देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) में काफी समय से चल रहे विवाद पर सप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुना दिया है. सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा को केंद्र सरकार द्वारा छुट्टी पर भेजे जाने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के फैसले को पलटते हुए आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजने का फैसला रद्द कर दोबारा से बहाल कर दिया है. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार द्वारा नागेश्वर राव को अंतरिम डायरेक्टर बनाने के फैसले को भी रद्द कर दिया है.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में ये भी है कहा है कि आलोक वर्मा तब तक कोई नीतिगत फैसला नहीं लेंगे जब तक सेलेक्ट कमेटी उन पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की गहराई से जांच न कर ले. कोर्ट ने सेलेक्ट कमेटी को सात दिनों के अंदर फैसला लेने को कहा है. अब सात दिनों के अंदर सेलेक्ट कमेटी आलोक वर्मा के बचे कार्यकाल पर फैसला लेगी. आलोक वर्मा का कार्यकाल 31 जनवरी को खत्म हो रहा है. बता दें कि सेलेक्ट कमेटी में देश के प्रधानमंत्री, सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश और नेता प्रतिपक्ष होते हैं.
पिछले साल 23 अक्टूबर को केंद्र सरकार ने सीबीआई के दो वरिष्ठ अधिकारियों को छुट्टी पर अचानक भेज दिया था. सीबीआई के डायरेक्टर आलोक वर्मा और सीबीआई में नंबर 2 की हैसियत रखने वाले स्पेशल डायरेक्टर राकेश आस्थाना को छुट्टी पर भेज कर नागेश्वर राव को अंतरिम डायरेक्टर बना दिया था. इस फैसले को सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. काफी लंबी सुनवाई के बाद आखिरकार सुप्रीम कर्ट ने मंगलवार आलोक वर्मा को बहाल तो कर दिया है, लेकिन सात दिनों तक कोई नीतिगत फैसला लेने पर रोक लगा दी है.
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद अब सवाल यह उठता है कि सीबीआई के अंदर अब क्या-क्या बदलाव देखने को मिलेंगे? इस फैसले के बाद सीबीआई जो दो खेमे में बंटी हुई थी उसमें भी कुछ बदलाव आएंगे? पिछले कई दिनों से सीबीआई के अंदर कामकाज की रफ्तार धीमी थी. सीबीआई अधिकारियों की विंटर वेकेशन चल रही थी जो अब खत्म होने वाली है.
ऐसे में अक्टूबर से अब तक सीबीआई के अंदर कुछ ज्यादा काम नहीं हो रहा था. अधिकारी कोई फैसला लेने से डर रहे थे और फाइल में नोटिंग करने से भी कतरा रहे थे. ऐसे में इस फैसले के बाद भी कहा जा रहा है कि नए सीबीआई डायरेक्टर की नियुक्ति तक अमूमन यही स्थिति बनी रहेगी. क्योंकि, अब भी सुप्रीम कोर्ट ने आलोक वर्मा को नीतिगत फैसला लेने का अधिकार नहीं दे रखा है.
लाख टके का सवाल यह है कि क्या सेलेक्ट कमेटी की बैठक एक सप्ताह के अंदर होगी? क्या सरकार के पास कोई विकल्प है कि सुप्रीम कोर्ट ने जो सात दिनों की डेड लाइन दी है, उसे आगे बढ़ाया जा सके? इस पर जानकारों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि एक हफ्ते के अदंर में ही देश के प्रधानमंत्री, चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया और नेता प्रतिपक्ष बैठ कर फैसला लें.
क्योंकि आलोक वर्मा के पास बहुत कम वक्त है और उनके वकील प्रशांत भूषण का तर्क भी है कि अक्टूबर से जनवरी तक काफी वक्त इसमें लग गया है इसलिए इस मामले को अब लंबा नहीं खींचा जाए. इस लिहाज से लगता है कि सात दिनों के अंदर ही सेलेक्ट कमेटी किसी निर्णय पर पहुंच जाएगी.
कुलमिलाकर अगले सात दिनों तक सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा के लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है. हो सकता है कि सेलेक्ट कमेटी आलोक वर्मा पर लगे भ्रष्टाचार के मामले पर सीवीसी जांच पर जवाब मांगे या फिर कोई और फैसला ले. या फिर हो सकता है कि आलोक वर्मा को सरकार के खिलाफ खासकर राफेल डील से संबंधित किसी मामले से अलग रखे. केंद्र सराकर का तर्क होगा कि अब आलोक वर्मा दुर्भावना से ग्रस्त हो कर काम करेंगे इसलिए उनको बचे हुए कार्यकाल तक दूर ही रखा जाए.
आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने जिस सेलेक्ट कमेटी की बैठक बुलाई है उसमें नेता प्रतिपक्ष जाएंगे कि नहीं जाएंगे उस पर संशय बरकरार है. बता दें कि लोकपाल चयन करने वाली कमेटी में भी यही तीन लोग शामिल हैं और नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे उस बैठक में शामिल नहीं हो रहे हैं.
खड़गे का कहना है कि उनको सिर्फ एक दर्शक के तौर पर बुलाया जाता है. इसलिए बैठक में नहीं जाते हैं. संभव है इस मामले में भी खड़गे कहें कि हमको सिर्फ एक दर्शक के तौर पर अगर बुलाया जाएगा तो हम नहीं जाएंगे. हालांकि जानकारों का मानना है कि यह मामला अलग है और इसमें मल्लिकार्जुन खड़गे की राय अहम साबित होगी और वो राजनीतिक लाभ भुना सकते हैं.
तीन लोगों की सेलेक्ट कमेटी में दो ऐसे लोग हैं, जो इस मामले को पूरी तरह से समझ चुके हैं. देश के प्रधान न्यायाधीश और पीएम को यह मामला पूरी तरह से समझ में आ चुका है. रही बात नेता प्रतिपक्ष की तो वह भी इस मामले में कोर्ट पहुंचे हुए हैं. हालांकि, सीबीआई डायरेक्टर वर्मा के चयन के वक्त खड़गे ने आलोक वर्मा के चयन का विरोध किया था तब मामला 2-1 से वर्मा के पक्ष में चला गया था. लेकिन बदलते घटनाक्रम के बीच खड़गे भी पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट में वर्मा के ट्रांसफर को चैलेंज किया था. खड़गे की तरफ से वरिष्ठ वकील और कांग्रेसी नेता कपिल सिब्बल ने कोर्ट में पेश होकर दलील दी थी कि क्योंकि सेलेक्ट कमेटी ने ही वर्मा का चयन किया था इसलिए वर्मा को हटाने या छुट्टी पर भेजने के आधिकार भी सेलेक्ट कमेटी के पास ही होना चाहिए.
अब देखना यह है कि अगले सात दिनों में सेलेक्ट कमेटी किसी सहमति पर राजी होती है या फिर मल्लिकार्जुन खड़गे की राय अन्य दो की राय से अलग होती है. लेकिन, कुलमिलाकर सीबीआई को करीब से जानने वालों की राय है कि सुप्रीम कोर्ट के आज के फैसले से सीबीआई डायरेक्टर का पद और मजबूत हुआ है और कभी सीबीआई पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वह पिंजरे में बंद तोता है उसको सुप्रीम कोर्ट ने आजाद करने का काम किया है.
कुलमिलाकर सुप्रीम कोर्ट के आज के फैसले से यह भी साफ हो गया है कि सीबीआई डायरेक्टर पर किसी प्रकार का अगर कोई एक्शन भविष्य में लिया जाता है तो वह निर्णय भी सेलेक्ट कमेटी ही लेगी न कि सत्तारूढ़ दल के नुमाइंदे.
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