सिख दंगे तो 1984 में हुए थे लेकिन इस दंगे में हुई हत्याओं के सुबूत सालों बाद तक मिलते रहे. भले ही इस घटना के बाद केंद्रीय और राज्य की जांच एजेंसियों ने इन्क्वायरी की जिम्मेदारी ले ली हो लेकिन कई ऐसी जगहें भी थीं जहां तक ये एजेंसियां भी नहीं पहुच पाईं. सिख दंगों की विभीषिका बयान करती ऐसी ही एक सामूहिक कब्र सन 2011 मिली थी.
हरियाणा के हुंड-छिल्लर इलाके में मिली इसी सामूहिक कब्र के मिलने का तरीका ईश्वरीय न्याय की तरफ भी इशारा करता है और इस बात की तरफ भी अगर सुबूतों को दबाने के सरकारी प्रयास भी किए जाएं फिर सच्चाई छिपती नहीं है.
टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी एक खबर इस कहानी की सच्चाई बयां करती है. 22 जनवरी 2001 को हरियाणा के गुड़गांव में रहने वाले मनविंदर सिंह गियासपुर पेशे से इंजीनियर थे. इसे संयोग कहिए कि एक दिन उनकी बातचीत एक डिलीवरी बॉय से हो रही थी. बातचीत के दौरान उस डिलीवरी बॉय ने मनविंदर को अपने गांव के पास ऐसे गांव के बारे में बताया, जिसे छोड़कर बड़ी संख्या में सिख पहले ही जा चुके थे. जब उस डिलीवरी बॉय ने सिखों के घर जलाने की बात की तो मनविंदर को एहसास हुआ कि ये लड़का तो 1984 में हुए सिख दंगों की बात कर रहा है.
बातचीत खत्म हुई और वो लड़का चला गया लेकिन मनविंदर के मन में ये बात ठहर गई. कुछ दिनों बाद मनविंदर सिंह उस जगह पर खुद पहुंचे तो उन्होंने पाया कि जिस जगह के बारे में वो लड़का बातें कर रहा था वहां पर एक इमारत जली हुई थी जिसकी दीवारों पर गुरुग्रंथ साहिब की लाइनें लिखी हुई थीं.
मनविंदर को उस जगह पर इंसानी हड्डियां भी दिखीं. इसके बाद उन्होंने इसकी कई सारी तस्वीरें फेसबुक पर डालीं जो वायरल हो गईं. फिर इसके बाद मनविंदर कई पंजाबी अखबारों और सिख संस्थाओं से भी मदद मांगी.
मामले ने तूल पकड़ना तब शुरू किया जब 02 मार्च 2011 को पंजाब के तत्कालीन सत्ताधारी दल शिरोमणि अकाली दल ने इसे संसद में उठाया. 4 मार्च को मृत सिखों की याद में अकाल तख्त ने शोक के लिए एक अरदास का कार्यक्रम भी रखा था.
सामूहिक कब्र खोजने की कीमत नौकरी?
इस पूरे घटनाक्रम का सबसे दुखद पहलू बाद में सामने आया जब मनविंदर को अपनी नौकरी गंवानी पड़ी. सामूहिक कब्र खोजने वाले मनविंदर सिंह को उनकी कंपनी ने नौकरी छोड़ने का नोटिस थमा दिया. हालांकि कंपनी की तरफ से ये साफ गया कि मनविंदर को नौकरी से हटाए जाने के पीछे सामूहिक कब्र खोजने का मसला है.
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