'दिल चाहता है' से लेकर 'भाग मिल्खा भाग' जैसी फिल्में करने वाले फ़रहान अख्तर फिर से एक सोशल कॉज से जुड़ रहे हैं. 22 अप्रैल 'वर्ल्ड अर्थ डे' है, ऐसे में फ़रहान अख्तर ने नेशनल जॉगरफिक चैनल के साथ जुड़ कर बतौर ब्रांड एंबेसडर देश भर में पानी को बचाने की अपील करने वाले हैं.
फ़रहान अख्तर से उनकी इस मुहिम पर फ़र्स्टपोस्ट संवाददाता रूना आशीष ने उनसे बात की.
फ़र्स्टपोस्ट: पानी को लेकर आपकी क्या सोच है?
फ़रहान: मुझे पानी की कीमत उस दिन से पता चली जब मेरी 10 साल की बेटी ने मुझसे कहा, आपने ग्लास में पानी तो पूरा भरा लेकिन उसे बिना पूरा पिए ही ग्लास में छोड़ दिया इसलिए पहले उसे खत्म करो. मेरी बेटी की वो एक छोटी सी कही बात थी. उस दिन मुझे लगा कि बच्चों को पढ़ाते-पढ़ाते वो भी हमें कभी-कभी पाठ सिखा जाते हैं. ये हमारी एक आम आदत है कि, हम ग्लास में पानी पूरा भरते हैं लेकिन पीते आधा ही हैं. तो फिर क्यों ना आधा ही भरें.
फरहान आगे बताते हैं, पानी को बचाना किसी दिन या आज की वजह से नहीं है. बहुत पहले से ही हमें पानी के बारे में सोचना शुरु कर देना चाहिए था. वैसे भी अगर आज से हमने पानी को बचाने या उसे गंदा होने से रोकना शुरु नहीं किया तो अगले सात या आठ साल में हम इसका बहुत बुरा परिणाम भुगतने वाले हैं.
बात सिर्फ साफ पीने के पानी की ही नहीं है, जो कि देश की एक बहुत बड़ी जनसंख्या को पीने लायक पानी मिलना भी नसीब नहीं होगा, बल्कि पानी ना मिलने से बीमारियां और कुपोषण जैसी समस्याएं भी उभर कर आएंगी.
फ़र्स्टपोस्ट: हाल ही में कोर्ट ने नदियों को इंसानों का दर्जा दिया है. इसपर आपका क्या कहना है?
फ़रहान: मेरे ख्याल से हमारी नदियों को हमेशा से ही सम्मान या इज्जत का दर्जा दिया गया है. लेकिन फिर भी नदियों को काफी कुछ सहना और देखना पड़ता है. उन्हें बहुत अब्यूज किया गया है.
बहुत से ऐसे पहल सरकार की तरफ से हुई है जिससे नदियां साफ बनी रहें. आशा है कि वो जल्द ही शुरु हो सकें और जितनी मियाद में इन नदियों को साफ करने की बात कही गई है उस मियाद तक ये टास्क पूरा भी हो सके. हमें इसके लिए आशावादी नजरिया अपनाना होगा और लोगों को भी ऐसा करना होगा.
फ़र्स्टपोस्ट: महाराष्ट्र में तो सूखा बड़ी समस्या है. मराठवाड़ा में हर साल इस वजह से कई किसान आत्महत्या कर लेते हैं. क्या उस विषय में आप काम करने की सोचेंगे?
फ़रहान: मुझे ऐसा लगता है कि पानी जरूरी है. तो अगर हम शहरों में इसे कम से कम उपयोग में लाएं तो जहां से इस पानी को लाया जा रहा है वहां पर रह रहे लोगों को पानी ज्यादा मिल सकेगा. इन सब कामों में समय लगेगा लेकिन इसके लिए एक सिस्टम की जरूरत पड़ेगी.
एक सरसरी निगाह से आकड़ों पर नजर डालें तो 400 से 450 आत्महत्याएं हुई हैं, वो भी 4 से 5 महीने के अंदर. ये सिर्फ किसान की क्यों कहें, उनके परिवार पर भी तो असर होता है है ना. तो अब सोचना तो पड़ेगा ही कि आत्महत्याएं हो रही हैं और वो भी पानी की वजह से हो रही हैं.
फ़र्स्टपोस्ट: पानी के बारे में लोगों में जागरुकता फैलाएं, ये बात मन में किस वजह से आई ?
फ़रहान: मैं जो भी करता हूं या कहता हूं, उसके लिए अपनी एक जिम्मेदारी भी मानता हूं. हम बहुत ही खुशकिस्मत हैं हम जहां पैदा हुए. पले-बढ़े या जिस तरह की लाइफस्टाल जी रहे हैं. वो बहुत अच्छी है लेकिन कइयों को ऐसा जीवन नहीं मिला है. हमें आम लोगों ने बहुत प्यार दिया है लेकिन मैंने उन लोगों को बदले में क्या दिया, सिवाय एंटरटेन करने के. तो बस यहीं लगा कि मैं उनकी समस्याओं की बात करूं. पानी बचाओ या पानी का संरक्षण करें जैसी बातें ऐसी हैं जो सबके जीवन से जुड़ी हुई हैं. मझे ऐसा लगा कि मैं भी इस बात का हिस्सा बन जाऊं.
फ़र्स्टपोस्ट: आपने 'मर्द' यानी 'मैन अगेंस्ट रेप एंड डिस्क्रिमिनेशन' के लिए भी कविता लिखी है, क्या पानी बचाने के लिए भी लिखेंगे ?
फ़रहान: ये बिल्कुल मुमकिन है लेकिन अभी तो मैंने ये मुहिम शुरु ही की है. अभी तो एक-एक कर के कई पड़ाव पूरे करने हैं लेकिन हां, मैं लिखूंगा इसके लिए भी.
फ़र्स्टपोस्ट: आप 'मर्द' जैसी पहल से जुड़े हैं, उसमें क्या कुछ हो रहा है?
फ़रहान: मैं तो यह चाहूंगा कि ऐसी कोई घटना ही ना हो कि मुझे किसी भी तरह इस बारे में बात करने का मौका पड़े. फिलहाल तो इस वक्त इतना बता सकता हूं कि, हम 'मर्द' के लिए कुछ शॉर्ट फिल्म बना रहे हैं जो जुलाई में रिलीज करेंगे. मैं उसी समय पर आपको और भी बातें बताऊंगा. अभी के लिए इतना बता सकता हूं कि फिल्म तैयार है.
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