आरुषि हत्याकांड पर इलाहाबाद हाईकोर्ट गुरुवार को फैसला सुनाएगा. 16 मई 2008 को नोएडा में आरुषि अपने घर में मृत मिली थी. आरुषि की हत्या हुए करीब 9 साल हो चुके हैं. लेकिन अभी भी इस केस को शक की निगाहों से देखा जा रहा है. अभी भी यह सवाल बना हुआ है- क्या राजेश और नूपुर तलवार ने अपनी बेटी को मारा या फिर बेगुनाह हैं?
नोएडा पुलिस से मामला सीबीआई पहुंचा. 26 नवंबर 2013 को सीबीआई कोर्ट ने तलवार दंपत्ति को दोषी करार दिया. हालांकि अभी भी तलवार दंपत्ति अपने ऊपर लगे सभी आरोपों से इंकार करती है.
आरुषि मर्डर केस पर पत्रकार अविरूक सेन ने किताब लिखी है. अपनी किताब में अविरूक सेन ने सीबीआई की जांच प्रक्रिया पर सवाल उठाए हैं और तलवार दंपत्ति का बचाव किया है.
किताब में दावा किया गया है कि घटनास्थल की तस्वीरों के साथ छेड़छाड़ हुई है. इतना ही नहीं बिना कोर्ट की इजाजत के सील कवर से भी सबूतों को निकाला गया था. सीबीआई ने घटनास्थल पर जो नमूने इकट्ठा किए और प्रयोगशाला भेजे, उनके साथ कथित तौर पर छेड़खानी की गई है.
वहीं किताब में रिपोर्ट की अनदेखी की बात भी कही गई है. अविरूक के मुताबिक अगर रिपोर्ट को ध्यान से पढ़ा गया होता तो तलवार दंपत्ति के उस कथन को मजबूती मिलती कि घर में कोई बाहरी व्यक्ति दाखिल हुआ था.
वहीं सीबीआई के एक अफसर धनकर ने 2008 में लैब को पत्र भी लिखा था. अफसर के मुताबिक हेमराज का तकिया और उसका खोल, जिस पर खून लगा था, वो आरुषि के कमरे में मिले थे.
जबकि सीबीआई ने अपनी क्लोजर रिपोर्ट में कहा था कि हेमराज का सामान उसके कमरे से ही मिला था.
तलवार दंपत्ति के यहां से स्कैल्पल बरामद नहीं हुई
किताब के मुताबिक, सीबीआई का कहना था कि आरुषि की हत्या राजेश तलवार ने एक गॉल्फ स्टिक से की जिसे कथित तौर पर बाद में अच्छे से साफ किया गया, लेकिन मुकदमे में अभियोजन पक्ष ने एक दूसरी गोल्फ स्टिक को पेश किया.
अविरूक सवाल उठाते हैं कि अभियोजन पक्ष मुकदमे के दौरान दो गोल्फ स्टिक कैसे पेश कर सकता है. उनके अनुसार, सरकारी वकील की ओर से दलील दी गई कि आरुषि का गला स्कैल्पल या डेंटिस्ट द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली छुरी से काटा गया.
लेकिन सीबीआई ने कभी भी तलवार दंपत्ति के यहां से ऐसे स्कैल्पल को बरामद नहीं किया. साथ ही किसी भी स्कैल्पल को फॉरेंसिक प्रयोगशाला में नहीं भेजा गया.
सेन के अनुसार, इस बात की फॉरेंसिक जांच की कोशिश भी नहीं की गई कि स्कैल्पल से हत्या की भी जा सकती है या नहीं. सीबीआई अदालत में जांच अधिकारी की बात को प्रमुखता दी गई जिसे फॉरेंसिक जांच के बारे में नहीं पता था.
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