कादर खान में अभिनय की प्रतिभा जन्म से ही थी. काबुल में जन्मे कादर खान जब महज आठ साल के थे तब वो कब्रगाह में बैठकर लोगों की आवाज की नकल किया करते थे. महबूब खान की फिल्म रोटी में काम कर चुके अभिनेता अशरफ खान की नजर जब इस छोटे बच्चे पर पड़ी तब उन्होंने ठान लिया की वो उसकी प्रतिभा को पंख देंगे.
अभिनय की तालीम उन्होंने छोटे कादर खान को अपने बंगले में देना शुरू किया और महज एक महीने के बाद जब नाटक का मंचन हुआ तब अपने पहले ही नाटक में कादर खान ने खूब वाह वाही बटोरी.
नाटक खत्म होने के बाद एक बुजुर्ग व्यक्ति ने कादर खान को 100 रुपए का नोट थमाकर बोला कि ये उसके लिए एक अभिनय का सर्टिफ़िकेट है. कादर खान ने वो 100 रुपये का नोट कई साल तक संभाल कर रखा था लेकिन गरीबी की वजह से उनको वो नोट आगे चल कर इस्तेमाल करना पड़ा. कादर खान का जन्म काबुल के एक बेहद ही गरीब परिवार में हुआ था.
पैसे और खाने की इतनी तंगी थी कि जब कादर आठ साल के थे तब तक उनके तीनों बड़े भाइयों की मौत हो चुकी थी. काबुल से पूरा परिवार माइग्रेट करके बॉम्बे आ गया और वह के कमाठीपुरा इलाके में रहने लगा. नशीली दवाएं, वेश्यावृति यह सब कुछ आसपास में था लेकिन कादर खान कभी भटके नहीं और अपनी पढ़ाई पर ध्यान देकर सिविल इंजीनियरिंग में तालीम हासिल की.
गरीबी की वजह से ही कादर खान के माता पिता एक दूसरे से अलग ही गए थे. सौतेले बाप का प्यार उनको रंचमात्र भी नहीं मिला और कुछ समय के बाद हालत घर पर इतने बिगड़ गए की रहने के लिए उनको अपने कॉलेज के प्रिसिंपल से स्टाफ क्वार्टर की इजाज़त लेनी पड़ी.
लगभग चार सौ फिल्में और 250 से ऊपर फिल्मों में डायलॉग लेखन कादर खान की प्रतिभा का अपने में सबूत है. नाटक में काम करने का शौक उनका बनिस्बत जारी रहा और नौकरी शुदा होने के बावजूद भी वो रंगमंच निरंतर रूप से करते रहे. कादर खान ने सिविल इंजीनियरिंग में अपनी तालीम हासिल की थी और अपनी उच्च शिक्षा खत्म करने के बाद वो मुंबई में एम एच साबू सिद्दीक कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग में बतौर लेक्चरर की नौकरी करने लगे थे. और उसी दौरान उन्होंने अपने कॉलेज के सालाना जलसे के लिए रंगमंच नाटक में शिरकत की.
ये उनका सौभाग्य था की नाटक के दौरान सुपरस्टार दिलीप कुमार वहां मौजूद थे और उनकी बेहतरीन अदाकारी से वो इतने प्रभावित हुए की उन्होंने उसी वक्त उनको अपनी अगली फिल्म सगीना में काम करने का न्यौता दे दिया.
दिलीप कुमार के ऑफर के बाद कादर खान ने पीछे मुड़कर फिर कभी नहीं देखा. जया बच्चन और रणधीर कपूर अभिनीत फिल्म जवानी दीवानी से उनके लिखने का करियर शुरू हुआ और उसके बाद आगे चल कर मनमोहन देसाई के अलावा और कई निर्देशकों के लिए जबरदस्त फिल्में लिखी.
अभिनय और लेखन - दोनों ही कलाओ पर उनकी महारत थी लिहाजा ये दोनों काम उनके साथ-साथ चले. जब डायलॉग लिख कर कादर खान पैसे कमाने लगे तब उसी दौरान मनमोहन देसाई अपनी फिल्म रोटी के लिए एक डायलॉग राइटर की तलाश में थे.
उर्दू से उन्हें शिकायत थी और उनका यही मानना था की उर्दू में लिखने वाले मुहावरों पर ज्यादा ध्यान देते है और आम बोल चाल की भाषा गायब रहती है. जब उनकी मुलाकात एक और उर्दू राइटर से हुई तब उन्होंने दो टूक शब्दों में यही कहा की अगर डायलॉग पसंद आएगा तो ठीक है नहीं तो वो उनको धक्के मार कर निकाल देंगे.
रोटी की जबरदस्त सफलता ने मनमोहन देसाई को कादर खान का फैन बना दिया. आगे चल कर मनमोहन देसाई की लगभग हर फिल्म में किसी ना किसी रूप में कादर खान ने काम किया चाहे वो अभिनेता के तौर पर हो या फिर डायलॉग राइटर के तौर पर.
सन 1991 में बाप नम्बरी बेटा दस नम्बरी के लिए उन्होंने बेस्ट कॉमेडियन का फिल्म फेयर अवार्ड भी जीता. लेकिन धर्मेद्र की ही तरह उनके खीसे में जो सभी अवार्ड्स आये वो उनकी खूबियों को ठीक से बयां नहीं करते. पहले विलन के तौर पर अपनी फ़िल्मी करियर की शुरुआत करने वाले कादर खान आगे चल कर अपने कॉमेडी टाइमिंग के लिए ज्यादा मशहूर हुए.
डेविड धवन के साथ जब उन्होंने अपनी पहली फिल्म की तब किसी को भी इस बात का अंदेशा नहीं था की आगे चल कर यह जोड़ी कॉमेडी की दुनिया में धमाल करने वाली है. हीरो नंबर वन, दूल्हे राजा, हसीना मान जाएगी कुछ ऐसी फिल्में थी जिसने दर्शकों को हंसा-हंसा कर लोट पोट कर दिया था.
मुकद्दर का सिकंदर, साजन, जुदाई, कुली, यह है जलवा, हम, क़ुर्बानी, सुहाग, खून भरी मांग कुछ ऐसी फिल्में थी जिसमे दर्शकों ने कादर खान की अदाकारी को बेहद पसंद किया. कादर खान ने अपने लेखन की शुरुआत फिल्म जवानी दीवानी से की थी और आगे चल कर उनके कलम का जादू ऐसा चला कि उन्होंने अमिताभ बच्चन के लिए कई फिल्मों में उनके डायलॉग लिखे.
बीते कुछ सालों से कादर खान ने फिल्मों में काम करना बंद कर दिया था और उनका काफी समय इस्लाम की इबादत में बीतने लगा था. बीमारी के चलते वो अपने आखिरी दिनों में दुबई और उसके बाद कनाडा में अपने बेटे सरफ़राज़ खान के साथ रहने लगे थे.
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