‘जब हैरी मेट सेजल’ से दो अलग स्कूल ऑफ फिल्म मेंकिंग का संगम हुआ है - शाहरुख खान और इम्तियाज अली. जाहिर सी बात है कि उत्सुकता तो रहेगी ही कि फिल्म आखिर कैसी बन पड़ी है?
इसके बारे में हम बात करेंगे लेकिन उसके पहले हम ये भी बता दें कि दोनों फिलहाल किस मुकाम पर खड़े हैं. शाहरुख की पिछली तीन फिल्मों को उनके मन मुताबिक दर्शकों का प्यार नहीं मिल पाया था - दिलवाले, डीयर जिंदगी और रईस तो वहीं दूसरी ओर तमाशा की लोगों ने दिल खोल कर सराहना तो की थी, लेकिन ज्यादा लोगों ने फिल्म के टिकट खरीदने के लिये अपने जेब से पैसे नहीं निकाले थे.
फिल्म का स्वाद खट्टा है
इस लिहाज से ‘जब हैरी मेट सेजल’ के बारे में कहना पड़ेगा कि ये फिल्म उनके आगे के करियर को किस तरफ ले जायेगी उस हिसाब से ये काफी अहम फिल्म है. इस फिल्म का स्वाद खट्टा है. आप फिल्म के शुरु के आधे घंटे ही एंटरटेन होंगे उसके बाद इसको सहने के लिये आपको अपार शक्ति की जरुरत पड़ेगी.
सबसे कमजोर फिल्म
सिनेमाहॉल से बाहर निकलते वक्त आपको इस बात का ख्याल रहेगा कि मैं अभी क्या देंखकर बाहर निकला हूं. ये फिल्म इम्तियाज अली की अब तक की सबसे कमजोर फिल्म है. ये फिल्म आपको बोर करती है क्योंकि कहानी के नाम पर इसमें कुछ भी नहीं है. शुक्र है कि अनुष्का और शाहरुख ने अपने अभिनय से इसकी लाज बचा ली है.
गायब है इम्तियाज की छाप
सबसे पहले बात इम्तियाज के बारे में. इम्तियाज की फिल्मों का एक फ्लेवर होता है. आप चाहे उनकी कोई फिल्म उठा लें चाहे वो जब वी मेट हो या फिर रॉकस्टार या फिर तमाशा एक खुशनुमा माहौल में संजीदगी छाई रहती है. सुफियाना माहौल की ताज़गी रहती है. कमर्शियल फिल्म के दायरे में वो एक ज़मीन से जुड़ी कहानी कह जाते हैं और इश्क का ऐसा रंग भरते हैं जो इसके पहले हमें यश चोपड़ा की फिल्मों में ही नजर आता था.
लेकिन इस फिल्म में उनकी पुरानी फिल्मों की छाप पूरी तरह से ग़ायब है और जो कुछ भी उन्होंने नया करने की कोशिश की है, इम्तियाज अपनी इस कोशिश में औंधे मुंह गिर पड़े हैं. हैरी मेट सेजल को में उनकी एक कमजोर फिल्म कहूंगा. ये एक जर्नी फिल्म है जिसमें सबकुछ अच्छा है - चाहे वो अदाकारी हो, गाने हो या फिल्म के लोकेशंस लेकिन जिस छाप के लिये इम्तियाज जाने जाते है वो मिसिंग है फिल्म से.कहने का सार ये है कि इमोशंस का तड़का फिल्म में कम दिखाई देता है जिस वजह से ये ‘जब हैरी मेट सेजल’ जो की मूलत एक लव स्टोरी है कमजोर दिखाई देती है.
कुछ ऐसी है स्टोरी
कहानी हरविंदर नेहरा यानि की शाहरुख खान के बारे में है जो यूरोप में टूरिस्ट गाइड है. उनका पेशा है टूरिस्टों को यूरोप में शहरों के दर्शनीय स्थल के दर्शन कराना.
हिंदुस्तान के एक ऐसे टूरिस्ट ग्रुप की सदस्य है सेजल यानि अनुष्का शर्मा. अनुष्का ऐन वक्त जब हिंदुस्तान के लिये कूच करने वाली होती हैं तो उनको पता चलता है कि उनकी सगाई की अंगूठी कहीं पर खो गई है. अपनी फ्लाइट छोड़कर वो एयरपोर्ट से सीधे बाहर निकल आती हैं अपनी अंगूठी ढूंढने के और इत्तेफ़ाक से उन्हे उसी टूरिस्ट गाइड के दर्शन हो जाते हैं जो पूरे ग्रुप को छोड़ने के लिये वहां आया होता है. काफी दबाव में आकर हरविंदर उसे उन जगहों पर ले जाने को तैयार हो जाता है जहां पर अंगूठी के गुम होने की संभावना होती है.
यूरोप घूम सकते हैं बस
उसके बाद हमें यूरोप के कई शहरों के दर्शन हो जाते हैं उनकी इस खोज में. अंगूठी आखिर में मिलती है. अंगूठी कहां पर मिलती है इसका खुलासा करना ठीक नहीं होगा. और फिर जब सेजल के हिंदुस्तान जाने की बारी आती है तो इमोशंस एक्टिव हो जाते है.
फिल्म की जान अनुष्का
अनुष्का शर्मा इस फिल्म की जान है और उनका अभिनय कमाल का है. इस बात को कहना ठीक होगा की फिल्म को देंखने की सबसे बड़ी वजह अनुष्का शर्मा ही है. एक अमीर गुजराती लड़की के किरदार में चाहे गुजराती भाषा हो या फिर थोड़ी नासमझी या फिर इमोशंस दिखाने की बात - उनको इस किरदार के लिये पूरे नंबर मिलने चाहिये.
कंट्रोल्ड हैं शाहरुख
शाहरुख खान का फिल्म में काफी कंट्रोलंड और सटल अभिनय है. कुछ एक मोमेंट्स फिल्म में है जिनको देखकर लगता है कि ये चीजें शाहरुख खान ही कर सकते हैं. लेकिन लगता है कि इम्तियाज उनका भरपूर इस्तेमाल नहीं कर पाये हैं.
इन दोनों को अलावा और दूसरा कोई भी महत्वपूर्ण किरदार फिल्म में नहीं है. इस फिल्म में इम्तियाज के पास वो दोनों चीज़े थी जिसकी वजह से वो जाने जाते है - जर्नी और रोमांस लेकिन इस बार इन दोनों के मिश्रण का तालमेल सही तरीके से बैठ नहीं पाया है. इस फिल्म का हाल कुछ ऐसा है कि इसकी नींव ही बेहद कमजोर है.
रबड़ की तरह खींची है फिल्म
अगर आप अंगूठी ढूंढने के मुद्दे पर पूरे यूरोप की सैर करते फिरेंगे तो ये थोड़ा सुनने में बचकाना लगता है. जाहिर सी बात है फिल्म का एक लंबा हिस्सा दोनों किरदारो के बीच के नोक झोंक और उनके बातचीत पर केंद्रित होगा लेकिन ये दोनों ही चीज़े आपको बोर करती है. सच तो ये है कि फिल्म के आधे घंटे के बाद से उसको रबड़ की तरह खींचा गया है. कोई भी चीज फिल्म में मूव नहीं करती है.
नहीं है ढंग की स्टोरी
एक सिलसिलेवार कहानी का फिल्म में ना होना ही इसकी सबसे बड़ी कमज़ोरी है. अगर आप अपनी फिल्म को सीचुवेशंस के हिसाब से आगे बढ़ा रहे है तो उन सीचुवेशंस का दमदार होना बेहद जरूरी होता है और ‘जब हैरी मेट सेजल’ में ऐसा कही भी नजर नहीं आता है. इस फिल्म का ग्राफ़ बिल्कुल सपाट है. संजदगी फिल्म में कही नजर नहीं आती है. इस फिल्म का भार काफी था शाहरुख और अनुष्का के कंधों पर लेकिन इम्तियाज इस बोझ के नीचे दबे से दिखाई देते हैं. इम्तियाज के करियर की इस सबसे कमजोर फिल्म को देखने की वजह सिर्फ और सिर्फ अनुष्का है. अगर आप यूरोप देख चुके है तो आपको फिल्म छोड़ने का मलाल नहीं होना चाहिये.
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