फिल्म जगत में दो नाम ऐसे हैं, जिन्होंने पिछले सदी के आखिरी दशक मे फिल्में बनानी शुरू की. अमूमन इतने सालों मे कई निर्देशकों की धार खत्म हो जाती है लेकिन अगर हम बात डेविड धवन और अनीस बाज्मी की करें, तो जो कमाल उन्होंने अपने शुरुआत की फिल्मों मे किया था, वही कमाल आज भी जारी है.
वेलकम, नो एंट्री, सिंह इज़ किंग कुछ ऐसी फिल्में थी, जिसमें एक सधी हुई कहानी के अलावा हंसी मज़ाक का पूरा इंतज़ाम था और ये फिल्में आगे चल कर मिसाल बनी. मुमकिन है कि मुबारकां भी उसी कड़ी का एक हिस्सा होगी.
अनीस बाज्मी की मुबारकां निश्चित तौर पर पूरी तरह से एक कॉमेडी मसाला फिल्म है, जिसको देखने के बाद आपके चेहरे पर वाकई में हंसी दिखाई देगी. अनीस के इस एक्सप्रेस गाड़ी के इंजन और कोई नहीं बल्कि अनिल कपूर ही हैं. अनीस ने अनिल कपूर के माध्यम से दिखा दिया है कि कॉमेडी की टाइमिंग किस तरह से होती है.
हकीकत ये है कि मुबारकां अनीस की बाकी पिछली फिल्मों की ही तरह है, जहां पर तेज संगीत, हीरो की एंट्री जैसी चीजों पर थोड़ा ध्यान दिया जाता है. ये भी नहीं कि इस फिल्म में कॉमेडी का स्तर बहुत ऊंचा है लेकिन अगर आप प्री कंसीव्ड नोशन को लेकर ना जाएं तो ये फिल्म आपका मनोरंजन करेगी. आपको कॉमेडी वाले सींस वाहियात लग सकते हैं लेकिन यहां पर जरूरी ये होता है कि कॉमेडी आखिर कौन कर रहा है. और यहीं पर अनिल कपूर की खूबी पूरी तरह से निकल कर सामने आती है.
उनकी गाड़ी के पीछे जब ये लिखा होता है कि - यू आर चेजिंग ए पंजाबी - तो हंसी बरबस मुंह पर आ जाती है. असल जिंदगी में चाचा भतीजा फिल्म में भी चाचा भतीजा बने हैं और चाचा ने बातों−बातों में बता दिया है कि दम किस में है.
मुबारकां की कहानी दो जुड़वां की है, जो बचपन में ही अपने परिवार के कार दुर्घटना की वजह से बिछड़ जाते हैं. कार दुर्घटना में उनके माता पिता की मौत हो जाती है. दोनों जुड़वां के चाचा करतार सिंह, जिसका रोल फिल्म में अनिल कपूर ने निभाया है, पहले बच्चे चरन को अपनी बहन के पास लंदन भेज देते हैं तो दूसरे को चंडीगढ़ जहां पर उनका भाई रहता है.
चरन और करन दोनों के ही माता पिता उनकी गर्लफ़्रेंड होने के बावजूद उनके लिये वधू की तलाश में हैं. जब मामला सर के ऊपर से गुजरने लगता है तब ये दोनों की मदद के लिये अपने चाचा करतार सिंह से गुहार लगाते हैं लेकिन करतार पूरे मामले को और भी पेंचीदा कर देते हैं. और उसके बाद कॉमेडी और हंसी का सिलसिला शुरू होता है.
कहने की जरूरत नहीं की मसाला फिल्मों का जो उदाहरण होता है उसके ढांचे में फिल्म पूरी तरह से फिट बैठती है. इसकी कहानी हंसाने वाली है और कुछ धमाकेदार डायलॉग्स की वजह से मज़ा और भी बढ़ जाता है.
जिस तरह से निर्देशक अनीस बज्मी ने फिल्म के पूरे कंफ्यूजन वाले सीक्वेंसे को तैयार किया है वो क़ाबिले तारीफ है. कहने की जरूरत नहीं की हंसी का तड़का कॉमेडी ऑफ एरर के माध्यम से ही निकलता है. क्लाईमेक्स ऐसी फिल्मों में क्या होगा ये बताने की कोई जरूरत नहीं है.
यहां पर कुछ बातों को लेकर ऐतराज भी जताया जा सकता है. सरदार जी वाले जोक्स की अब बहुतायत हो चुकी है अब इस पर थोड़ी लगाम कसनी चाहिये. इसके अलावा फिल्म मे कुछ चीजें हैं जिससे रिग्रेसिव संदेश निकलता है. आज के दौर में आप इन चीजों को अपना आधार बनाकर जोक्स नहीं बना सकते हैं.
अगर अभिनय के डिपार्टमेंट के बारे में बात करें तो इस पूरी फिल्म के जान निस्संदेह रूप से अनिल कपूर ही हैं. साठ पार करने का बावजूद भी उनके अभिनय में दिन पर दिन और भी निखार आता जा रहा है. अनिल कपूर ने दिखा दिया है कि रोल किसी भी तरह का हो - सीरियस या मजाकिया - वो किसी भी रूप में अपने को ढाल सकते हैं और अच्छे अभिनेता की यही पहचान होती है.
अर्जुन कपूर को भी इस बार राहत मिलेगी की इस बार उनके अभिनय के लिये लोग उनकी सराहना करेंगे. करन और चरन की भूमिका को निभाने में उनकी मेहनत दिखाई देती है. फिल्म में इलियाना डी क्रूज भी हैं और करन की गर्लफ़्रेंड की भूमिका में वो सहज लगती है ओर उनकी अदाकारी आपको पसंद आयेगी.
अगर आपको कुछ पसंद नहीं आयेगा तो वो होगा आथिया शेट्टी का अभिनय. हीरो के बाद उनकी ये दूसरी फिल्म है और कहना पड़ेगा की अभी भी एक्टिंग की बेसिक उनको ठीक से सीखनी पड़ेगी. सपोर्टिंग भूमिका में फिल्म ने रत्ना पाठक शाह, पवन मल्होत्रा और राहुल देव है और कहना पड़ेगा कि इनकी भी वजह से फिल्म का ओहदा उठ जाता है.
सभी का फिल्म में उम्दा अभिनय है. यहां पर मैं खास पवन मल्होत्रा के बारे में बोलूंगा की एक गुस्सैल होटल वाले की भूमिका में उनका काम शानदार है और अनिल कपूर के बाद वही दूसरे हैं, जिसके किरदार को आप फिल्म देखने के बाद याद रखेंगे.
अनीस बज्मी के निर्देशन की धार पूरी तरह से फिल्म में दिखाई देती है. पूरी फिल्म को जिस तरह से उन्होंने पिरोया है, उसे देखकर वाहवाही मुंह से निकलती है. बज्मी साहब ने दिखा दिया है कि जब बात कॉमेडी की हो तो आज भी उनके कलम में इतनी ताकत है कि दूसरों को वो पल भर मे हंसा दें.
फिल्म में ऐसे कई सीक्वेंसे हैं जिसको देखने के बाद आपके पेट मे बल ज़रूर पड़ेंगे. पंजाबी माहौल है तो संगीत का तड़का भला कैसे ना हो. संगीत इस फिल्म का एक कमजोर पहलू है, फिल्म में एक भी ऐसा गाना नहीं है, जो आपको थिरकने पर मजबूर करेगा. लेकिन जब फिल्म में ढेर सारे प्लस प्वाइंट हैं तो आप इस पहलू को दरकिनार कर सकते हैं.
लंदन और चंडीगढ़ के सीन्स को भी बड़े ही दिलकश अंदाज़ से फिल्माया गया है. मुबारकां सिनेमा की ग्रामर बदलने वाली कोई फिल्म नहीं है. इसका सिर्फ एक ही मकसद है और वो है हंसाने का जिसमें ये कामयाब होती है. इस हफ्ते अगर आपको हंसने का दिल करता है तो बेशक आप सिनेमाघर जाकर मुबारकां का लुत्फ उठा सकते हैं.
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