मुंबई अंडरवर्ल्ड पर ढेरों फिल्में बनी हैं और ज्यादातर फिल्में चली भी हैं लेकिन हसीना ने फिल्म में अंडरवर्ल्ड की जो कहानी सुनाई है उसके किरदारों में दम नहीं है. शायद फिल्म की कहानी को बैलेंस करते-करते डायरेक्टर अपूर्व लाखिया इस बात को भूल गए कि उनसे इस फिल्म में कहीं ना कहीं दाऊद इब्राहिम का ग्लोरिफिकेशन हो गया है.
सबसे पहले तो यहां ये साफ कर देना जरूरी है कि इस फिल्म का कास्टिंग करते वक्त वो कुछ ज्यादा ही जज्बाती हो गए. श्रद्धा कपूर के अलावा जितने भी कैरेक्टर्स की कास्टिंग इस फिल्म में की गई है वो काफी कमजोर है. कमजोर कास्टिंग के साथ एक संजीदा कहानी डायरेक्टर की मुट्ठी से फिसलती चली गई है.
अब तक अंडरवर्ल्ड पर बनी कहानियों को दर्शक हाथों-हाथ लेते रहे हैं क्योंकि इनमें एक्शन, रोमांस और रोमांच सब कुछ होता है. फिल्म हसीना पारकर में डायरेक्टर अपूर्व लाखिया इनमें से कुछ ही क्रिएट कर पाने में सफल नहीं हो सके हैं.
कहानी
हसीना पारकर की कहानी कोर्ट में हसीना की एंट्री से शुरू होती है. पुलिस के लिए मोस्ट वॉटेंड हसीना पारकर कोर्ट में बाकायदा टैक्सी के काफिले में बैठकर पेशी के लिए आती हैं और जो पुलिस उसे ढूंढ रही होती है वो कोर्ट के बाहर उसके लिए लोगों को रोककर रास्ता बनाती है. मुंबई पुलिस को इस स्टोरी में इतना वीक दिखाया गया है. हसीना से फिर कोर्ट में जो भी सवाल किए जाते हैं उनके जवाब वो कहानियां हैं जो कटघरे में खड़ी हसीना की यादों में फ्लैशबैक में चल रहे होते हैं. जज साहब जिस तरह से हंसकर अपना फैसला हसीना को सुनाते हैं उससे थिएटर में बैठे लोग खुद को हंसने से नहीं रोक पाए थे.
श्रद्धा बनीं डी-ग्लैम ‘हसीना’
इस फिल्म को डायरेक्टर ने चाहे संजीदगी से ना लिया हो लेकिन श्रद्धा ने अपने काम को काफी सीरियसली लिया है. डी-ग्लैम लुक में वो साधारण महिला के किरदार में फिट नजर आईं हैं. फिल्म में उन्होंने जो डायलॉग्स बोले हैं उनमें भी वो सफल रही हैं और अब तक एक ग्लैम डॉल की छवि को तोड़ने के लिए उन्होंने जो ये फिल्म की है उसमें वो काफी हद तक सटीक लगी हैं. हां, फिल्म में कई बार आपको उनके अंदर विद्या बालन की छवि भी नजर आएगी.
सिद्धांत हुए फेल
श्रद्धा कपूर के भाई सिद्धांत कपूर ने इस फिल्म में दाऊद इब्राहिम का रोल अदा किया है. खलनायक के तौर पर उनके लिए इस फिल्म में दिखाने के लिए काफी कुछ था लेकिन वो अपनी छाप छोड़ पाने में नाकाम रहे हैं. दाऊद के तौर पर अपना टेरर वो दर्शकों तक पहुंचा पाने में सफल नहीं हो सके हैं, उनको ये समझना चाहिए था कि दाऊद इब्राहिम वो शख्सियत है जिसके बारे में लोगों को जितना पता है वो उससे भी ज्यादा उसके बारे में जानना चाहते हैं, ऐसे में उसका खौफ लोगों के दिलों में अगर वो उतार पाते तो उनकी तारीफ भी उनकी बहन श्रद्धा की तरह ही होती. शायद खलनायक वाले रोल के लिए उन्होंने अपने पिता से ही कुछ टिप्स लिए होते तो वो कुछ करिश्मा करने में सफल हो सकते थे.
संगीत
फिल्म का संगीत दोयम दर्जे का है. हसीना पारकर की रोमांस वाली लाइफ को दिखाने के लिए जिन गानों को दिखाया गया है वो अगले दो मिनट में ही लोगों की याद से गायब हो जाते हैं और इन गानों को सिर्फ फिल्म की लंबाई बढ़ाने के लिए डाला गया हो ऐसा ज्यादा लगता है. दाऊद की कहानी से जुड़ी एक फिल्म वंस अपॉन ए टाइम इन मुंबई भी आई थी, जिसमें किरदारों की एक्टिंग से लेकर म्यूजिक सब कुछ इतना हिट था कि आज भी वो फिल्म जब टीवी पर आती है तो लोग उसे देखने के लिए चैनल तक नहीं बदलते हैं.
डायरेक्टर के लिए नोट
अपूर्व लाखिया ने शूटआउट एट लोखंडवाला जैसी फिल्म भी बनाई थी जिसके लिए उनकी काफी तारीफ हुई थी लेकिन हसीना पारकर में वो शायद इसे बायोपिक की तरह ट्रीट करने में उलझ गए. थोड़ा दूर से अगर वो इसे देखते तो उन्हें इसकी कमियां पता चल जातीं. श्रद्धा के अलावा वो किसी और एक्टर से काम निकलवा पाने में नाकाम रहे हैं, उम्मीद है इसका रिव्यू वो खुद भी करेंगे.
वरडिक्ट
अगर आप मनोरंजन के लिए इस फिल्म को देखने जाना चाहते हैं तो हम आपसे कहेंगे कि आप इससे दूर ही रहें लेकिन अगर आप श्रद्धा कपूर के फैन हैं तो उनके लिए एक बार इसे देखते सकते हैं. हमारी तरफ से इस फिल्म को थम्स अप नहीं है. स्टार्स आपको ऊपर ही देखने को मिल गए होंगे.
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