बुजुर्गों के मुंह से अक्सर सुना करते थे कि पुलिस की मार के आगे भूत भी भागते हैं. कोर्ट-कचहरियों में गाहे-ब-गाहे सुना जाता रहा है कि कानून के हाथ बहुत लंबे होते हैं. कानून-पुलिस अपनी पर उतर आएं तो मुजरिम बच नहीं सकता है. आरुषि तलवार और हेमराज मामले की 9 साल जिस तरह फाइलों में जांच पड़ताल को दौड़ाया गया, और अंत में सब कुछ धड़ाम से औंधे मुंह गिरा, उसने तो कम से कम इन तमाम कहावतों को बेमानी ही करार दिया है.
देश को झकझोर देने वाले इस दोहरे हत्याकांड पर निचली अदालत ने तलवार दंपत्ति को उम्रकैद की सजा सुना दी. उच्च न्यायालय को निचली अदालत के फैसले में झोल नजर आए, सो उसने नुपुर तलवार राजेश तलवार को बाइज्जत बरी कर दिया. यहां तक सब ठीक है. इस सबके बाद सवाल यह पैदा होता है कि, आखिर आरुषि और हेमराज की हत्याओं से पर्दा तो इस सबके बाद भी नहीं उठा.
कहने सुनने और देखने को पहली जांच उस पुलिस के हवाले की गई थी, जिसके नाम से अच्छे-अच्छों को पसीना आ जाता है. जिस पुलिस के नाम से भूत भी बोलने लगते हैं. इस दोहरे हत्याकांड को अंजाम देने वालों तक वो पुलिस भी नहीं पहुंच पाई. यह जरूर हुआ कि, जिन पुलिस वालों ने इस मामले को शुरु में उजागर करने की कोशिश की थी, चाहे वो मेरठ रेंज के तत्कालीन पुलिस महा-निरीक्षक गुरदर्शन सिंह हों या फिर उस समय गौतमबुद्ध नगर (नोएडा) जिले के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक ए. सतीश गणेश. इन सभी अफसरों से उनकी कुर्सियां छीनकर उन्हें सूबे में यहां-वहां ले जाकर पटक दिया गया था. आखिर क्यों?
गुरदर्शन सिंह की प्रेस-कॉन्फ्रेंस से जगी थी उम्मीद
आईजी गुरदर्शन सिंह ने 23 मई 2008 को नोएडा पुलिस कंट्रोल रूम में शाम के वक्त एक बड़ी प्रेस-कॉन्फ्रेंस बुलाई. इस प्रेस-कॉन्फ्रेंस में आईजी ने जो कुछ जिस बेबाकी से उगला, वो काबिल-ए-तारीफ तो था. इसके साथ ही वो इतना कड़वा सच भी था कि, जिसने भी उस प्रेस कॉन्फ्रेंस को सुना (इस प्रेस कॉन्फ्रेंस की रिपोर्टिंग में मै भी शामिल हुआ था) उसे लगा था कि, बस अब कभी भी आरुषि-हेमराज के कातिल सलाखों के पीछे होंगे. फाइलों के पांवों पर एक अदालत से दूसरी अदालत तक दौड़ते हुए इस मामले को 9 साल गुजर गए.
इन 9 वर्षों में अगर इस दोहरे हत्याकांड में आज भी अगर मेरे जेहन से कुछ नहीं उतरा है तो वो है, उस समय मेरठ रेंज के पुलिस महा-निरीक्षक रहे गुरदर्शन सिंह की 23 मई 2008 वाली (हत्या के करीब 7 दिन बाद) वो प्रेस-कॉन्फ्रेंस और वो शाम. जब गुरदर्शन सिंह ने खुलासा किया कि आरुषि की हत्या उसके पिता राजेश तलवार ने की है. हत्या की वजह में गुरदर्शन ने बताया कि 'आरुषि- पिता राजेश तलवार के अवैध संबंधों की राजदार थी.' इस खुलासे ने एक लम्हे में राजेश तलवार को समाज में मुंह दिखाने काबिल नहीं छोड़ा था.
तीन-तीन जांच टीमें भी नहीं उठा पाईं राज से पर्दा
राजेश तलवार का नाम लिए बिना इशारों-इशारों में ही पुलिस महा-निरीक्षक ने यह भी उजागर कर दिया, कि आरुषि के पोस्टमॉर्टम में हेरा-फेरी को लेकर भी दबाव डाले गए. जिस तरह और जिस जगर पर (गर्दन पर कानों के नीचे) आरुषि-हेमराज की नसों को ऑपरेशन ब्लेड से एक ही स्टाइल में काटा गया, वो किसी प्रोफेशनल (डॉक्टर या ट्रेंड कम्पाउंडर) का काम लगता है. जब गुरदर्शन से पूछा गया कि उनका इशारा क्या डॉक्टर राजेश तलवार की ओर है, तो वे, जांच जारी है, कहकर टाल गए.
कुल जमा निकलकर यही सामने आता है कि, आरुषि-हेमराज के दोहरे कत्ल में भले ही फाइलें, जांच टीमें (सीबीआई और पुलिस) एक थाने से दूसरे थाने, एक अदालत से दूसरी अदालत, एक शहर (नोएडा, गाजियाबाद, इलाहाबाद) से दूसरे शहर तक जांच एजेंसियों के कंधे रूपी बैसाखियों पर न्याय की उम्मीद में इधर से ऊधर 9 साल भटकर उम्मीदों की खाक छानती रही हों. इस सबके बाद भी एक फ्लैट में हुए दो कत्लों के राज से पर्दा तीन-तीन जांच टीमें (एक यूपी पुलिस की टीम और दो टीमें सीबीआई की) भी नहीं उठा पाईं है.
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