हॉलीवुड के जाने-माने फिल्मकार क्रिस्टोफर नोलन आजकल भारत की यात्रा पर आए हैं. नोलन की इस यात्रा का उद्देश्य है डिजिटल युग में रील यानी कि सेल्युलॉयड पर फिल्मों के महत्व का लोगों से परिचय कराना.
जब भी फिल्मों को रील पर शूट करने की बात निकली है नोलन ने इसके पक्ष में हमेशा बोला है. रेफ्रेमिंग ऑफ़ द फ़्यूचर फिल्म्स के तहत क्रिस नोलन अपने विचार फिल्मों को सेल्युलॉयड पर शूट करने को लेकर रखेंगे और साथ में इस बात पर भी अपनी राय व्यक्त करेंगे कि डिजिटल जमाने में पारंपरिक फिल्मी रील अपनी जगह कैसे बना सकती है.
कई लोगों को जानकर शायद यह बेहद आश्चर्य लगे कि बॉलीवुड में फिलहाल ऐसा कोई भी निर्देशक नहीं बचा है जो फिल्मी रील पर पर अपनी फिल्मों को शूट करता है. चाहे यशराज फिल्म्स हो या फिर करण जौहर का बैनर धर्मा प्रोडक्शन, बॉलीवुड के सबसे मशहूर नामचीन बैनर्स ने काफी पहले फिल्मों की रील से किनारा कर लिया था. अब ऐसे प्रोजेक्टर्स भी शायद कम ही बचे हैं जिनका इस्तेमाल सिनेमाघरों में होता है और शायद यही वजह है कि जब नोलन की यात्रा के समय उनकी फिल्म डंकर्क के 70 मिमी पर्दे पर स्क्रीनिंग की बात आई तो इसके लिए आयोजकों को खासी मशक्कत करनी पड़ी.
नोलन के बारे में खास बात यह भी है कि अब तक उन्होंने जितनी भी फिल्में बनाई हैं वो सभी सेल्युलॉयड पर ही शूट की हैं और अभी डिजिटल का मोह उनको छू नहीं पाया है. आज जब विश्वपटल पर 90 प्रतिशत से ज्यादा फिल्ममेकर्स डिजिटल की ओर कूच कर गए हैं तो बचे खुचे आखिरी लोगों में नोलन का नाम भी शुमार है. आइए आपको हम अवगत कराते हैं कि अभी कौन-कौन से प्रड्यूसर्स बचे हुए हैं जिनको अभी भी अपनी फिल्मों को फिल्मी रील पर शूट करना पसंद है
क्वेंटिन टैरेनटिनो
क्वेंटिन टैरेनटिनो शायद सेल्युलॉयड की मुखालफत में सबसे आगे हैं और आज भी अपनी फिल्मों को रील पर ही शूट करते हैं. टैरेनटिनो का 70 मिमी रील का प्रेम शायद जुनून की हद जैसा है और शायद यही वजह है कि अपनी पिछली फिल्म द हेटफुल एट के लिए उन्होंने शूटिंग के लिए 70 मिमी फिल्म और अल्ट्रा पैनाविजन तकनीक का इस्तेमाल किया था जो आखिरी बार सन 1966 में इस्तेमाल हुआ था. अपने डिजिटल एक्सपीरियंस पर उन्होंने एक बार एक साक्षात्कार में कहा था कि डिजिटल माध्यम पर चीज़ों को देखना सामूहिक रूप से टेलीविजन देखने के बराबर है.
स्टीवन स्पीलबर्ग
स्टीवन स्पीलबर्ग की फिल्में मसलन ईटी या फिर जुरैसिक पार्क भले ही मौजूदा दौर से आगे की फिल्में रही हों लेकिन अगर खुद की फिल्मों को शूट करने की बात हो तो आज भी वह सेल्युलॉयड की शरण में ही जाते हैं. स्पीलबर्ग हॉलीवुड के उन चुनिंदा लोगों में है जिनको डिजिटल माध्यम अभी भी अपने लपेटे में नहीं पाया है. उनका मानना है कि जब तक आखिरी फिल्म लैब बंद नहीं हो जाता है तब तक वह अपनी फिल्में रील पर ही शूट करेंगे.
स्टीवन का इस बात में विश्वास है की डिजिटल फिल्ममेकिंग कुछ ज्यादा है शुद्ध है और उनको परदे पर जब सेल्युलॉयड का इस्तेमाल करके एक अलग तरह का टेक्सचर मिलता है तो उसकी खुशी कुछ और ही होती है. यह अलग बात है की जब उनको फिल्म एडवेंचर ऑफ टिनटिन बनाने की सूझी तब उनको डिजिटल फिल्ममेकिंग का इस्तेमाल ना चाहते हुए भी करना पड़ा.
पॉल थॉमस एंडरसन
पॉल थॉमस एंडरसन ने अपने फिल्म करियर में ज्यादा फिल्में नहीं बनाई हैं लेकिन जो भी फिल्में उन्होंने बनाई है उसका जनता के मानस पटल पर काफी असर रहा है. पॉल हॉलीवुड के उन फिल्ममेकर्स में से हैं जो रील के अलग अलग वर्सन को इस्तेमाल करना पसंद करते हैं. अगर कुछ के लिए उन्होंने 70 मिमी का सहारा लिया तो कुछ के लिए उन्होंने 65 या 35 मिमी फिल्म का भी इस्तेमाल किया. सेल्युलॉयड पर फिल्मों के युग को बचाने को लेकर पॉल काफी मुखर रहे है.
क्रिस्टोफर नोलन
फिल्मों की रील बनाने वाले मशहूर कंपनी कोडक जब 2014 में दिवालियापन की कगार पर पहुंच गई थी तब नोलन ने हॉलीवुड के मशहूर फिल्ममेकर्स जे जे अब्राम, क्वेंटिन टैरेनटिनो और मार्टिन स्कॉर्सेसे के साथ मिल कर कोडक के प्रति अपना समर्थन जाहिर किया था.
ये सुनने में किसी को भी आश्चर्य लग सकता है कि अपनी साइंस फिक्शन फिल्म इंटरस्टेलर के लिए तक नोलन ने फिल्म रील का इस्तेमाल किया था. इन्तेहां उनकी पिछली फिल्म में पहुंच गई जब उनकी फिल्म डंकर्क को ख़ास 70 मिमी से लैस आई मैक्स थिएटर्स में रिलीज़ किया गया. जिसे ऑस्कर से भी नवाजा गया.
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