‘तैमूर’! सैफ अली खान और करीना कपूर के बेटे का नाम सुन कर मुझे हैरानी हुई. करन जौहर के ट्वीट से मुझे सैफीना के बेटे का नाम मालूम हुआ. भारत के लिए तैमूर वैसा ही है जैसा इजरायल के लिए हिटलर.
भारत में कत्लेआम मचाने वाले के नाम पर कोई अपने बेटे का नाम कैसे रख सकता है?
फिर मुझे लगा कि शायद सैफीना को तैमूर नाम पसंद होगा इसलिए रख दिया. उन्हें आक्रांता तैमूर लंग के बारे में जानकारी नहीं होगी. उन्हें यह नहीं मालूम होगा कि तैमूर ने दिल्ली में एक लाख हिंदुओं का नरसंहार करवाया था.
तैमूर ने करवाईं थीं बेशुमार हत्याएं
तैमूर ने तुर्की और ईरान में भी बेशुमार लोगों की हत्या करवाईं थीं. तैमूर के कत्लेआम से दुनिया की पांच फीसदी आबादी घट गई थी. तैमूर की धार्मिक कट्टरता और सांप्रदायिकता के आगे हिटलर कुछ भी नहीं था.
अनजाने में तैमूर नाम रखने के मेरे भ्रम को करीना ने तोड़ा. इंडियन एक्सप्रेस ने नेहा धूपिया के साथ एक बातचीत में तैमूर नाम रखने के पीछे की सोच का खुलासा किया.
सैफ को इतिहास पसंद है और वो अपने बेटे का कोई ऐतिहासिक नाम ही रखना चाहते थे.
सैफ का मतलब पैगंबर मुम्मद के बेटे अली की तलवार से है, सैफ अली. उनका नाम किसी जंग से जुड़ा हुआ है. उन्होंने भी अपने बेटे का नाम काफी सोच समझकर रखा है.
लेकिन सैफ ने दिल्ली में हिंदुओं के कत्लेआम होने की ऐतिहासिक घटना को नजरअंदाज कर दिया.
क्या कहते हैं जस्टिन मरोजी
2004 में छपी अपनी किताब ‘तेमरलेन:स्वार्ड ऑफ इस्लाम, कांक्वरर ऑफ द वर्ल्ड’ में जस्टिन मरोजी ने लिखा है:
‘दिल्ली पर तैमूर की फतह सिकंदर और चंगेज खान की जीत से भी महान थी. दुनिया की सबसे अमीर और पैसे वाली जगह दिल्ली को जीतना इतना आसान नही था.
पश्चिम-मध्य एशिया से दिल्ली पहुंचने वाला रास्ता ही कई आक्रमणकारियों के हौसले पस्त कर सकता है. दिल्ली जीतने के बाद आम जनता का विद्रोह दबाने के लिए तैमूर ने दिल्ली में कत्लेआम करवा दिया.
लाखों की संख्या में मारे गए लोगों के शव चील-कौवों के लिए छोड़ दिए गए. तैमूर के इस आक्रमण के सदियों बाद भी भारत इसके असर से उबर नहीं पाया है.’
तैमूर का नाम जंग और नरसंहार के लिए जाना जाता है. हिंदुओं और मुसलमानों से नफरत करने वाले के नाम पर कोई अपने बेटे का नाम कैसे रख सकता है. यही नहीं, ऐसा नाम रखना मुसलमानों के लिए पैगंबर के बनाए नियमों के साथ धोखा है.
नामकरण पर पैगंबर का साफ पैगाम
मुस्लिम पिता अपने बेटे का नाम कैसा रखे इस पर पैंगबर मोहम्मद का साफ पैगाम है. इस पैगाम को इस्लाम और सूफीवाद की जानकार प्रो. अन्नेमैरी स्कीमल ने अपनी किताब ‘इस्लामिक नाम’ में बताया है.
पैगंबर ने कहा था कि अपने बेटे के लिए जो तीन फर्ज किसी पिता को निभाने का हक है उनमें बेटे का नाम रखना भी शामिल है.
‘अच्छे नाम’ रखने को लेकर पैगंबर ने अरबी रिवाज के मुताबिक डरावने या रूखे नाम रखने से ऐतराज किया है. जैसे हर्ब यानि जंग, सख्र यानि चट्टान और मुर्रा यानि कड़वाहट. इसमें में तैमूर यानि लोहा भी जोड़ देता हूं.
प्रो. अन्नेमैरी स्कीमल लिखती हैं,’ तुर्की कहावत है: अदि गुजेल तदि गुजेल. यानि जैसा नाम वैसी पहचान. इस लिहाज से डरावने और रूखे नाम वाले बच्चे किस्मत वाले नहीं माने जाएंगे.’
बदकिस्मती से भारतीय उपमहाद्वीप में अल्लाह के बताए इस्लाम पर मुल्लाओं का इस्लाम हावी है.
आप अंदाजा लगाइए. अगर इस बच्चे का नाम तैमूर अली खान की जगह टैगोर अली खान होता तो भारत में कितना सद्भाव पैदा होता.
व्यक्तिगत नहीं है मामला
मुझे और मेरे जैसे हजारों लोगों का गुस्सा नाजायज बताया जा रहा है. कहा जा रहा है कि यह सैफ अली खान और करीना कपूर का व्यक्तिगत मसला है. लेकिन इनका हर कदम मेरी कौम पर और इस्लाम मानने वालों पर असर डालता है.
अगर किसी को बुरा लगे तो मुझे माफ करे लेकिन मैं अपनी कौम के ऐसे राजनेताओं, फिल्मी सितारों, मुल्लाओं और नवाबों की आलोचना करना अपना काम समझता हूं.
यह मुद्दा तैमूर का नहीं बल्कि भारतीय उपमहाद्वीप के मुस्लिम समाज की बीमारी है. उन्हें आज भी लगता है कि नरसंहार करने वाले आक्रांता उनके हीरो हैं. एक दिन जीटीवी पर एक मौलाना ने मुझे बताया कि महमूद गजनवी, मुहम्मद बिन कासिम उनके हीरो हैं. उस मौलाना के लिए जिहादी शहंशाह औरंगजेब हत्यारा नहीं संत है.
मैं पाकिस्तान मे जन्मा एक भारतीय और इस्लाम में एक पंजाबी हूं. कभी कभी सोचता हूं कि भारतीय इतिहास या हिंदुस्तान की संस्कृति में ऐसी क्या कमी रह गई थी कि मुसलमानों ने आज इसे अपना नहीं सके?
पश्चिम में अरब सागर किनारे बलूचिस्तान से हिमालय का बंगाल की खाड़ी के नजदीक चिटागांग की पहाड़ियों तक. इसके बीच की पूरी सभ्यता का सिंधु, गंगा, नर्मदा और ब्रम्हपुत्र नदियों से सींचा जाना. एक हजार साल से ज्यादा इस सभ्यता में बिताने के बाद भी मुसलमानों को इस भारत में ऐसा क्या है जो अपमानजनक लगता है.
शुरुआत घर से ही करता हूं. मेरा नाम तारेक और मेरे भाई का नाम महमूद है. एक स्पेन को लूटने वाला और दूसरा भारत पर चढ़ाई करने वाला. आखिर हमारे वालिद ने हमें ये नाम दिए क्यों?
मेरा नाम कुछ और भी हो सकता था
हमारा नाम दारा शिकोह या बुल्ले शाह भी हो सकता था. थोड़ी और हिम्मत जुटाते तो हमारा नाम आतिश और अशोक भी रख सकते थे. लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
हमारी तरह ही भारतीय उपमहाद्वीप के लाखों करोड़ों मुसलमान लड़कों का नाम अरबी, अफगानी, तुर्की, उज्बेक या पारसी में रखा जाता है. ऐसे नाम कतई नहीं रखे जाते जिनकी जड़ें हिंदुस्तान के इतिहास से जुड़ी हों. हिंदू धर्म से नहीं, नाम भारतीय संस्कृति से भी तो हो सकता है.
सूरज को अरबी में शम्स कहा जाता है. लेकिन मुसलमानों में आपको शम्स नाम मिल जाएगा लेकिन हिंदी या पंजाबी का सूरज या सूर्य नहीं होगा. मुझे हैरानी होती है कि आखिर शम्स में ऐसा क्या है जो सूरज में नहीं. हम मुसलमान कहीं पैगंबर की संतानों को फलने-फूलने का मौका देने वाली सरजमीं का अपमान तो नहीं कर रहे?
दुनिया के बाकि मुल्कों की बात करें तो इंडोनेशिया के मुसलमान इंडोनेशियाई नाम रखते हैं, तुर्की में भी वहीं के नाम रखे जाते हैं. इसी तरह ईरानी, कुर्द, बलोच और बोस्नियाई मुसलमान अरबी नहीं बल्कि स्थानीय भाषा के नाम रखते हैं.
अन्य देशों मे रखे जाते हैं स्थानीय भाषा में नाम
मेगावती सुकर्णोपुत्री और ब्रह्मदाग बुगती के अरबी नाम नहीं हैं. लेकिन वो भी किसी दूसरे मुसलमान जितना ही इस्लाम को मानते हैं. इसी तरह तुर्की के एर्दोगन और ईरान के दारिश फोरोउहर भी मुसलमान हैं लेकिन इनके नाम अरबी नहीं हैं.
मध्य एशिया और अरबी दुनिया भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश के मुसलमानों को दोयम दर्जे का मानकर अपमान करती आई है. ऐसे में भारतीय नामों को न स्वीकारना भी विडंबना है.
करीना और सैफ को अपने बेटे का नाम मर्जी से रखने का पूरा हक है. मेरा मशविरा सिर्फ इतना है कि वो अल्लाह के बताए इस्लाम को मुताबिक यह नाम रखें. वह नाम इतिहास से भी हो सकता है और मुस्लिम रिवाज के मुताबिक भी.
‘मंसूर’ के बारे में क्या ख्याल है? सच के लिए अपनी जान देने वाले सूफी संत मंसूर हलज मध्यकालीन मुस्लिम तर्कशास्त्री थे. पूरी दुनिया उनको मानती है.
मंसूर से सैफ तो पहले से ही वाकिफ हैं. है ना सैफ? वैसे टैगोर अली खान भी रख सकते हैं. एक नई नजीर बनेगी.
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