एमबीए डिग्री के ऊपर संगीत भारी पड़ा, ये बात राहुल मिश्रा से मिलकर पता चल जाता है. संगीतकार और गायक राहुल की ताजा पेशकश नैना आजकल लोगों की जुबान पर चढ़ा हुआ है.
नैना राहुल और उनके मेंटर मोहित सूरी, जो इसके पहले आशिकी 2 और एक विलेन जैसी फिल्में बना चुके हैं, की ओर से नई सौगात है. इस गाने को लेकर फर्स्टपोस्ट हिंदी ने राहुल मिश्रा और मोहित सूरी से एक खास मुलाकात की.
राहुल आप सबसे पहले ये बताइए कि नैना गाने की प्रेरणा आपको कहां से मिली?
सच्चाई यही है कि नैना गाने को मैंने कुछ खास सोच कर नहीं बनाया था. एक आर्टिस्ट जब बैठता है तो इस बात को शब्दों में बया करना थोड़ा मुश्किल है कि प्रेरणा का स्रोत कहां से आता है. प्रकृति से ही प्रेरणा मिलती है और उसके बाद अंगुलियां पियानो पर चलने लगती हैं और दिमाग में उसके बाद ट्यून आ जाता है. एक आर्टिस्ट अपने आस पास के लोगों से ही इंस्पायर होता है.
जब आपने गाने को पहली बार पूरी तरह से कंपोज कर लिया था तब उसके बाद यह गाना आपने सबसे पहले किसको सुनाया था?
पहली बार जब गाना पूरी तरह से बन गया था तब मैं उसे खुद ही बार बार सुनता था. उसके बाद इस गाने को मैं अपने कुछ क़रीबी दोस्तों को सुनाया. उनको ये काफी पसंद आया था और उनकी पहली प्रतिक्रिया यही थी कि गाना कुछ अलग हट के लग रहा है. मेरे दोस्तों ने मुझे बताया कि आजकल जिस तरह के गाने चल रहे हैं उनसे यह काफी अलग है. यह मेरी पुरानी आदत है कि जब भी मैं कोई गाना बनाता हूं तो सबसे पहले उसे मैं अपने करीबी दोस्तों को सुनाता हूं और इसके पीछे वजह यही है कि उनसे एक विशुद्ध प्रतिक्रिया जानने को मिलती है.
मोहित सूरी ने जब गाना पहली बार सुना था तो उनकी क्या प्रतिक्रिया थी? क्या उन्होंने गाने में कुछ एक चेंजेस की हिदायत दी थी?
मोहित सूरी ईएमआई में हमारे मेंटर है. जब पहली बार उन्होंने गाना सुना था तो उनकी तरफ से ओके था. किसी भी तरह का परिवर्तन उन्होंने कम्पोजीशन में नहीं किया. चाहे वो इसके बोल हों या फिर ट्यून. जब उन्होंने गाना पहली बार सुना था तो यही कहा था कि यह एक हिट गाना है. मुझे याद है कि उन्होंने ये भी कहा था यह गाना बहुत पहले आ जाना चाहिए था. उन्होंने मुझको कहा था कि जब इस गाने को मैं डब करूंगा तब वो मुझे उस वक्त रिकॉर्डिंग स्टूडियो में बुला लें. देर रात को इसके गाने की डबिंग हुई थी लेकिन मोहित फिर भी वहां पर आ गए थे. उनके उस वक़्त के सुझाव काफी मददगार साबित हुए थे.
मोहित के बारे में आप और क्या बोलेंगे?
मैं ये मानता हूं कि बॉलीवुड में जो भी नए कम्पोज़र्स आते हैं उनका सपना होता है कि वो मोहित सूरी की संगत में गानों को कंपोज करें और उसके पीछे सिर्फ यही वजह है कि मोहित अपने म्यूजिक सेंस के लिए बॉलीवुड में जाने जाते हैं. उनकी फिल्मों में जो भी गाने होते हैं उसे एक अलग तरीके से नोटिस किया जाता है. लोग उनकी फिल्मों के गानों का बेसब्री से इंतज़ार करते हैं. उन गानों को एक अलग तवज़्ज़ो मिलती है. मोहित के अंदर इमोशंस की ज़बरदस्त पकड़ है.
संगीत का शौक कहां से आया आपको?
देखिए सभी की कहानी सामान होती है. बचपन से मुझे भी संगीत का काफी शौक रहा है. स्नातक होते होते मैंने इलाहाबाद में शास्त्रीय संगीत सीख लिया था लेकिन घर पर किसी को भी बताने की हिम्मत नहीं हो रही थी कि संगीत में ही मुझे अपना करियर बनाना है.
हकीकत यही है कि मुझे किसी भी तरह से मुंबई आना था.जब बात एमबीए पर आई तब मैंने यही सोचा की मुंबई के ही किसी कॉलेज से एमबीए किया जाए लेकिन उस वक़्त मेरे पिताजी ने मुझे हिदायत दी थी कि मुंबई सेफ नहीं है और मुंबई छोड़ कर मैं किसी और शहर से अपना एमबीए कर लूं. ईश्वर की दया से मैंने पुणे के कॉलेजों में अपना आवेदन दिया और वह पर मेरा एडमिशन हो गया. पढ़ाई के बीच मैं मुंबई के चक्कर भी लगाता था.
जब मैं अपनी नौकरी की ट्रेनिंग पर था तब मुझे इस बात का एहसास हुआ कि मुझे संगीत में ही जाना है. काम करने में मुझे मज़ा नहीं आ रहा था. उसके बाद मैं लगभग डेढ़ महीने के लिए अपने घर चला गया था और उसी दौरान घर वालों से इस बारे में काफी ढेर सारी बातें हुईं. मैंने यही कहा था कि मुझे तीन साल का वक्त दिया जाए अगर कुछ हो गया तो अच्छा रहेगा वर्ना एमबीए डिग्री से मैं नौकरी कर लूंगा और फिर उसके बाद गिटार लेकर मुंबई में स्ट्रगल शुरू हो गया.
क्या आप अपने संगीत के सफर से संतुष्ट हैं?
मैं अपने संगीत के अब तक के सफर से इसलिए संतुष्ट हूं क्योंकि मैं फिलहाल वही कर रहा हूं जो मैं हमेशा से करना चाहता था.
आपकी मोहित से पहली मुलाकात कैसे हुई थी?
जब मैं ईएमआई रिकॉर्ड्स से जुड़ा तो उसके पहले मैं मोहित के पहले ऑफ़िस जो विशेष फिल्म का दफ्तर है वहां पर अक्सर जाता था. मैं और मेरा दोस्त गिटार लेकर उनके दफ्तर निकल जाते थे कि उन्हें मिलकर उनको कुछ गाने सुनाएंगे. हम लोग वहां पर कई दफा गए लेकिन एक बार भी उनसे मिलना नहीं हो पाया.
फिर हम लोग ईएमआई रिकार्ड के दफ्तर गए और वह पर जाकर उनको गाना सुनाया. उसके बाद हमको कहा गया कि क्या हम अगले दिन 12 बजे वापस आ सकते हैं. मैंने हां कह दिया और जब अगले दिन वह मैं पहुंचा तो पता चला कि मोहित सूरी वहीं पर हैं. वहां पर मैंने उनको एक के बाद एक पांच गाने सुनाये. जो गाने मैंने उनको सुनाये थे उसमे से एक उन्होंने अपनी फिल्म हाफ गर्लफ्रेंड में इस्तेमाल किया था.
आपको गानों में मेलॉडी है जो आजकल कम सुनाई देती है. आपको लगता नहीं कि ये भीड़ में अकेले वाली बात हो जाती है.
मेरे ख्याल से यह मेलॉडी पूरी तरह से सस्टेन कर सकती है. यहां पर हर तरीके के आर्ट के लिए आपको श्रोता मिल जाएंगे. सभी की अपनी-अपनी अलग ऑडियंस है. मेलॉडी पहले भी लोगों का ध्यान आकर्षित करती थी, आज भी करती है और आगे भी करती रहेगी.
अभी इलाहाबाद में आपको किस तरह का रिसेप्शन लोगों से मिलता है?
वहां पर अभी लोगों के मिलने और बात करने का तरीका थोड़ा पहले से बदल गया है. अभी काफी प्यार से लोग मिलते हैं.
मोहित सूरी से बातचीत के मुख्य अंश
इंडिपैंडेंट संगीत को अचानक बढ़ावा देने की बात कहा से आ गई?
इंडिपैंडेंट संगीत को बढ़ावा देने के पीछे कोई अचानक वाली वजह नहीं थी. इससे जुड़े टैलेंट को हमने हमेशा से बढ़ावा दिया है. मेरा यही मानना है कि इंडिपैंडेंट म्यूजिक को बॉलीवुड की जरुरत नहीं है. लेकिन यह बात भी सच है कि इंडिपैंडेंट संगीत से बॉलीवुड को किसी तरह का झटका नहीं लगा है. शान, के के, आतिफ असलम इन सभी एक स्रोत इंडिपैंडेंट संगीत है. बादशाह और यो यो हनी सिंह भी यहीं से आते हैं. इससे बॉलीवुड को भी फायदा होता है.
आप अपना साउंड ट्रैक कैसे तय करते है?
सभी को यही लगता है कि मेरे अंदर कुछ विशेषता है जिसकी वजह से हमेशा मेरी फिल्मों का संगीत पसंद किया जाता है लेकिन सच यही है कि ऐसी कोई बात नहीं है. मैं इसका पूरा श्रेय अपने गीतकार और संगीतकार को दूंगा. मैं उनको गाने की परिस्थिति समझा देता हूं और उसके बाद मैं उनके साथ काफी वक्त गुजारता हूं.
टैलेंट के बदले मैं अपने को मेहनती मानूंगा. अच्छे संगीत के लिए काफी मेहनत की जरुरत पड़ती है. लेकिन हमेशा से मैंने इस बात का ध्यान रखा है कि मैं नए टैलेंट के साथ हमेशा काम करूं. नए लोग जमीन से जुड़े हुए रहते हैं और उनको पता रहता है कि लोग क्या सुन रहे हैं और वो क्या सुनना चाहते हैं.
आप बॉलीवुड और इंडिपैंडेंट संगीत के बीच किसी भी तरह का सामंजस्य देखते हैं?
मैं बॉलीवुड संगीत और इंडिपैंडेंट संगीत के बीच एक तरह का सहजीवी रिश्ता देखता हूं. संगीत अपने आप में बॉलीवुड से बहुत बड़ा है. फिल्मों के बिना भी संगीत बन सकता है. लेकिन हिंदुस्तान के फिल्मों का इतिहास ऐसा है कि अच्छे संगीत के बिना जीवित रहना थोड़ा मुश्किल हो जाता है. कई बार बॉलीवुड के जानेमाने संगीतकार इंडेपेंडेंट संगीत बनाते हैं. अंकित तिवारी ने यह काम अच्छी तरह से किया है. कभी कभी यही चीज़ हम अरिजीत सिंह में भी देखते हैं. कई बार अकेले ही लोग इंडेपेंडेंट संगीत बनाते हैं जो बाद में बॉलीवुड उसे अपना लेता है.
आपका म्यूजिक सेंस कहां से आता है?
मेरे जीन्स इसके लिए जिम्मेदार हैं. मेरी मां बांद्रा पुलिस स्टेशन से अक्सर मेरी नानी से मिलने जाती थीं जहां इमरान हाश्मी रहते हैं. और जाते वक़्त वो उसी रिक्शा में बैठती थीं जिसमे संगीत चल रहा होता था. कभी-कभी जब कोई गाना उनको पसंद आ जाता था तब वो घूम कर जाती थीं. मुकेश भट्ट ने भी कुछ ऐसा ही किया था जब मैंने उनको तुम ही हो.
गाना सुनने के लिए दिया था. कार्टर रोड पर वो अपनी गाड़ी घुमा रहे थे ताकि वो पूरा गाना सुन सकें. इन लोगों को मैं अपने म्यूजिक सेंस का श्रेय दूंगा. जब भी कोई गाना भट्ट कैंप के लिए बनता है तब उस वक़्त के माहौल में थोड़ा पागलपन होता है. ट्यून की मुकेश भट्ट को अच्छी समझ है और महेश भट्ट को गीत के बोल की.
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