ये साल बहुत कमाल का साल रहने वाला है. 2019, जब देश में पहली बार गरीब सवर्णों को आरक्षण देने का ऐलान किया गया है. सरकार ने यह फैसला ऐसे समय में किया है जब अगले दो तीन महीनों में लोकसभा के चुनाव होने वाले हैं. ऐसे में कांग्रेस और बीजेपी, दोनों के लिए करो या मरो जैसे हालात में हैं.
चुनाव से कुछ महीने पहले 10 फीसदी आरक्षण का दांव चलकर बीजेपी ने सवर्णों को साधने का काम किया है. पिछले कुछ समय से सवर्ण बीजेपी से नाराज चल रहे थे. संसद में कैबिनेट ने इसे पास कर दिया है. हालांकि औपचारिक तौर पर इसकी कोई ब्रीफिंग नहीं हुई है.
इन शर्तों से कितने लोगों को छांटेगी सरकार
इस ऐलान के साथ कुछ शर्तें भी हैं. मसलन, जिन सवर्णों की सालाना आमदनी 8 लाख रुपए से ज्यादा होगी, उन्हें इसका लाभ नहीं मिलेगा. लेकिन सवाल यह है कि ऐसे कितने लोग हैं जो ईमानदारी से यह बताएंगे कि उनकी सालाना आमदनी 8 लाख रुपए है. जो लोग नौकरी में हैं, उनकी सैलरी का हिसाब तो लगाया जा सकता है. लेकिन अगर कोई बिजनेस में हैं तो? क्या उनकी आमदनी का सही-सही अंदाजा लगाने का सरकार के पास कोई सही तरीका है.
इस आरक्षण की दूसरी शर्त है वैसे सवर्ण जिनके पास खेती की जमीन 5 एकड़ से ज्यादा होगी उन्हें इस आरक्षण का फायदा नहीं मिलेगा. लेकिन जानने वाली बात यह है कि न्यूक्लियर फैमिली के फैशन में किस परिवार के पास इससे ज्यादा जमीन है. नौकरी की तलाश में मिडिल क्लास पूरी तरह गांव से उखड़ चुका है. ज्यादातर खेत खलिहान बिक चुके हैं. ऐसे में बहुत कम लोग ही ऐसे होंगे जिन्होंने गांव की जमीन बचाकर रखी होगी. अब सरकार ने यह शर्त तो लगा दी कि जिनके पास 5 एकड़ से ज्यादा जमीन होगी उन्हें यह आरक्षण नहीं मिलेगा. लेकिन इस छलनी से भी बहुत ज्यादा लोग नहीं छंट पाएंगे. ऐसा लग रहा है कि सरकार सवर्णों के मिडिल क्लास को छांटना ही नहीं चाहती.
गरीब सवर्णों को आरक्षण देने की तीसरी शर्त है शहर में मकान का साइज. शर्त यह है कि जिनके मकान 1000 वर्गफुट से बड़े होंगे उन्हें इसका फायदा नहीं मिलेगा. दिल्ली-एनसीआर का ही उदाहरण लेते हैं. ज्यादातर लोग फ्लैट में रहते हैं. मिडिल क्लास का घर 800 वर्ग फुट से शुरू होकर 1050 या 1100 वर्गफुट पर खत्म हो जाते हैं. 90 फीसदी लोग ऐसे हैं जिनके मकान का साइज 1000 वर्गफुट से ज्यादा हो.
इन सीमाओं को देखकर यह अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि मिडिल क्लास के बहाने सरकार मिशन 2019 में कामयाबी हासिल करना चाहती है. सरकार के इस फैसले का असर राजपूत, बनिया,जाट, गुज्जर, ब्राह्मण और भूमिहारों को मिलेगा. पिछले कुछ समय से महाराष्ट्र, गुजरात और हरियाणा में आरक्षण की मांग करते हुए सवर्ण कई बार विरोध-प्रदर्शन कर चुके हैं.
विरोध प्रदर्शन के दौरान सरकार ने कोई भरोसा नहीं दिलाया था. लेकिन चुनावों से कुछ महीने पहले और शीत सत्र के आखिरी दिन कैबिनेट ने 10 फीसदी आरक्षण को मंजूरी दे दी. सरकार के इस पहल से साफ है कि उसका निशाना लोकसभा चुनाव है. इस फैसले से निश्चित तौर पर गरीब सवर्ण खुश होंगे. रही बात शर्तों की, तो जिन तीन दिन शर्तों के जरिए सरकार मिडिल क्लास को छान रही है, उससे इतना तो तय है कि 90 फीसदी गरीब सवर्णों बीजेपी के ही खाते में आएंगे.
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