बॉलीवुड में कॉमेडी फिल्म बनाने वाले निर्देशकों की एक अलग पहचान है. चाहे वो राजकुमार हिरानी हो या डेविड धवन या फिर इंद्र कुमार, इन सभी की फिल्मों पर एक अलग किस्म की छाप रहती है जो उनकी सभी पिछली कॉमेडी फिल्मों को जोड़ती है. 'टोटल धमाल' भले ही धमाल सीरीज में तीसरी फिल्म हो लेकिन इसका पहली या दूसरी धमाल से कोई लेना देना नहीं है. ये अपने आप में एक स्टैंड अलोन कहानी है और अगर कोई चीज इन तीनों को जोड़ती है तो वो है पैसे की खोज. इंद्र कुमार के ट्रैक रिकॉर्ड को देखकर आप टोटल धमाल से किसी तरह की बौद्धिक कॉमेडी की उम्मीद नहीं कर सकते है. इनकी कॉमेडी भले ही पूरी तरह से स्लैपस्टिक ना हो लेकिन ये उसके इर्द गिर्द ही घूमती रहती है. अगर आप ज्यादा उम्मीद इस फिल्म से नहीं करेंगे तो आपके पैसे की वसूली पूरी तरह से होगी.
टोटल धमाल की कहानी एक चिड़िया घर के अंदर 50 करोड़ रुपए की खोज के बारे में है
फिल्म की शुरुआत होती है राधे (अजय देवगन) और उसके असिस्टेंट जॉन (संजय मिश्रा) से, जो पुलिस कमिश्नर (बोमन ईरानी) के 50 करोड़ रुपए के ऊपर अपना हाथ साफ कर देते है. राधे और जॉन को उनका ड्राइवर पिंटो (मनोज पाहवा) ऐन वक्त पर धोखा देकर 50 करोड़ के साथ रफूचक्कर हो जाता है. एक हेलीकॉप्टर क्रैश में जब उसकी मौत हो जाती है तो मरने के पहले वो अविनाश (अनिल कपूर), बिंदु (माधुरी दीक्षित), अदि (अरशद वारसी), मानव (जावेद जाफरी), लल्लन (रितेश देशमुख) और को इस बात की जानकारी देता है कि उसने वो पैसे एक चिड़िया घर के अंदर छुपाकर रखे हैं. बस इसके बाद सभी उसकी खोज में लग जाते हैं और कई परेशानियों को पार करके वो जनकपुर के उस चिड़िया घर में कैसे कैसे पहुंच जाते हैं. उसके बाद 50 करोड़ ढूंढ़ने की कवायद शुरू हो जाती है जिसके बीच शामिल है चिड़िया घर के जानवरों की जान बचाना और खुद की जान बचाना.
दिमाग पर अगर आप जोर नही डालेंगे तो बेहतर होगा
एक गोरिल्ला रितेश देशमुख का हाथ तोड़ देता है और फिर बाद में उसको सीधा कर देता है, रेत के दलदल में जब अरशद वारसी धंसते चले जाते हैं तब जावेद जाफरी उनको रस्सी के बदले एक सांप की मदद से उनकी जान बचाते हैं और जब अनिल कपूर एक शेर को चैलेंज करके ये बोलते है कि अगर उसने एक गुजराती के साथ कुछ भी आड़ी-टेढ़ी हरकत की तब वो 1411 से 11 भी नहीं रहेंगे. एक सीरियस सिनेमा प्रेमी के लिए शायद ये उसके दिल और दिमाग पर बड़ा आघात होगा लेकिन अगर आप प्री कन्सवीड नोशन्स लेकर जाएंगे तो सिनेमा के इस दूसरे रंग का आप लुत्फ नहीं उठा पाएंगे. दिमाग कुछ समय के लिए किनारे पर रख दीजिए और फिल्म के फ्लो के साथ बहते जाइए शायद एक मुस्कान आपके चेहरे पर हमेशा बनी रहेगी. ऐसी फिल्मों की चीर फाड़ आप एक हद के बाद नही कर सकते हैं क्योंकि इसका उद्देश्य बिलकुल साफ है- हंसाना है और मनोरंजन करना है और अपने इस उद्देश्य में टोटल धमाल को सफलता मिलती है.
रितेश देशमुख, जॉनी लीवर और अरशद वारसी की सटीक कॉमिक टाइमिंग, अनिल कपूर और संजय मिश्रा निराश करते हैं
यहां पर इस बात को कहना पड़ेगा कि 'टोटल धमाल' वही पैटर्न फॉलो करती है जो पहली धमाल ने किया है. इस फिल्म में कुछ एक ऐसे नाम जुड़े हैं जिनको उनके कॉमेडी टाइमिंग के लिए जाना जाता है. इन सभी के बीच में अगर कोई अपनी कॉमेडी का असर छोड़ पाया है तो वो है रितेश देशमुख, अरशद वारसी, जावेद जाफरी और जॉनी लीवर जो फिल्म में काफी काम समय के लिए है. अनिल कपूर से उम्मीदें काफी थी लेकिन जब तक उनकी टाइमिंग उभर कर सामने आती है तब तक फिल्म का क्लाइमेक्स भी आ जाता है. संजय मिश्रा से भी काफी उम्मीदें थी लेकिन इस फिल्म में उनकी कॉमिक टाइमिंग उभरकर नहीं आ पाई है. मनोरंजन ये फिल्म भी करती है लेकिन कहीं ना कहीं धमाल की बराबरी ये फिल्म नहीं कर पाई है. अरशद वारसी और जावेद जाफरी ने जहां पर चीजों को पिछली फिल्म में छोड़ा था शुरुआत वही से की है. अजय देवगन के किरदार में संजीदगी और कॉमेडी का मिश्रण देखने को मिलता है जो फिल्म में पूरी तरह से फिर बैठता है. माधुरी के काम में ईमानदारी दिखाई देती है.
टोटल धमाल को देखने का सबसे बेहतर तरीका यही होगा कि इस फिल्म को आप अपने बच्चों के साथ देंखे
अगर कोई समीक्षक चाहे तो टोटल धमाल की धज्जियां उड़ा सकता है लेकिन वो करना बेहतर नहीं होगा क्योंकि सभी को पता है की फिल्म के अभिनेता क्या कर रहे हैं और निर्देशक किस तरह की फिल्म बना रहा है. ये सच है कि कुछ एक सीन्स पर आपको लगेगा कि ये जबरन फिल्म में हंसी के लिए ठूंसा गया है लेकिन ये भी है कि खाली दिमाग से अगर आप इस फिल्म को देखंगे तो आपके चेहरे पर एक हंसी बनी रहेगी. इस फिल्म को देखने का सबसे अच्छा तरीका यही होगा कि आप अपने बच्चों के साथ जाएं. शायद अपने बच्चों की हंसी देखकर ही आपका पैसा इस फिल्म से वसूल हो जाएगा.
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