साल 1992 में इंदिरा साहनी का नाम घर-घर में गूंज रहा था क्योंकि उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के 'फॉरवार्ड कोटा बिल' को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. इसी के कारण सुप्रीम कोर्ट ने जाति आधारित आरक्षण पर 50 प्रतिशत तक का बैरियर लगा दिया था.
यह इतिहास एक बार फिर से दोहराया जा सकता है. न्यूज18 की रिपोर्ट के मुताबिक वरिष्ठ वकील ने प्रधानमंत्री मोदी के इस आरक्षण बिल को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का मन बना लिया है.
गौरतलब है कि आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने के लिए मंगलवार को लोकसभा में संविधान संशोधन बिल पास किया गया है. साहनी ने न्यूज18 से बातचीत में कहा कि इस बिल से सामान्य श्रेणी के योग्य लोगों के मौके उनके हाथ से फिसल जाएंगे.
नरसिम्हा राव को मिली चुनौती से जूझेंगे मोदी भी!
उन्होंने कहा, 'इस बिल को कोर्ट में चुनौती दी जाएगी. मुझे इस बारे में सोचना होगा कि क्या मैं इस संविधान संशोधन को कोर्ट में चुनौती दे सकती हूं. लेकिन इस बिल के बाद आरक्षण की कैपिंग 60 फीसदी तक हो जाएगी और बिना आरक्षित वाले कोटा के योग्य लोगों के लिए मुसीबतें बढ़ जाएंगी. इसलिए इसे चुनौती दी जाएगी.'
1992 में प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के कोटा बिल को चुनौती देने वाली साहनी ने कहा कि उस समय कोर्ट के फैसले की सबसे अहम बात थी संविधान के आर्टिकल 16(4) में पिछड़े वर्ग की परिभाषा.
साहनी के मुताबिक पिछड़े वर्ग को जाति और सामाजिक स्थिति के आधार पर परिभाषित किया गया है न कि आर्थिक आधार पर. उनका कहना है कि इसी आधार पर मोदी सरकार के हालिया कदम को चुनौती दी जा सकेगी. जैसे साल 1992 में नरसिम्हा राव के फैसले को दी गई थी.
योग्यता के आधार पर चयनित होने वाले लोगो की बढ़ेंगी मुश्किलें
साहनी के मुताबिक आर्थिक तौर पर कमजोर वर्ग को दिया जाने वाला आरक्षण गलत है. उन्होंने कहा, अब जो उम्मीदवार योग्यता (Merit) के आधार पर चयनित होंगे उनको ज्यादा कठिनाई होगी. क्योंकि 10 प्रतिशत कोटा आर्थिक कमजोर वर्ग को मिल जाने के बाद योग्यता के आधार पर चयनित होने वाले उम्मीदवारों के हिस्से सिर्फ 40 फीसदी सीटें ही आएंगी. साहनी के मुताबिक फिलहाल 50 प्रतिशत सीटें योग्यता के लिए तो 50 फीसदी आरक्षित वर्ग के लिए हैं.
हालांकि साहनी के इस तर्क का खंडन मंगलवार को ही लोकसभा में केंद्रीय मंत्री थावरचंद्र गहलोत ने करने की कोशिश की थी. उन्होंने कहा था कि पहले भी आर्थिक तौर पर पिछड़े लोगों को आरक्षण दिए जाने के फैसलों को कोर्ट में चुनौती दी गई थी. क्योंकि वो बिना संविधान संशोधन के लिए गए थे. लेकिन मौजूदा सरकार इसे संशोधन के साथ कर रही है.
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