दुनिया के कई हिस्सों में सिनेमा के पर्दे पर पिछवाड़ा दिखाना कोई बड़ी बात नहीं है. भारत में ऐसा नहीं है. यहाँ सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन यानि सीबीएफसी ने शरीर के कुछ हिस्सों के प्रदर्शन को अश्लील की कैटगरी में रखा है, ऐसे में ये हैरान करने वाला है.
अपनी गर्लफ्रेंड से इश्क फरमाने जब रणवीर होटल के कमरे की तरफ भागते हैं. तो कैमरा उनके सुंदर और गठीले शरीर पर करीब से फोकस करता है.
सेंसर बोर्ड ने इस सीन पर कैंची नहीं चलाई.
ये ऐतिहासिक है. नौ साल पहले सेंसर बोर्ड ने सांवरिया फिल्म में रणबीर कपूर के 'अश्लील' टॉवल डांस सीन को काटकर, हम सबकी पवित्रता बचाए रखने की कोशिश की गई थी.
लेकिन इस फिल्म में उन्होंने बिना कपड़े के हीरो की कूल्हों को दिखाकर हमारे संस्कारों को खतरे में डाल दिया है.
मेरे प्यारे भारतवासियों परदे पर एक पुरुष का पिछवाड़ा हमारे संस्कारों को खतरे में डाल सकता है. एक पल रुकिए, सोचिए ये कितनी बड़ी बात है.
ये बालिग दर्शकों की समझदारी को सम्मानित करने के लिए सेंसर बोर्ड का शुक्रिया. हमारी समझदारी की इज्जतअफजाई के लिए हम उनके शुक्रगुजार हैं.
थोड़ा ज्यादा हो गया ना?पर क्या करें बात तो समझानी ही थी ना. ;-)
मैंने सेंसर बोर्ड का काफी मजाक उड़ा लिया. अब फिल्म की रिव्यू के बारे में बात करते हैं.
डायरेक्टर आदित्य चोपड़ा की ‘बेफ़िक्रे’ में रणवीर सिंह और ‘शुद्ध देशी रोमांस’ से फेमस हुई वाणी कपूर की जोड़ी है.
फिल्म में दोनों धरम गुलाटी और शायरा गिल के किरदार में हैं. जो पहले प्रेमी थे लेकिन बाद में दोस्त बन जाते हैं.
मस्त अंदाज वाली बिंदास फिल्म है
फिल्म का हीरो दिल्ली का लड़का है, जो अपने भाई के नाइटक्लब में स्टैंड-अप कॉमेडियन के तौर पर काम करने के लिए पेरिस जाता है.
शायरा पेरिस में भारतीय मूल की पारसी लड़की हैं जो एक टूरिस्ट गाइड हैं, और कभी-कभार अपने माता-पिता की रेस्टोरेंट चलाने में उनकी मदद करती है.
धरम एक ऐसे लड़के के किरदार में है ठरकी है. कई बार तो जरुरत से कुछ ज्यादा ही. शायरा को कमिटमेंट में यकीन नहीं है, लेकिन वो भी बिंदास जिंदगी जीने में यकीन रखती है.
फिल्म में जब दोनों पहली बार एक दूसरे से मिलते हैं तो उन्हें उनकी जरुरतों के हिसाब में उन्हें एक-दूसरे लिए लिए बिल्कुल परफेक्ट दिखाया गया है.
फिल्म में दोनों की दोस्ती, प्यार और बाद में ब्रेक-अप के बाद के समय को दिखाया गया है.
‘बेफिक्रे’ मौज-मस्ती से भरी फिल्म है. रणवीर मस्तमौला और एनर्जी से भरे हैं. वो किसी को भी आकर्षित कर सकते हैं.
जबकि, वाणी में पारंपरिक सुंदरता नहीं होने के बावजूद, किसी को भी अपने बस में कर लेने वाला गजब का आकर्षण है. हाल के दिनों में आयी हिंदी फिल्मों की जितनी भी हिरोईनें हैं उनमें से वाणी की आवाज सबसे अच्छी है. उनकी आवाज में एक तरह की कशिश है.
फिल्म में रणवीर ने एक असंवेदनशील रेप जोक सुनाया है जिसपर अलग से लंबी चर्चा की जा सकती है. लेकिन अगर उसे छोड़ दिया जाए तो दोनों अपने अंदाज से सबका मनोरंजन करते है.
फिल्म में दोनों की हॉट जोड़ी के अलावा विशाल-शेखर का झूमने वाला संगीत है. जयदीप साहनी के गानों में हिंदी और फ्रेंच शब्दों का अनोखा मेल है, इसके अलावा वैभवी मर्चेंट की जबरदस्त कोरियोग्राफी, ‘बेफ़िक्रे’ को एंटरटेनमेंट पैकेज बनाता है.
फिल्म में वाणी कपूर का फिटनेस गजब का है. मैंने फिल्म के अंत में आने वाले सारे नाम तसल्ली से देखे हैं मुझे कहीं वाणी कपूर के फिटनेस ट्रेनर और डांस टीचर के नाम नहीं दिखे. कोई मुझे उनका नंबर देगा प्लीज.
वाणी ने जिस तरह अपनी देह को एक डांस सीक्वेंस में तोडा मरोड़ा है वो गजब है. कोई मुझे अगर ये कैमरा ट्रिक नहीं है तो उन्हें मेरा सलाम!
(आगे स्पॉइलर्स हैं)
'नई बोतल में पुरानी शराब' है फिल्म
इस फिल्म की आत्मा कहीं न कहीं अधूरी है. आखिरकार, बॉलीवुड और कितनी बार कमिटमेंट में विश्वास न रखने वाले दो दोस्तों की कहानी बार-बार दिखाता रहेगा.
ऐसे लोग या जोड़ियां जो पहले कहीं और प्यार ढूंढते हैं, लेकिन बाद में इसका एहसास होने पर कि वे एक-दूसरे के लिए बने हैं, अपने प्रेमी के पास लौट आते हैं.
2004 में आई ‘हम तुम’, 2009 की ‘कल आज और कल’ में आदर्शों के मूल्यों की गहराई थी. 2013 की ‘ये जवानी है दीवानी’ या फिर 2015 में आई ‘तमाशा’ ने इस बहस को नई दिशा दे दी.
बेफिक्रे, काल्पनिक तौर पर मनोरंजक फिल्म है, लेकिन अंत में ये भी नई बोतल में पुरानी शराब जैसी ही है.
फिल्म में रणवीर और वाणी सेक्स को काफी इंज्वॉय करते हैं. दोनों अपने फैसले खुद लेते हैं.
ये आदित्य चोपड़ा की 21 साल पहले की पहली फिल्म ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’ के संस्कारी जोड़े से अलग हैं. जो हीरोईन के भारतीय पिता के उसूलों के आगे झुक जाते हैं.
लेकिन ये बदलाव तब समझ में आएगा जब आदित्य चोपड़ा की बनाई फिल्मों को वैक्यूम में रखकर देखा जाए. वो भी 1995 के बाद के हिंदी सिनेमा में आए बदलाव को ध्यान में रखे बिना.
डीडीएलजे से मिलती जुलती है बेफ़िक्रे
फिल्म के दिल और आत्मा में और बहुत कुछ किया या सकता था.जाने कितनी बार बॉलीवुड उस कहानी को घसीटेगा जहाँ दो ऐसे लोग मिलते हैं जो कमिटमेंट के चक्कर में नहीं पड़ते. पुराने साथी को छोड़ किसी दूसरे की तरफ प्यार खोजते जाते हैं फिर आखिरकार उन्हें लगता है कि उनका पुराना साथी ही उनका सच्चा प्यार है.
कुनाल कोहली की 2004 में आई 'हम तुम',इम्तियाज़ अली की 2009 में आई कल आज और कल में तो फिर भी कुछ नयापन और गहराई थी. साल 2013 में आई अयान मुखर्जी की 'ये जवानी है दिवानी' एक नया ऐंगल तो डाला ही गया था.
पर बेफिक्रे में सतही मनोरंजन है. कुल मिलाकर ये नई बोतल में पुरानी शराब है.
ये बात सही है कि दोनों के बीच में ढेर सारा सेक्स है और दोनों अपने अपनी अपनी पसंद से निर्णय लेते है. लेकिन अगर ये देखा जाए कि यह फिल्म उसी डायरेक्टर से आई है जिसने 21 साल पहले अपनी पहली फिल्म डीडीएलजे बनाई थी तो फर्क दिखेगा. डीडीएलजे के संस्कारी ही हिरोइन लडकी के खडूस हिटलर छाप बाप के आगे नतमस्तक होते हैं. ये आदित्य के बदलाव को दिखाता है.
जैसा कि ज्यादातर बॉलीवुड फिल्मों में होता है, ये फिल्म भी परंपरावादी दर्शकों के लिए ही बनाई गई है. वो जो ये मानते हैं कि हीरो और हिरोईन के बीच अगर शारीरिक संबंध बनते हैं तो उसका अंत शादी से ही होना चाहिए.
फिल्म में हीरो-हिरोईन के बीच बहुत सारे अंतरंग दृश्य होने के बावजूद आदित्य चोपड़ा भारतीय मूल्यों और संस्कार को लेकर अपनी परंपरावादी सोच को छिपा नहीं पाते.
शायरा और धरम के बीच ब्रेक-अप होने के बाद शायरा को फिर से रिलेशनशिप में दिखाया जाता है, लेकिन इस बार वो अपने प्रेमी के साथ सेक्स नहीं करती.
दूसरी ओर, धरम वैसे ही बेफिक्र और ठरकी अंदाज में जिंदगी जीता रहता है, वो दोबारा एक फ्रेंच हसीना के साथ भी बनाता है.
धरम के लिए सेक्स ही सबकुछ है, वो बड़ी आसानी से विदेशी गोरी लड़कियों के साथ सेक्स संबंध बनाता है. वो लडकियां उसके लिए सिर्फ एक सेक्स साधन बनकर रह जाती हैं. हीरो के लिए वो कोई गंभीरता से लेने वाली चीजें नहीं हैं.
पीछे मुड़कर अगर आप डीडीएलजे के पिछड़ेपन को याद करें तो ये सब आपको जरा भी हैरान करने वाला नहीं लगेगा. दोनों फिल्मों के बीच जो फर्क है वो ये कि, ‘बेफ़िक्रे’ उतनी पिछड़ी हुई फिल्म नहीं है.
हालांकि, ये फिल्म क्रांतिकारी और तरक्कीपसंद होने का दावा तो करती है लेकिन असल में ये सिर्फ एक हालात या सिचुएशन की तस्दीक करती है.
इसलिए आदित्य चोपड़ा के निर्देशन में बनी उनकी चौथी फिल्म को उसकी स्मार्ट पैकजिंग यानि मौज-मस्ती, संगीत और खूबसूरत लोकेशंस के लिए देखा जा सकता है.
क्योंकि रणवीर और वाणी की बेफिक्र रोमांस, किसिंग सीन्स, हीरोईन के छोटे ड्रेस और बहुत सारा सेक्स भी फिल्म की पारंपरिक मूल कहानी को छिपाने में नाकाम रही.
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