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Kahani Filmy Hai ! : 'बायोपिक्स' से हो रही है वोट बैंक को साधने की कोशिश?

उरी, एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर, मणिकर्णिका, ठाकरे के बाद भी कई फिल्में चुनावी माहौल गर्माने के लिए आ रही हैं

Updated On: Jan 27, 2019 12:10 PM IST

Hemant R Sharma Hemant R Sharma
कंसल्टेंट एंटरटेनमेंट एडिटर, फ़र्स्टपोस्ट हिंदी

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Kahani Filmy Hai ! : 'बायोपिक्स' से हो रही है वोट बैंक को साधने की कोशिश?

ठाकरे, मणिकर्णिका, एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर, पीएम मोदी पर आने वाली 2 बायोपिक, एक में विवेक ओबरॉय मोदी बनेंगे तो दूसरी में परेश रावल, एनटीआर की बायोपिक, रजनीकांत की पेट्टा, काला, थलैवा. इससे पहले शायद ही कभी हुआ हो, चुनाव से पहले राजनैतिक संदेश लिए इतनी फिल्में रिलीज हुई हों.

ज्यादातर फिल्में बायोपिक हैं, जाहिर है इनकी कहानी किसी खास किरदार का महिमामंडन है. जैसा संजय दत्त की बायोपिक संजू में हुआ था, खुद राजकुमार हिरानी ने ये माना था कि उन्होंने संजय दत्त के जीवन के कुछ उन पहलुओं को छुआ था, जिससे  उनकी अच्छी छवि जनता में दिखाई जा सके.

आंकड़े बताते हैं कि ज्यादातर फिल्में बॉक्स ऑफिस पर चल भी गई हैं. उरी ने 138 करोड़ रुपए का बिजनेस किया है, इसकी कमाई अभी भी जारी है. माना जा रहा है कि ये ठग्स ऑफ हिंदोस्तान की कमाई से आगे निकल जाएगी. 22 करोड़ के बजट में बनी फिल्म एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर ने 30 करोड़ के बॉक्स ऑफिस कलेक्शन की तरफ बढ़ गई है. इस हफ्ते रिलीज हुई ठाकरे ने दो दिन में करीब 15 करोड़ कमा लिए हैं. संजू तो 341 करोड़ रुपए कमाकर 2018 की सबसे बड़ी फिल्म बन ही गई थी.

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इन फिल्मों की सफलता की वजह क्या है? ये आंकड़े बताते हैं कि लोग अब अर्थपूर्ण सिनेमा देखना चाहते हैं. वो वक्त चला गया जब फिल्ममेकर्स मसाला फिल्मों को बॉक्स ऑफिस पर नोट बटोरने शॉर्टकट मानते थे. 2018 में तीनों खान्स की मसाला फिल्में बॉक्स ऑफिस पर न चलना इसी बात का संकेत है. जबकि बायोपिक्स ने धुंआधार कमाई करके बता दिया है कि जनता ने इन्हें हाथोंहाथ क्यों लिया.

इस साल का सबसे बड़ा डायलॉग How’s the josh? बनने की वजह भी ये ही है कि व्यूअर्स जोश में हैं. वो फिल्मों के जरिए नई जानकारी के लिए ज्यादा उत्साहित हैं.

मधुर भंडारकर की फिल्म इंदु सरकार भी 2017 में रिलीज हुई थी, जिसमें इमरजेंसी के वक्त की कहानी दिखाई गई थी. इस फिल्म को लोगों ने उतना पसंद नहीं किया. साउथ के सुपरस्टार रजनीकांत भी थलैवा, काला और अभी हाल में रिलीज हुई फिल्म पेट्टा में हिंदुत्व के कुछ ऐजेंडों की आलोचना करते हुए डायलॉग बोलते दिखे.

Pettaa

एनटीआर पर बन रही बायोपिक भी दक्षिण में चुनावी माहौल गरमाने की कोशिश करेगी. साफ है फिल्मों के माध्यम से अपना एजेंडा सेट करने में पॉलिटीकल पार्टीयां भी लगी हैं. रजनीकांत भी ऐसे में राजनीति में आने का बिगुल फूंक चुके हैं. जाहिर है अपने फैंस तक फिल्मों के जरिए वो अपनी बात पहुंचा रहे हैं.

कुछ ऐसी ही कहानी बॉलीवुड में भी चल रही है. पिछले 5 साल में बॉलीवुड भी तो बदला है. एक वक्त में तीनों खान्स के क्रियाकलापों से संचालित होने वाली इंडस्ट्री में बॉक्स ऑफिस से लेकर कांन्टेंट तक के लिए नए नायक आ गए हैं. इनकी फिल्मों ने लगातार सफलता के झंडे गाड़कर जता दिया है कि अब ये वो पुराना बॉलीवुड नहीं है जिसके लोगों को भारत में डर लगता था.

सरकार भी बॉलीवुड की समस्याओं से पहले से ज्यादा सरोकार रखती हुई दिखाई दे रही है. दो महीनों में बॉलीवुड ने दो बार सीधे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात की. अपनी समस्याओं को उनके सामने रखा, जिनका समाधान भी हुआ. जीएसटी रेट टिकट्स पर कम हो गए. फायदा सीधा बॉलीवुड की जेब में गया. भारतीय सिनेमा का नया म्यूजिम बना जिसका उद्घाटन मोदी ने किया. पूछ लिया How’s the josh? जिसका जवाब भी उन्हें बॉलीवुड ने दिया ‘High sir’.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते रोज देश के पहले भारतीय राष्ट्रीय सिने संग्रहालय (एनएमआईसी) का मुंबई में उद्घाटन किया. जहां इस मौके पर उनके साथ बॉलीवुड के कई दिग्गज सितारों ने शिरकत की. सितारों ने मोदी के साथ यहां तस्वीरें खिंचवाई और सोशल मीडिया पर साझा भी की. देखिए इस समारोह की खास तस्वीरें

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के पहले भारतीय राष्ट्रीय सिने संग्रहालय (एनएमआईसी) का मुंबई में उद्घाटन किया. जहां इस मौके पर उनके साथ बॉलीवुड के कई दिग्गज सितारों ने शिरकत की. सितारों ने मोदी के साथ यहां तस्वीरें खिंचवाई और सोशल मीडिया पर साझा भी की.

जाहिर है बॉलीवुड जोश में है, एक तरफ सरकार में उनकी सुनवाई हो रही है तो दूसरी तरफ व्यूअर्स भी बॉक्स ऑफिस पर जमकर पैसा लुटा रहे हैं. नई कहानी ये भी है कि डिजिटल प्लेटफॉर्म्स ने आकर जो धमाका किया है उससे बॉलीवुड को नया जोश मिला है. खासकर वो स्टार्स जो फिल्मों में एंट्री के लिए संघर्ष ही करते रहते थे उन्होंने सफलता की नई कहानी लिख दी है. बोस, सेक्रेड गेम्स, मिर्जापुर, रंगबाज, कौशिकी से लेकर दूसरे कई प्लेटफॉर्म्स के शोज को लोग अपने घरों में बैठकर देख रहे हैं. कई के तो दूसरे सीजन्स तक आ गए हैं.

इसी जोश में देश फिर से अपनी नई सरकार चुनने की तरफ आगे बढ़ रहा है, ऐसे में रिलीज हो चुकीं या आने वाली फिल्में क्या चुनावों पर असर डालेंगी? ये सवाल कई लोगों के मन में उठता रहता है. इसके जवाब में कहा जा सकता है कि इतिहास पर गौर करने से पता चलता है, राजनीतिक ड्रामा से भरी फिल्में हर साल ही बॉक्स ऑफिस पर रिलीज होती हैं. कभी कम तो कभी ज्यादा. इस बार लाइनअप चुनाव से ऐन पहले का है. तो इसे किसी एक पार्टी का कॉन्टेंट मैनेजमेंट कहा जा सकता है दूसरा अगर उसमें फेल हो रहा है तो वो ये सोचे कि उसका ध्यान बॉलीवुड की बायोपिक्स पर क्यों नहीं गया?

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