देश में हर नुक्कड़, हर चौराहे, हर बाजार, हर घर और हर फोन पर केवल एक ही चर्चा है और एक ही मुद्दा है.
लोगों को एक फैसले के एलान ने एकसूत्र में पिरो दिया है. लोगों की जुबान पर पीएम मोदी का फरमान है. आम जनता पीएम मोदी जी के लाइव ऐलान के एक-एक शब्द पर अपना अपना शोध कर रही है.
कोई कह रहा है ‘बहुत बढ़िया हो गया भैया’ तो कोई कह रहा है कि ‘मोदी जी ने जल्दबाजी कर दी ...थोड़ा टाइम देना चाहिए था.’
लेकिन लोग ये नहीं सोच रहे हैं कि मोदी जी के इस मेगा मूव से लोगों का दिल ‘कितना बड़ा’ हो गया. जो लोग कल तक ट्रैफिक सिग्नल पर अपनी कार का शीशा नीचे करके किसी भिखारी को 1 रुपया देने में कतराते थे वही लोग अब पांच सौ और हजार रुपये सिर्फ सौ के खुल्ले के चक्कर में छोड़ने को तैयार हैं. वाह रे नोटों की माया.
हद तो यह हो गई कि जिन्होंने कभी दस-बीस हजार रुपये उधार दिए थे वो अब पैसा वापस लेने को तैयार नहीं हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि कमबख्त पैसे लौटाने के नाम पर हजार-हजार रुपए के नोट चिपका देगा. वो रिस्क लेने के मूड में नहीं हैं. कल से पहले तक दिन में दस फोन करते थे और कहते थे कि ‘यार पैसे लौटा दो’.
अब पैसा लौटाने को कोई तैयार है तो देनदार ही फोन नहीं उठा रहे क्योंकि पांच सौ का नोट पांच सौ का न रहा और हजार का नोट हजार का न रहा.
जिस सौ के नोट को लोग टिप समझ कर रेस्टोरेंट में टिका देते थे आज उसी सौ के नोट के लिये मार मची हुई है. एटीएम को खड़खड़ाया जा रहा है. एटीएम भी अचानक भीड़ देखकर हैंग हो रहा है.
एटीएम के बटन दबा कर पैसा निकालने की कॉम्पिटिशन में पूरा देश उमड़ पड़ा है. एटीएम के भीतर ‘फास्टेस्ट फिंगर’ राउंड चल रहा है तो बाहर लोगों की लाइन देखकर वो दिन याद आ गए जब गणेश जी दूध पी रहे थे और लोग पिला रहे थे.
हल्ला मच रहा है कि ‘बताओ अब क्या होगा’? लोगों को लग रहा है कि उनकी दुनिया उजड़ गई. जिन्हें अपनी पांच सौ और हजार की गड्डियों पर नाज था न जाने वो कहां हैं. पांच सौ और हजार के नोट आंखों को खटक रहे हैं.
जेब में मुड़े-तुड़े पड़े हैं. घर में लॉकर से निकाल कर उठाकर पटक दिये गए हैं. जिन सौ के नोट को कभी-कभी चूहे कुतरने की हिमाकत कर जाते थे उन्हें लॉकर में सजा कर रख दिया गया है.
टीवी पर डिबेट चल रही है और नई-नई कहानियां सामने आ रही हैं. लोग हाथों में पांच सौ और हजार नोटों को उठाकर जनता को कुछ समझाने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन उनके मन में भी पीड़ा है जिसका इजहार नहीं कर पा रहे हैं.
सरकार का यह कदम कालेधन को बाहर निकालने का है लेकिन इस चक्कर में सास-बहू की घर में छिपाई कमाई भी बाहर आ रही है.जो पति अभी तक यह सोच कर परेशान थे कि जेब में पड़े 5000 रुपए से महीने भर का खर्च कैसे चलेगा उनके लिए पत्नी का नया खुलासा अब परेशानी बन गई है.
पत्नी ने घबरा कर बताया कि उसने घर में पांच साल में बचाकर पांच लाख रुपए जमा किए हैं. अब पति के होश उड़ गए हैं कि उन पैसे को कहां जमा कराए.
हालांकि काली कमाई को सफेद करने वालों की भी चांदी हो गई है. सरकार के प्लान ए का जवाब प्लान बी तैयार है.
मार्केट में ब्लैक को व्हाइट करने वालों ने अपना रेट फिक्स कर लिया है. उनका ऑफर है कि इनकम टैक्स से कम हमको दे दो और व्हाइट ले लो. इंडिया में हर समस्या का जुगाड़ है. इस खासियत पर नासा में या माइक्रोसॉफ्ट में रिसर्च हो सकती है.
कालेधन और भ्रष्टाचार को लेकर जनता ही सरकार पर दबाव बना रही थी. अब दबाव बनाया तो फिर सरकार ने एक्शन भी दिखा दिया.
कई राजनैतिक दलों की छटपटाहट ऐसी है कि वो उफ तक नहीं कर पा रहे हैं. कल तक मोदी जी को हर बात में कोसते थे. सर्जिकल स्ट्राइक पर खून की दलाली का आरोप लगा दिया. लेकिन इस फैसले पर समझ नहीं आ रहा कि राजनैतिक दलों को कौन सा सांप सूंघ गया.
‘कैश ऑन डिलिवरी’ वाले दल फिलहाल अपनी कमाई को व्हाइट करने में बिजी हैं. राजनीतिक पंडितों की मानें तो नेता सारी राजनीति छोड़ कर और अपनी पार्टी की चिंता को गंगा जी में बहाकर फिलहाल अपनी कमाई को व्हाइट करने के बारे में सोच रहे हैं.
कहीं गमले में गड़ा धन है तो कहीं गद्दे में छिपा. कहीं दीवार में छिपे नोट हैं तो कहीं जमीन में दफन. बोरों में भर कर आया कैश अब उन्हें रद्दी की टोकरी की तरह दिखाई दे रहा है क्योंकि मोदी जी ने कहा था कि – ‘12 बजे के बाद ये सिर्फ कागज के टुकड़े हैं’.
खैर. इस फैसले की उन्हें चिंता करने की जरुरत नहीं जिनके पास काला धन तो छोड़िये धन ही नहीं है. ऐसे लोग देश में कम नहीं हैं. देश की अबादी का एक हिस्सा दो वक्त की रोटी के लिए आज भी मोहताज है.
उनके लिए नोट को ठिकाने लगाने से ज्यादा अहम पेट भरना है. इसी देश में ऐसे लोग भी हैं जो नोट से अपना पेट भरने में माहिर है, लेकिन फिलहाल उनके पेट में दर्द हो रहा है.
डोन्ट वरी...दो हजार के नोट आ रहे हैं...तबतक कुछ सोचो...क्योंकि जो करप्ट हैं उनकी फितरत तो नहीं बदली जा सकेगी.
थैंक्यू पांच सौ रुपये और हजार रुपये जी...आप जाते—जाते देश का भला कर गए. जिनके दिल छोटे थे उन्हें बड़ा कर गए.
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