अंडरवर्ल्ड को लेकर बॉलीवुड का प्यार जारी है, भले ही मौजूदा दौर में इसका रुतबा घट गया हो. इससे ज्यादा इसका प्रमाण और क्या हो सकता है कि इस महीने गैंगस्टर पर बनी दो फिल्में रिलीज हुई हैं. एक फिल्म अरुण गवली पर तो दूसरी दाऊद इब्राहिम की बहन हसीना पारकर पर. दोनों ही फिल्मों में दाऊद मुख्य किरदार है.
डैडी फिल्म में अर्जुन रामपाल ने गवली की भूमिका निभाई है. अभिनय के लिए उनकी तारीफ भी हो रही है. अर्जुन का कहना है कि "ये प्यार नहीं, सिर्फ आकर्षण है. इस विधा ने हमेशा आकर्षित किया है. गॉडफादर, गुडफैलास, स्केयरफेस और ऑन द वाटरफ्रंट फिल्में मुझे पसंद है. वास्तव में ऐसे कैरेक्टर अद्भुत होते हैं. लेकिन फिल्मकारों के अलावा समाज भी अपने आसपास के माहौल के कारण ऐसी चीजों से आंख मूंद लेता है.
रामगोपाल वर्मा थे इस विधा में पारंगत
हम सभी जानते हैं कि अपराध होता है और हम इसे फिल्म के जरिए बाहर लाते हैं. कई बार हम उनका महिमामंडन करते हैं, लेकिन वो दिलचस्प कहानी बनाते हैं." रामगोपाल वर्मा (आरजीवी) ने गैंगस्टर पर फिल्मों का चलन शुरू किया था. इनका फिल्मांकन मुंबई की रहस्यमयी जगहों पर होता था. इनमें सत्या, कंपनी, डी, सरकार और अब तक छप्पन जैसी फिल्में शामिल हैं. उनकी दलील है, "ये गलत होगा कि अंडरवर्ल्ड से प्यार के लिए बॉलीवुड को अलग करके देखा जाए. सबसे पहली गैंगस्टर फिल्म गॉडफादर पूरी दुनिया में हिट हुई थी. ऐसा तब हुआ था जब किसी ने अंडरवर्ल्ड के बारे में नहीं सुना था.
हॉलीवुड से आया था कॉन्सेप्ट
सत्तर के शुरुआती दशक में गॉडफादर से लेकर इस साल की नारकोस सीरीज की बात करें तो दर्शक हमेशा गैंगस्टर विधा की फिल्म की तरफ आकर्षित होते हैं. यह दुनिया का कोई भी गैंग हो सकता है. भले ही ये हांगकांग का ट्राएड गैंग, रूस के माफिया, इटली/अमेरिका के गैंगस्टार, कोलंबिया/ मैक्सिको के ड्रग कार्टेल हो या फिर मुंबई का अंडरवर्ल्ड हो. लोग अपराध से जुड़े नाटक को पसंद करते हैं. उन्हें रिश्तों में टकराव पर फिल्में पसंद आती हैं. ऐसे में गैंगस्टर विधा की फिल्में इन दोनों का मिल-जुला रूप है.’’
गॉडफादर का हैंगओवर
अंडरवर्ल्ड पर बॉलीवुड की अधिकतर फिल्मों की प्रेरणा फ्रांसिस फोर्ड की फिल्म द गॉडफादर से मिलती है. 42 साल पहले इसकी पहली रिलीज के बाद भी इसका प्रभाव बना हुआ है. भारत में पहली बार ऐसी कोशिश अभिनेता-निर्देशक फिरोज खान ने धर्मात्मा (1975) से की. फिल्म बड़ी हिट रही. गॉडफादर में मिशेल अपने पिता के गैंग में शामिल होता है जबकि खान, जो इसी तरह की भूमिका करता है, अपने पिता का विरोध करता है.
अंडरवर्ल्ड पर बनी हर फिल्म नहीं चली
इसके करीब दो दशक बाद, बॉलीवुड ने द गॉडफादर की कहानी पर आधारित जुल्म की हुकूमत (1992) बनाई. कहानी में कोई बदलाव नहीं किया गया था. फिल्म में गोविंदा ने अल पचीनो का कैरेक्टर किया जबकि धर्मेंद्र ने मार्लोन ब्रांडो की भूमिका निभाई. फिल्म के नैरेटर अमिताभ बच्चन थे. बॉक्स ऑफिस पर जुल्म की हुकूमत का प्रदर्शन ठीक रहा, जबकि दिलीप शंकर की फिल्म आतंक ही आतंक (1995), जिसमें आमिर खान ने मूंछ के साथ मिशेल कोरलियोन की भूमिका की और रंजनीकांत बड़े भाई के रोल में थे. हालांकि ये फिल्म असर छोड़ने में नाकाम हुई. हालांकि द गॉडफादर पर आधारित बॉलीवुड की सबसे सफल फिल्म आरजीवी की अमिताभ बच्चन के साथ सरकार थी. अभिषेक बच्चन इसमें मिशेल कोरलियोन के रोल में थे.
ग्रे शेड्स वाले रोल्स से लोगों का लगाव
फिलहाल साहेब बीवी और गैंगस्टर के तीसरे पार्ट पर काम कर रहे लेखक संजय चौहान को लगता है कि गैंगस्टर की अधिकतर कहानियां परिवार और रिश्तों के बारे में भी है. भले य ही ये द गॉडफादर या यश चोपड़ा की दीवार हो. उनका कहना है, " मैं इससे सहमत हूं कि दर्शक दीवार में अमिताभ बच्चन के किरदार से जुड़ाव महूसस करते थे क्योंकि उसमें कुछ ग्रे शेड्स भी थे. लेकिन अगर वो पैसा कमाने के लिए गलत काम करता था तो, वहां शशि कपूर का कैरेक्टर भी था जिसने बच्चन के कैरेक्टर को बढ़ाने में मदद की."
रामू ने कर दिया गैंगस्टर्स को जीवंत
चौहान इस बात का श्रेय वर्मा को देते हैं कि उन्होंने अंडरवर्ल्ड और गैंगस्टर को रियल जैसा बना दिया. "एक समय था जब फिरोज खान ने ऐसे कैरेक्टर बनाए, जो ज्यादा एकतरफा और लार्जर-दैन-लाइफ थे. लेकिन आरजीवी ने इन्हें रियल बना दिया. जैसा कि सत्या में भीखू म्हात्रे बड़ा गैंगस्टर था लेकिन उसकी बीवी उसे पीटती थी. इसी तरह गैंग्स ऑफ वासेपुर का गैंगस्टर भी था.’’
लेखक दिलीप ठाकुर को लगता है कि आज के लेखक इस पर फोकस कर रहे हैं और इसे ठीक ठहराने की कोशिश कर रहे हैं कि उनका कैरेक्टर जैसा था वैसा ही क्यों बना, भेल ही वो अरुण गवली हो या फिर हसीना पारकर लेकिन अभी तक वो जो कारण देखते हैं वो सतही हैं.''
बॉलीवुड और दाऊद
अंडरवर्ल्ड पर अधिकतर फिल्में दाऊद इब्राहिम की कहानी पर केंद्रित हैं, जो वास्तिवक जीवन में भगोड़ा डॉन है. न्यूज चैनल भी आज तक दुनिया के मोस्टवांटेड गैंगस्टर की एक ही फोटो से काम चला रहे हैं. शशिलाल नायर ने करीम लाला की जिंदगी पर अंगार बनाई जबकि दाऊद का कैरेक्टर उसमें साइडकिक का था. मुंबई में 1993 के बम धमाकों के बाद अंडरवर्ल्ड में वो कुख्यात हुआ. 1997-2000 के दौरान अंडरवर्ल्ड पर पुलिस की सख्ती के बाद फिल्मकारों ने उसे एक चरित्र के रूप में देखना शुरू किया.
कंपनी पहली फिल्म थी, जो सीधे तौर पर दाऊद से प्रेरित थी. आरजीवी का मानना है कि डॉन का अनोखापन ये है कि 80 के दशक में उसे एक तरह का व्यापारी माना जाता था.
फिल्म इंडस्ट्री पर रहा है दाऊद का दबाव
कंपनी उस पीरियड पर बनी है जब छोटा राजन और दाऊद के बीच युद्ध चरम पर था. शूटआउट एट वडाला 1985 में मान्या शुर्वे के एनकाउंटर पर आधारित थी. उसके बारे में पुलिस को सूचना देने में दाऊद ही शामिल था. डी कंपनी से कॉल के बाद फिल्मकार को दाऊद का नाम तक बदलना पड़ा था.
इस कैरेक्टर पर बनी अन्य चर्चित फिल्में हैं निखिल आडवाणी की डी डे. इसमें ऋषि कपूर ने मोस्टवांटेड डॉन की भूमिका निभाई थी. वहीं मिलन लूथरिया ने वंस अपन के टाइम इन मुंबईफ्रेंचाइजी में अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद के उदय को दिखाया था. फिल्म का एक डायलॉग जहां शोहेब (दाऊद पर आधारित) कहता है, 'पहले मैं खेलता था, अब पूरा खेल हो गया हूं' स्पष्ट संकेत देता है कि अपराध की दुनिया में दाऊद कैसे इतना बड़ा बना.
क्या बॉक्स ऑफिस पर गैंगस्टर की चमक फीकी पड़ रही है?
व्यापार विश्लेषकों का मानना है कि ये विधा अब बॉक्स ऑफिस पर असर नहीं दिखाती है. ट्रेड एनालिस्ट अमोद मेहरा कहते हैं, " ऐसी सिनेमा में अब ताजगी नहीं बची है. दाऊद या किसी अन्य गैंगस्टर के बारे में नया कहने के लिए कुछ नहीं है. जैसा कि आरजीवी का कहना है शॉक वैल्यू दर्शकों पर असर डालने के लिए जरूरी है.’’
डैडी को आलोचकों की वाहवाही मिली – भले ही ये फिल्म या फिर रामपाल के अभिनय के लिए हो, लेकिन कलेक्शन इसके आसपास भी नहीं है. मीडिया रिसर्च एंड कंसल्टेंसी फर्म ओरमेक्स मीडिया के सीईओ शैलेश कपूर इसका उत्तर देते हैं, "आज के समय में अंडरवर्ल्ड या गैंगस्टर फिल्में प्रासंगिक नहीं हैं. जब सत्या और कंपनी जैसी फिल्में बनी थी तो मुंबई और महाराष्ट्र के दूसरे इलाकों में अंडरवर्ल्ड की मजबूत मौजूदगी थी. मीडिया में इस पर लिखा गया और ये रुचि फिल्मों तक पहुंच गई. लेकिन समय के साथ अंडरवर्ल्ड भी कमजोर हो गया. आज के युवा दर्शकों को अंडरवर्ल्ड के बारे में कम जानकारी है कि वो कैसा होता था. वो ऐसी फिल्में नहीं देखना चाहता. इसलिए अब इस विधा को यहीं पर समाप्त करने का सही वक्त है.’’
गैंगस्टर फिल्मों का खराब दौर
वरिष्ठ फिल्म समीक्षक अतुल मोहन भी सहमत हैं कि फिलहाल गैंगस्टर फिल्मों के लिए समय सही नहीं है. उनका कहना है कि, `` ये कैरेक्टर दशकभर पहले ज्यादा प्रासंगिक और जुड़ने वाले थे. अब अंडरवर्ल्ड ही नहीं बचा है. अब दर्शक नकारात्मक कैरेक्टर में रुचि नहीं ले रहे हैं. वो अब प्रेरणादायक कहानी सुनना चाहता है.''
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