एडल्ट्री पर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के साथ यह दूसरा मौका है, जब जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने अपने पिता और भारत के पूर्व चीफ जस्टिस वाईवी चंद्रचूड़ के फैसले को पलट दिया है. इससे पहले, पिछले साल अगस्त में भी जस्टिस चंद्रचूड़ ने निजता के मुद्दे पर अपने पिता के द्वारा दिए गए एक फैसले को पलट दिया था.
उनके पिता ने 33 साल पहले एडल्टरी कानून की वैधता को बरकरार रखा था. जबकि जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने गुरुवार को इस फैसले को पलटते हुए कहा कि पहले के विचार को संवैधानिक स्थिति की ‘सही व्याख्या’ नहीं माना जा सकता है.
पिछले साल अगस्त में दिए अपने ऐतिहासिक फैसले में उन्होंने निजता को ‘मूल अधिकार’ घोषित किया था. उन्होंने एडीएम जबलपुर मामले में 1976 के फैसले को ‘काफी त्रुटिपूर्ण’ करार दिया था. इस मामले पर उनके पिता पांच सदस्यीय संविधान पीठ के बहुमत वाले फैसले का हिस्सा थे.
डीवाई चंद्रचूड़ के पिता ने धारा 497 को रखा था अपराध की श्रेणी में
एडीएम जबलपुर मामले में पांच सदस्यीय संविधान पीठ 4:1 के बहुमत के फैसले से इस निष्कर्ष पर पहुंची थी कि आर्टिकल 21 जीवन के सभी अधिकारों और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का एकमात्र भंडार है और जब इसे निलंबित कर दिया जाता है तब वे सभी अधिकार एक साथ छीन लिए जाते हैं.
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने एडल्ट्री को अपराध की श्रेणी में रखने वाली धारा 497 को रद्द करने के अपने फैसले के साथ इसी विषय पर अपने पिता के 1985 के निर्णय को पलट दिया.
सोमित्री विष्णु बनाम भारत सरकार मामले में तीन जजों की पीठ के 27 मई 1985 के फैसले को तत्कालीन सीजेआई वाईवी चंद्रचूड़ ने लिखा था, जिन्होंने आईपीसी की धारा 497 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी थी.
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