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Animation Series : बच्चों को गांधीगिरी सिखाने आ रहे हैं एनिमेटेड ‘बापू’

महात्मा गांधी अब छोटे बच्चों को गांधीगिरी सिखाने एनिमेशन एपिसोड्स में नजर आने वाले हैं

Updated On: Mar 20, 2019 07:47 PM IST

Hemant R Sharma Hemant R Sharma
कंसल्टेंट एंटरटेनमेंट एडिटर, फ़र्स्टपोस्ट हिंदी

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Animation Series : बच्चों को गांधीगिरी सिखाने आ रहे हैं एनिमेटेड ‘बापू’

अब महात्मा गांधी बापू बनकर छोटे बच्चों को जीवन की अच्छी बातें बताते जल्द ही आपको टीवी पर नजर आ सकते हैं. वो भी एनिमेशन के अंदाज में फिल्ममेकर केतन मेहता की कंपनी कॉसमॉस माया इसके एपिसोड्स तैयार करने में लगी है. इन एपिसोड्स के बारे में सबसे पहले हम आपके लिए लेकर आए हैं एक्सक्लूसिव जानकारी, जिसके बारे में हमने बात की कंपनी के चीफ क्रिएटिव ऑफिसर सुहास कदव से. और क्या है इस सीरीज में बच्चों के लिए खास उनके इस इंटरव्यू में पढ़िए

सुहास हमें बापू के बारे में बताएं?

इन दिनों हमने नोटिस किया है कि छोटे बच्चे ज्यादातर मोबाइल में ही कुछ न कुछ देखकर सीखते हैं. टीवी पर भी जो ज्यादातर सीरीज आ रही हैं उनमें बच्चों को सिखाने के लिए अच्छी बातें उस स्तर की नहीं है जितना महान हमारा इतिहास है. बापू एक ऐसे कैरेक्टर हैं जिन्होंने पूरे भारत को कनेक्ट किया हुआ है. उनके जो आदर्श हैं वो अब तक किताबों में ही हैं लेकिन इन आदर्शों के बच्चों के जीवन में कैसे उतारा जाए, इसी विचार को लेकर हमने बापू का कैरेक्टर स्केच तैयार किया. बापू ने भारत को जो कुछ दिया है वो अमूल्य है. स्कूल से पढ़कर जब वो घर आते हैं तो वो टीवी देखते हैं. टीवी पर भी जैसे ही उन्हें ज्ञान जैसे ही दिखता है वो चैनल बदल देते हैं. उन्हें ज्ञान नहीं देखना है क्योंकि वो उन्हें बोरिंग लगता है. लेकिन हमें फिर भी उन्हें अच्छी बातें सिखानी हैं लेकिन उसी अंदाज में जिसमें वो देखना चाहते हैं. इसलिए बापू की सिखाई बातों पर हमने इसके एपिसोड्स को तैयार करना शुरु किया और अब हम इसमें काफी आगे बढ़ गए हैं.

सुहास कदव, चीफ क्रिएटिव ऑफिसर, कॉसमॉस माया

सुहास कदव, चीफ क्रिएटिव ऑफिसर, कॉसमॉस माया

ये सीरीज मुन्नाभाई एमबीबीएस फिल्म से कैसे अलग है?

ये मुन्नाभाई से बिल्कुल अलग है. फिल्म में सीधे-सीधे महात्मा गांधी की बातें उन लोगों को बताई गई थीं, जिनके बारे में उन्हें पहले से पता है लेकिन अपनी जिंदगी में हमें उसे कैसे उतारना है ये फिल्म का विषय था. लेकिन बच्चों को सिखाने के लिए फिल्म वाला तरीका नहीं अपनाया जा सकता. उनके लिए हमें और लॉजिकल तरीके से स्टोरी को बताना पड़ेगा, जिससे वो उन्हें हमेशा के लिए समझकर अपनी जिंदगी में उतार लें.

थोड़ा और विस्तार से बताएं?

जैसे एक छोटा सा उदारहण में आपको बताता हूं कि एक बार बापू उसे बताते हैं कि झूठ बोलने से आपके कंधों पर बोझ बढ़ जाता है और कंधे झुक जाते हैं. बच्चे को एक झुके कंधों वाला आदमी जब दिखता है तो बच्चा जाकर उससे पूछ बैठता है कि आपके कंधों पर तो बड़ा बोझ है. आपने कभी झूठ बोला है क्या? ऐसे में वो आदमी अपनी गलती को समझ जाता है और अपने बॉस को वो सच बोलता है. सच बोलने से उसका कॉन्फिडेंस बढ़ने लगता है और उसके कंधे भी सीधे होने लगते हैं. अगर छोटे बच्चों को इस तरह के उदाहरण बचपन में ही सिखा दिए जाएं कि झूठ का बोझ आपके कंधों के झुका सकता है तो ये जीवन भर के लिए उनकी एक ऐसी शिक्षा हो गई जो गहराई तक उनके मन में बस गई वो झूठ बोलने से बचेंगे. ऐसे ही सफाई की आदत भी बच्चों में बापू की शिक्षा के सहारे डाली जा सकती है.

आपको लगता है कि बच्चे बापू सीरीज को देखेंगे?

हम लोग टीवी पर मोटू-पतलू, शिवा, अमेजॉन प्राइम पर इंस्पेक्टर चिंगम और गुड्डू जैसे शोज पहले से ही बना रहे हैं. इनमें प्योर एंटरटेनमेंट है. इनके कैरेक्टर बड़े हैं लेकिन ये बच्चों की तरह बर्ताव करते हैं तो ये भी उनको अपने जैसे लगते हैं. बापू का भी ये ही कैरेक्टर हमने इसमें रखा है कि वो सरल और दोस्ती जैसी भाषा में बच्चों को अच्छी बातें सिखा रहे हैं.

हम बापू की ये सीरीज कहां देख सकते हैं?

इसे लेकर हमारी कई किड्स चैनल्स से बात चल रही है. इसे कहां दिखाया जाएगा इसकी जानकारी हम जल्दी है आपके साथ शेयर करेंगे.

एनिमेशन मार्केट के बारे में आप हमारे रीडर्स को कुछ बताएं, भारत में इसकी क्या स्थिति है?

एनिमेशन के मामले में हम अब भी वेस्ट से 50 साल पीछे ही हैं. 2011 में हमने मोटू-पतलू शुरु किया था. वो नंबर वन बन गया. पहले जो भी चैनल बच्चों के लिए आते थे वो बाहर का कॉन्टेंट दिखाते थे लेकिन अब स्थिति बदली है. अब वो सारे शो भारतीय कैरेक्टर्स पर भी दिखा रहे हैं. कॉन्सेप्ट अगर आप देखें उनके तो वो हमारे जैसे ही हैं. लेकिन वो उसे एनिमेशन के तौर पर देखते हैं. जब तक हम अपनी फिल्मों को कार्टून फिल्म बोलते रहेंगे. जब तक हमारे यहां इसका एटिट्यूड नहीं बदलेगा तब तक हमारे यहां इसे वो जगह नहीं मिलेगी. ऐसे में हमें जरूरत है अपनी सोच का और बदलने की. इस बाजार में हमारे लिए अभी तक बहुत संभावनाएं हैं.

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