुए सक्रिय
कमाल की बात यह है कि गोरखपुर में एम्स खुलने-खोलने को लेकर सपा-भाजपा में खूब राजनीतिक बयानबाजियां हुईं. एम्स का शिलान्यास होने के बाद भी जब सपा की सरकार एम्स के नाम पर भूमि का हस्तांतरण नहीं कर रही थी तब गोरखपुर के सांसद योगी आदित्यनाथ राज्य के मुख्य सचिव पर लगातार दबाव बना रहे थे.
वे उनको चेताते हुए यह कह रहे थे कि भारत सरकार आवश्यक धन राशि अवमुक्त करना चाहती हैं जिससे निर्माण कार्य प्रारंभ हो सके. लेकिन प्रदेश सरकार एम्स के नाम से भूमि आबंटन करने में अनाकानी कर रही है. प्रदेश सरकार ऐसा कर के पूर्वांचल के लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सेवा से वंचित कर रही है.
इसकी शिकायत सांसद योगी जी ने केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा से उनके गोरखपुर आगमन पर की. 1 अक्टूबर 2016 को स्वास्थ्य मंत्री ने गोरखपुर का दौरा किया था. उनकी शिकायत का कोई असर नहीं हुआ तो योगी जी ने पुनः 26 अक्टूबर तथा 10 नवंबर, 2016 को इस बावत स्वास्थ्य मंत्री का ध्यान आकृष्ट कराया.
13 नवंबर को, 2016 को स्वास्थ्य मंत्री को यह बताया गया कि गन्ना शोध संस्थान की भूमि का आवंटन एम्स के पक्ष में नहीं किया गया है, जिसके कारण एम्स के निर्माण में अऩावश्यक देरी हो रही है. इसके बाद इस संदर्भ में स्वास्थ्य मंत्री जी ने योगी आदित्यनाथ को अपना दूत बनाकर राज्य के मुख्य सचिव से बातचीत करने को कहा.
केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री के कहने पर योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश के मुख्य सचिव राहुल भटनागर से इस बावत बातचीत की और एम्स के निर्माण में हो रही देरी पर फटकार लगाते हुए कहा कि कुड़ाघाट स्थित गन्ना शोध संस्थान की भूमि एम्स के नाम से जल्द आबंटित करना चाहिए, जिससे एम्स का निर्माण कार्य जल्द शुरू हो सके. उन्होंने आश्वासन दिया की यह कार्य जल्द हो जाएगा.
अखिलेश सरकार का मास्टर स्ट्रोक
एम्स के नाम पर बीजेपी को राजनीतिक फायदा होता देख यूपी के सीएम अखिलेश यादव ने बिना देर किए जमीन हस्तांतरण की प्रक्रिया को पूरा करने का आदेश दिया. उन्हें यह लगने लगा कि अगर अब देरी होगी तो सरकार की साख को बट्टा लगेगा.
लंबी कागजी कार्रवाई के बाद गन्ना शोध संस्थान के निदेशक डॉ. बीएल शर्मा ने प्रदेश के चिकित्सा शिक्षा विभाग के नाम जमीन का हस्तांतरण कर दिया. इतना ही नहीं राज्य सरकार ने पॉवर कॉरपोरेशन को 25एमवीए की बिजली मुहैया कराने का निर्देश भी दे दिया. साथ ही जल निगम को रोज 15 लाख लीटर पानी की व्यवस्था करने को कहा गया. वहीं पीडब्ल्यूडी को एम्स तक फोरलेन बनाने का आदेश कर दिया गया.
विधान सभा चुनाव के पूर्व राज्य सरकार ने ऐसा कर के एम्स को लेकर चल रहे राजनीतिक खेल में अपनी बढत बना ली. अब गेंद केन्द्र के पास थी. लेकिन सोचने वाला प्रश्न यह भी है कि जब एम्स के लिए जगह का आवंटन हुआ ही नहीं था तो प्रधानमंत्री जी को उसका शिलान्यास करने की क्या हड़बड़ी थी.
यूपी में योगी राज!
एम्स के इस खेल में राजनीतिक फायदा आदित्यनाथ योगी को हुआ. यूपी में बीजेपी की सरकार बनी और योगी जी मुख्यमंत्री बने. अब केन्द्र में मोदी राज और राज्य योगी राज. ऐसे में गोरखपुर की जनता को लगा कि अब तो एम्स जरूर जल्द बन जायेगा. 26 मार्च, 2017 को मुख्यमंत्री बनने के चार महीने बाद 14 जुलाई, 2017 को यूपी के सीएम आदित्यनाथ योगी ने यह घोषणा की कि सितंबर 2018 तक एम्स का ओपीडी शुरू हो जाएगा.
इसी दिन अपनी मौजूदगी में केंद्र और राज्य सरकार के बीच एम्स के समझौता पत्र पर हस्ताक्षर किया गया. जिसमें कहा गया कि यह एम्स 1749.60 करोड़ रुपये की लागत से तैयार होगा. 750 बिस्तरों वाले इस अस्पताल के बनने से पूर्वांचल की स्वास्थ्य व्यवस्था में क्रांतिकारी सुधार होगा.
प्रदेश में प्रस्तावित छह एम्स में से यह पहला है. इस अवसर पर केंद्र सरकार की ओर से स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, पीएमएसएसवाई डिवीजन के संयुक्त सचिव सुनील शर्मा और प्रदेश सरकार की ओर से चिकित्सा शिक्षा विभाग की अपर मुख्य सचिव डॉ. अनीता भटनागर जैन ने समझौता-पत्र पर हस्ताक्षर किए.
इसमें यह तय हुआ कि कुल बजट में 1011 करोड़ रूपये केन्द्र सरकार वहन करेगी जबकि शेष राशि राज्य सरकार. इस मौके पर सीएम ने कहा कि गोरखपुर में अभी सिर्फ बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज ही है. उस पर आसपास के जिलों के मरीजों का भी दबाव रहता है. गम्भीर बीमारियों का इलाज कराने मरीजों को लखनऊ, दिल्ली जाना पड़ता है.
अब एम्स से पूर्वांचल और आस-पास के लोगों को राहत मिलेगी. अपर मुख्य सचिव चिकित्सा शिक्षा ने बताया कि एम्स गोरखपुर जिले के महादेव झारखण्डी गांव में 45.326 हेक्टेयर क्षेत्रफल में बनने जा रहा है. प्रदेश सरकार ने चिह्नित जमीन 90 वर्ष की लीज पर केन्द्र सरकार को उपलब्ध करवाई है.
चिकित्सा शिक्षा मंत्री आशुतोष टण्डन,चिकित्सा शिक्षा राज्यमंत्री संदीप सिंह, महानिदेशक चिकित्सा शिक्षा डॉ. केके गुप्ता, केजीएमयू के कुलपति डॉ. एमएलबी भट्ट, एसजीपीजीआई के डायरेक्टर डॉ. राकेश कपूर, आरएमएल इंस्टिट्यूट के डायरेक्टर डॉ. दीपक मालवीय सहित कई वरिष्ठ अधिकारियों की उपस्थिति में यह शुभ कार्य संपन्न हुआ.
ऐसा होगा एम्स का ढांचा
गोरखपुर में बन रहे एम्स में 750 बेड होंगे. एक अकादमिक परिक्षेत्र और मरीजों के तीमारदारों के ठहरने के लिए रैन बसेरे होंगे. एक ऑडिटोरियम, गेस्ट हाउस का भी निर्माण किया जाएगा. इसके अलावा 172 आवासों के साथ 120 छात्रों तथा 240 छात्राओं (कुल 360) के लिए हॉस्टल की स्थापना की जाएगी. 599 विद्यार्थियों के लिए पीजी हॉस्टल तथा 432 नर्सिंग स्टूडेंट के लिए भी हॉस्टल बनाया जाएगा. ओपीडी में तीन संकाय होंगे, जिनमें सर्जिकल, मेडिसिन तथा स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग सहित 29 विभाग प्रस्तावित हैं.
अभी भी नहीं शुरू हुआ है एम्स का काम
एम्स को लेकर चली आ रही राजनीतिक खेल को अब तक आप सभी समझ ही चुके होंगे. कमाल की बात यह है कि राज्य एवं केन्द्र के बीच हुए एम्स समझौता के भी दो महीने गुजर गए लेकिन एम्स में एक भी ईट का काम नहीं हुआ है. ऐसे में बड़ा प्रश्न यह है कि आखिर पूरबियों की संवेदनाओं से ये नेता कब तक खेलते रहेंगे!
क्या मुख्यमंत्री को अब भी कोई बहाना चाहिए. अब किसके कारण यह लेट-लतीफी हो रही है, इसका जवाब मुख्यमंत्री जी को देना चाहिए. साथ ही उन्हें यह भी बताना चाहिए कि सितंबर, 2018 तक किस कार्ययोजना के तहत गोरखपुर एम्स में ओपीडी शुरू हो जाएगा?
एम्स का यह हाल है तो बाकी का क्या होगा
22 जुलाई, 2016 को प्रधानमंत्री ने गोरखपुर में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान का उद्घाटन किया था. 2019 तक इसे पूरा करने का वादा किया गया था. लेकिन उसकी जो स्थिति आज दिख रही है उसे देखते हुए यह तो कहा ही जा सकता है कि मेडिकल कॉलेज में ही 150 करोड़ की जिस सुपर स्पेशलिटी सेंटर का शिलान्यास अक्टूबर 2016 में केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने किया था उसका क्या हाल होगा.
इसमें 8 विभाग, 140 बेड, 40 आईसीयू बेड, 60 ओटी, एक कैटलॉग, और 18 पीजी की सीटें होंगी. कहने के लिए कहा गया था कि 18 महीने में यह तैयार हो जायेगा लेकिन उसका भी हाल एम्स जैसा ही है. इस वर्ष भी 85 करोड़ रुपए की लागत से गोरखपुर में एक शोध संस्थान खोले जाने की घोषणा भी हुई है, उसका क्या हाल होगा अभी यह देखा जाना बाकी है.
(लेखक स्वास्थ्य कार्यकर्ता हैं. हाल ही में स्वस्थ भारत अभियान के तहत 'स्वस्थ बालिका-स्वस्थ समाज' का संदेश देने के लिए 21000 किमी की भारत यात्रा कर लौटे हैं. )
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