जमाना अंग्रेजों का था लेकिन हिंदुस्तान में फिल्में बनने लगी थीं. पहले मूक फिल्मों का दौर था फिर ‘आलम-आरा’ की रिलीज से हमारी फिल्में बोलने लगीं.
जब शमशाद बेगम ने फिल्मों के व्यवसाय में एक गायिका के रूप में प्रवेश किया तो पार्श्व-गायक या गायिका जैसा शब्द गढ़ा नहीं गया था.
हर गाने की दो बार रिकॉर्डिंग होती थी, पहली शूटिंग के समय और दूसरी बार स्टूडियो में. बोलती फिल्मों की तकनीक से एक बिल्कुल नए व्यवसाय ने जन्म लिया, जिसे बाद में पार्श्व-गायन यानी प्ले-बैक सिंगिंग कहा जाने लगा.
रिकार्ड बनने लगे और ग्रामोफोन ने फिल्मी गानों को घरों तक पहुंचा दिया. इसी तकनीक के सहारे शमशाद बेगम की दिलफरेब आवाज घरों में, जलसों में और क्लबों में गूंजने लगी.
खास आवाज की मल्लिका
1940 से 1960 तक हर नई फिल्म के साथ शमशाद बेगम की आवाज का जादू लोगों पर चढ़ता गया. मशहूर संगीतकार नौशाद ने उनके बारे में एक इंटरव्यू में कहा था कि ‘अच्छी आवाजें दुनिया में बहुत हैं. लेकिन शमशाद बेगम एक खास आवाज की मालिक हैं.’
आज 2017 में, जबकि संगीत और उससे जुड़ी तकनीक ने, हैरान कर देने वाली महारत हासिल कर ली है. उसके सामने 30 और 40 के दशक की म्यूजिक की बात करना बिल्कुल ऐसा ही है, जैसे हम अपने घरों में दादा-परदादा की धुंधली तस्वीरों की नुमाइश करते हैं.
दुनिया में ऐसे लोग बहुत कम होंगे जो जीते जी गुमनाम हो गए हों मगर उनके कारनामे लोगों के सर चढ़ कर बोलते हों. ऐसी ही थीं शमशाद बेगम. उन्हें 94 बरस की लंबी जिंदगी मिली. 36 वर्ष की उम्र में विधवा हो गयीं, जीवन के 45-50 वर्षों तक उन्होंने गाया और फिर एक लंबी गुमनामी की जिंदगी जीती रहीं, लेकिन उनकी बेमिसाल आवाज गूंजती रही.
लता मंगेशकर ने किसी मौके पर अपने बचपन की यादें बांटते हुए बताया था कि पुणे के किसी संगीत कंपटीशन में उन्होंने शमशाद बेगम के दो गाने गाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया था.
उनकी आवाज आज भी थिरकने पर मजबूर कर देती है
आइए उनकी पुण्यतिथि पर उनके बारे में और बातें करने से पहले उनके कुछ सदाबहार गीतों को याद करें जो आज भी इस ‘मिलीनियल-युग’ में, किसी डीजे की पसंद में शामिल होकर नौजवानों को थिरकने पर मजबूर कर देते हैं.
याद कीजिए सन् 1949 की फिल्म ‘पतंगा’ का सी रामचंद्रन का संगीतबद्ध किया वह गाना जिसे परदे पर खूबसूरत निगार सुल्ताना और गोप ने गया था. गाना यहां से शुरू होता है, ‘हेल्लो... हिंदुस्तान का देहरादून?... हेल्लो... मैं रंगून से बोल रहा हूँ... मैं अपनी बीवी रेणुका देवी से बात करना चाहता हूं.’
गाना सूनने से पहले ये भी जान लीजिए कि ये पहली फिल्म थी जिसमें ‘स्प्लिट-स्क्रीन’ का प्रयोग किया गया था. आधे परदे पर रंगून और आधे पर देहरादून:
और आज भी पैरों में थिरकन पैदा कर देने वाला, सी.आई.डी.(1956) का वह गाना जिसमें सदाबहार देवानंद अपनी माशूका शकीला को लुभाने के लिए, सड़कों पर गाकर, भीख मांगने वाली एक जोड़ी के साथ अपनी हिरोइन का पीछा करते हैं और अपने दिल की बात उनकी जबान से करते हैं. ‘लेके पहला-पहला प्यार’.
नीचे लिंक पर ओ.पी. नय्यर साहब का संगीतबद्ध यह गाना सुनकर आप शमशाद बेगम को अपनी श्रद्धांजलि दे सकते हैं. इस गाने में शमशाद बेगम का साथ दे रहे हैं मो. रफ़ी साहब:
‘लेके पहला-पहला प्यार’ के लिए ओ.पी. नय्यर साहब ने शमशाद बेगम को इसलिए चुना था क्योंकि दो साल पहले ही नय्यर-शमशाद जोड़ी का एक गाना उस समय कामयाबी के सारे रिकॉर्ड तोड़ चुका था.
फिल्म थी ‘आर-पार’ (1954), निर्देशक और हीरो थे गुरुदत्त और उनकी हेरोइन थीं श्यामा. सुनिए मजरूह सुल्तानपुरी के शब्दों को आवाज से यादगार बनाने वाली आवाज को:
तो ये थीं शमशाद बेगम. ‘सैय्यां दिल में आना रे, आकर फिर न जाना रे’ और ‘कजरा मुहब्बत वाला, अंखियों में ऐसा डाला’ जैसे सैकड़ों गाने इंटरनेट पर मौजूद हैं जिन्हें एक दिलफरेब आवाज ने हमेशा-हमेशा के लिए अमर बना दिया.
दो दशक तक किया दिलों पर राज
शमशाद बेगम ने दो दशकों तक कई संगीत निर्देशकों के साथ काम किया. हालांकि 1955 के बाद से लता मंगेश्वर का हिंदी फिल्म-उद्योग के प्रमुख पार्श्व गायकों में नाम आना शुरू हो गया था, फिर भी, शमशाद बेगम की आवाज में एक जबरदस्त कशिश थी और उनकी आवाज में गाये हुए गाने फिल्मों की कामयाबी की गारंटी थे.
उनकी आवाज में कमाल का रेंज था इसीलिए गंभीर, हास्य, रोमांटिक, बच्चों-वाले, भक्ति और देश-भक्ति, हर जगह उनकी आवाज की ज़रुरत महसूस होती थी. गुलाम हैदर, नौशाद अली, ओ.पी. नय्यर, और एस.डी. बर्मन जैसे संगीत निर्देशक जिन्होंने हमारे फिल्मी संगीत को दशा और दिशा दी, शमशाद बेगम की आवाज के दीवाने थे.
शमशाद बेगम सही मायनों में पेशेवर गायक थीं और फिल्मी दुनिया में रहते हुए भी फिल्मी गपशप से हमेशा दूर रहीं. उन्होंने अपनी जाती जिंदगी को अपने पेशेवर जिंदगी के साथ मिलने नहीं दिया. अपने घरवालों के विरोध के बावजूद, उन्होंने 1934 में वकील गणपतलाल से शादी की. जिनकी 1955 में, एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गयी.
शमशाद बेगम का निधन 23 अप्रैल 2013 को 94 साल की उम्र में हुआ.
14 अप्रैल 1919 को लाहौर में पैदा हुई शमशाद बेगम के सात भाई बहन थे और उनके वालिद हुसैन बख्श एक मोटर मैकेनिक थे. विभाजन के बाद शमशाद बेगम ने मुंबई, हिंदुस्तान में रहने का फैसला किया. जहां 23 अप्रैल 2013 में उन्होंने अपनी बेटी उषा रात्रा के घर पर अंतिम सांस ली.
अपने लंबे करियर में, उन्होंने हिंदी, बंगाली, गुजराती और पंजाबी समेत कई और भाषाओं में सैकड़ों गाने रिकॉर्ड कराए.
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