फिल्म 'ऐ दिल है मुश्किल' की रिलीज से पहले महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ने राष्ट्रवाद के नाम पर खूब हो-हल्ला किया.
भारत में पाकिस्तानी कलाकारों के काम करने पर पाबंदी लग गई. हंगामे के बीच फिल्म रिलीज हुई और साल की सबसे बड़ी हिट साबित हुई.
फिल्म की कामयाबी पर यूं तो फिल्म के निर्माता को खूब जश्न मनाना चाहिए था. लेकिन उन्होंने खामोशी से अपने पुराने टीवी शो 'कॉफी विद करण' का रूख करना बेहतर समझा. फिल्म से जुड़े कई सवालों पर हमने करण जौहर से खास बातचीत की.
क्या आपको ऐसा लगता है कि अयान का किरदार फिल्म 'ऐ दिल है मुश्किल' के दौरान ही मैच्योर हुआ है?
अलीज़ा (अनुष्का शर्मा) और सबा (ऐश्वर्या राय बच्चन) के साथ अयान का रिश्ता बेशक उसके बर्ताव में एक अलग तरह का ठहराव और सुकून लाता है. लेकिन वो उसकी उम्र की वजह से नहीं बल्कि उसकी जिंदगी में आए प्यार की वजह से होता है. उसमें जो भी बदलाव आता है, वह खराब नहीं होता.
ना ही यह कहा जा सकता है कि वह पहले गैर जिम्मेदार होता है बाद में जिम्मेदार हो जाता है. उसकी जिंदगी में जो लड़की है वह उससे बहुत प्यार करता है. हालांकि वह लड़की उसे उतना प्यार नहीं करती. लेकिन फिर भी वह नहीं चाहता कि वह लड़की उसकी जिंदगी से जाए. उस लड़की से प्यार करने के बाद ही उसे पता चलता है कि वह भी जज्बाती है.
फिल्म में अयान एक मैच्योर किरदार होने के बावजूद अलीज़ा का पीछा नहीं छोड़ता. फिल्म में कहीं नहीं दिखाया गया कि अलीज़ा, अयान को खुद से दूर कर रही है?
अलीज़ा और अयान दो अलग-अलग लोग हैं. दोनों एक दूसरे के बहुत करीब हैं. लेकिन किसी तरह का कोई जिस्मानी रिश्ता उनके बीच नहीं है.
वह दोनों ऐसे दोस्त हैं जो लड़ते हैं, झगड़ते हैं, एक दूसरे के साथ मौज-मस्ती करते हैं. अलीज़ा में वह ताकत है कि वह किसी इंसान को अपने करीब ला सकती है और उसे दूर भी कर सकती है.
बल्कि जिस तरह वह दोनों एक दूसरे से अलग होते हैं, मुझे वह बात बहुत अच्छी लगी थी. किसी महिला को अपमानित करने की मेरी मंशा बिल्कुल नहीं थी.
आप इसे ‘रॉ एनर्जी’ कहें या कुछ और नाम दें. लेकिन सच यही है कि अयान उस लड़की पर हमला ही करता है हालांकि वह उसके साथ मारपीट नहीं करती है. तो कह सकते हैं कि दोनों में कोई समानता नहीं है?
नहीं ऐसा नहीं है. अब आप ये बात कह रही हैं तो मैं भी इस बात पर गौर कर रहा हूं.
हम इस बात से असहमत हो सकते हैं कि एक औरत किसी मर्द के साथ हाथापाई करे. लेकिन अगर कोई मर्द किसी औरत के साथ हाथापाई करे तो उसे भी सही नहीं ठहराया जा सकता और ना ही उसमें कोई बराबरी है, क्योंकि दोनों की जिस्मानी ताकत में फर्क है?
हां, लेकिन मैंने कभी भी इसे इस नजरिये से नहीं देखा. मैंने ये खयाल नहीं किया था कि ये दोनों फिजिकल होंगे. मेरे लिए अयान एक ऐसा लड़का है जो जिद्दी छोटे बच्चे की तरह है, जो गुस्सा करता है, नखरे दिखाता है.
उस लड़की की गोद में सिर रख कर रो लेता है. और जैसे एक जिद्दी बच्चा गुस्से में किसी को धकेल कर निकल जाता है, वो भी ऐसे ही करता है.
बहुत से लोगों का मानना है कि एक रिश्ते में अगर महिला के साथ थोड़ी बदसलूकी होती है तो वो नेचुरल है. लेकिन जानकार कहते हैं कि अगर ऐसा होता है तो ये रिश्ते को बिगाड़ भी सकता है.
हां, मैं आपकी बात से पूरी तरह से सहमत हूं. लेकिन मेरा यकीन मानिए मेरे जेहन में ऐसी सोच कभी नहीं आई. बेशक ये हमारी जिम्मेदारी है कि हम स्क्रीन पर जो भी दिखाएं वो पूरी जिम्मेदारी से दिखाएं.
मैं खुद इस मिजाज का नहीं हूं. लेकिन अगर ऐसा मैसेज गया है तो मुझे ज्यादा सावधानी बरतने की जरूरत है. एक सीन था जिसमें लाइन थी- 'मैंने अपनी वर्जिनिटी नहीं अपनी पर्सनैलिटी बचा कर रखी थी क्योंकि मैं जानता था कि एक ना एक दिन मुझे कोई मिलेगा, जो मेरे पागलपन को समझेगा.'
इस लाइन के जवाब में लड़की का जवाब था- 'तुम में पागलपन नहीं, तुम में बचपना है, जिसका इस्तेमाल तुमने बचपन में नहीं किया या शायद किसी ने करने नहीं दिया.' हमें ये लाइन हटानी पड़ी. इस तरह की चीजें कभी भी जस्टिफाई नहीं की जा सकतीं जो किसी का अपमान करती हों.
ये अपमानित करने वाली बात नहीं है. इंडिया में ये शब्द बहुत से मजहबी और सियासी हिंसा से जुड़ा है?
नहीं, नहीं मेरा मतलब अपमान से नहीं है बल्कि मेरा मतलब नजीर पेश करने से है.
अच्छा, फिल्म में एक दिलचस्प बात देखने को मिलती है. सबा एक उम्र दराज है लेकिन उसकी उम्र से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता. तो क्या ये माना जाए कि बॉलीवुड में 40 साल की अदाकारा का 30 साल के लड़के के साथ रिश्ता दिखाने में कोई परेशानी नहीं है.
मेरे ख्याल में एक ही बात को बार-बार दोहराने का कोई मतलब नहीं है. इस फिल्म में उम्र कोई मुद्दा ही नहीं है. अगर किसी को किसी से प्यार हो जाता है को फिर उसमें उम्र कहां आ जाती है.
हो सकता है आज 40 की उम्र में मुझे किसी ऐसे से प्यार हो जाए जिसकी उम्र 25 साल हो तो इसका क्या मतलब हुआ. बहुत बार प्यार किसी बैरोमीटर के साथ नहीं होता. ये बस हो जाता है.
उम्र को लेकर एक जगह जिक्र किया गया है. जब शाहरूख के साथ अयान की बात होती है. उससे आप क्या संदेश देना चाहते हैं?
मुझे लगा कि शाहरूख का किरदार ऐसा है कि जब उसे पता चलेगा कि उसकी बीवी का कोई कम उम्र ब्वॉयफ्रेंड है तो उसे बुरा लगेगा और ये बहुत नेचुरल रिएक्शन होगा.
मैं ये दिखाना चाहता था कि जब कोई अपनी बीवी को छोड़ देता है और उसकी बीवी किसी कम उम्र वाले के साथ अपनी लाइफ एन्जॉय करती है तो एक्स हसबैंड के दिल में उसके लिए एक कसक होती है.
अक्सर देखा गया है कि बॉलीवुड में जितने अदाकार हैं वह अपने से छोटी उम्र की हीरोइन के या तो ब्वॉयफ्रेंड बनते है या हसबैंड बनते हैं. वो हमेशा अपनी असल उम्र से कम उम्र के किरदार निभाते हैं, ऐसा क्यों?
रोल के मुताबिक मैं तो हर उम्र की औरत के साथ काम करना चाहता हूं. लेकिन होता यह है कि बॉलीवुड में जितने मेगास्टार हैं, वो सभी ज्यादा उम्र वाले हैं और हीरोइन कम उम्र वाली हैं.
कम उम्र की हीरोइन और ज्यादा उम्र के हीरो का चलन सिर्फ बॉलीवुड में ही नहीं है, बल्कि साउथ की फिल्मों में भी यही चलन है. मार्केट की डिमांड को देखते हुए ही यह फैसले लिए जाते हैं.
हालांकि अब ये चलन बॉलीवुड में बदल भी रहा है. अब रोल के मुताबिक हीरोइन चुना जाने लगा है. जैसे आमिर खान की फिल्म 'दंगल' में साक्षी तंवर उनकी बीवी का किरदार निभा रही हैं, जो उम्र में आमिर से बहुत छोटी नहीं हैं और ना ही लीडिंग हीरोइन हैं. तो कहा जा सकता है कि धीरे-धीरे हालात बदल रहे हैं.
क्या आप इस बात को मानेंगे कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री सेक्सिस्ट है?
यह सही बात है कि बॉक्स ऑफिस पर मर्दों का ही राज है. अगर सलमान खान की कोई फिल्म आती है तो वह 30 करोड़ से ही ओपनिंग होती है. जबकि, अगर किसी बड़ी हीरोईन की फिल्म आती है तो वह कुछ नंबर से आगे बढ़ नहीं पाती. ये रिस्पांस हमें ऑडियंस से मिलता है तो यह इल्जाम आप दर्शकों को दीजिए.
क्या आपको नहीं लगता कि इंडियन फिल्म इंडस्ट्री में मर्दों को ज्यादा अहम रोल मिलते हैं? उन्हें काम के लिए 20 से 30 साल तक मिल जाते हैं, जबकि महिला अदाकाराओं को ये मौका नहीं मिलता. ऐसे में ये उनके साथ नाइंसाफी नहीं है क्या?
1960 तक महिलाओं को दमदार रोल मिलते थे. बिमल रॉय, गुरु दत्त या राजकूपर की फिल्मों में नर्गिस, मीना कुमारी, साधना, नूतन वगैरह फिल्म की हीरोइन हुआ करती थीं.
हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में मर्दों का दबदबा, अमिताभ बच्चन के आने से हुआ. 70 और 80 के दशक में कुछ और अदाकारों को भी मौका मिला. फिर ये एक चलन ही बन गया.
बहुत कम हीरोइनें ही ऐसी रहीं जो इस दौर में अपने दम पर खुद के लिए जगह बना पाईं. जैसे रेखा ने फिल्म 'खून भरी मांग' में किया. ये दौर हीरोइनों के लिए वाकई मुश्किल था.
उसी दौर में फिल्म अदाकारों ने इंडस्ट्री को फायदा पहुंचाया और खुद उन अदाकारों को भी इससे फायदा हुआ. इसीलिए वो आगे चलकर बड़े स्टार बन गए. सलमान खान, शाहरूख खान, उसी दौर की देन हैं. अक्षय कुमार आज भी इंडस्ट्री के लिए पैसे के लिहाज से फायदे का सौदा हैं.
अगर दर्शकों के विकल्प ही नहीं दिए जाएंगे तो फिर दर्शकों पर इल्जाम क्यों लगाया जाए?
इस चलन को भी ऑडियंस ने ही बदला है. अगर एक ही तरह का खाना परोसा जाता रहेगा तो उनको उसकी आदत लग जाएगी.
'ए दिल है मुश्किल' में ऐश्वर्या का किरदार पाकिस्तानी है या इंडियन?
इंडियन
'ए दिल है मुश्किल' में पाकिस्तानी कलाकारों के काम करने पर हंगामा हुआ. उसके बाद आपको क्या-क्या बदलाव करने पड़े. अली और अलीज़ा दोनों क्या पाकिस्तानी हैं?
अलीज़ा लखनऊ की है और अली भी.
लेकिन एक सीन में जहां अनुष्का रणबीर को अपनी शादी में आने के लिए कहती है तो साफ कहती हैं कि वो कराची में हैं, बाद में डब के जरिए उसे लखनऊ बताया गया?
वो लखनऊ ही है, हो सकता है आपने कोई खराब प्रिंट देखा हो.
कुछ लोगों का मानना है कि एमएनएस के हंगामे के बाद आपने फवाद खान का रोल कट किया है?
नहीं, ऐसा बिल्कुल नहीं है. अगर लोग ऐसा कहते हैं तो मुझे हंसी आती है. फवाद का फिल्म में 9 मिनट का रोल है. उसे मैंने बिल्कुल नहीं काटा है. हालांकि एमएनएस यही चाहती था कि फवाद का रोल काटा जाए.
फिल्म में कुछ ऐसे उदाहरण मिलते हैं जैसे, भाषा, कुछ डायलॉग जो इस बात की ओर इशारा करते हैं कि असल में किरदार पाकिस्तानी ही थे बाद में उन्हें बदला गया?
खैर, हर कोई अपने-अपने तरीके से इसे समझ सकता है.
लेकिन आपको क्यों ऐसा लगता है कि लोग ऐसा ही सोचते हैं?
मेरे लिए वह ऑर्गेनिक किरदार हैं. वह लखनऊ से हैं. वहां के लोग बहुत अच्छी ऊर्दू बोलते हैं. लोग जो चाहें समझ सकते हैं लेकिन मेरे लिए वह किरदार इंडियन हैं.
लिजा हेडेन जिसका किरदार लिजा डिसूजा का है, उसे लगता है कि अलीज़ा और उसके ब्वॉयफ्रेंड को अस्सलाम अलेकुम कह कर मुखातिब करना चाहिए. उसके जरिए आप यह बताना चाहते हैं कि हम दूसरे समुदायों के साथ बहुत घुलते मिलते नहीं हैं, और हम बहुत ही स्टीरियो टाइप के लोग हैं?
बिल्कुल. जानकारी नहीं होने से ही हम खेमे में कैद हो जाते हैं. लेकिन मैं इतना ज्यादा नहीं सोचता. लिजा सोचती है कि वह किसी मुस्लिम कपल से मिल रही है तो मुझे उनके कल्चर से मेल खाती कोई बात कहनी चाहिए. जैसे वो कहती है ईद मुबारक. जबकि ईद का मौका ही नहीं है. वह सिर्फ एक सिरफिरी है और कुछ नहीं.
उस सीन में आपने भी बॉलीवुड के उसी घिसेपिटे चलन को दिखाया है. जिसमें अक्सर दिखाया जाता है कि एक हिंदू ऐसी ही हिंदी भाषा बोल रहा है जैसे आप और हम बोलते हैं. लेकिन एक मुस्लिम उर्दू टच वाली हिंदी बोलता है जबकि एक क्रिश्चियन की हिंदी खराब है.
अरे वह किसी खास इरादे के तहत नहीं था. अलीज़ा और अली लखनऊ के हैं, वो उर्दू समझते हैं. लेकिन लिजा कैथोलिक हैं बाहर पली-बढ़ी है. अयान एनआरआई है तो हिंदी फिल्मों से हिंदी सीखी है.
तो आप क्या कहना चाहते हैं कि कैथोलिक हिंदी फिल्में नहीं देखते?
बिल्कुल, लिजा नहीं देखती. वह केबीसी देखती है. उसकी हिंदी जबान पर पकड़ नहीं है लेकिन वह केबीसी की बहुत बड़ी फैन है.
तो आपका इरादा बिलकुल भी स्टीरियोटाइप दिखाने का नहीं था?
मेरी लाइन प्रोड्यूसर एक एंग्लो इंडियन मरीके डिसूजा है. हम उसे चिढ़ाते थे क्योंकि उसका और लिजा का सरनेम एक था. जबकि वह मुंबई के बांद्रा में पली बढ़ी है. उसने अपनी पूरी जिंदगी मुंबई में ही गुजारी है. फिर भी वह हिंदी का एक भी लफ्ज नहीं बोल पाती.
शायद आप ऐसे ही लोगों से मिले हों जो स्टीरियो टाइप इमेज में फिट बैठते हों. मगर जब आप फिल्मों में ऐसे किरदार दिखाते हैं तो फिर वही लोगों के देखने का नजरिया बन जाता है. हिंदी फिल्मों में कुछ समुदायों को ऐसे ही स्टीरियोटाइप से क्यों दिखाया जाता है?
मुझे ऐसा नहीं लगता. ये सिर्फ एक किरदार है जिससे आप मौज मस्ती करते हैं. अगर आप उसकी ज्यादा चीर-फाड़ करेंगे तो मैं आपसे यही कहूंगा कि मैंने किसी स्टीरियोटाइप को दिखाने की कोशिश नहीं की. लिजा का किरदार एकदम ओरिजिनल आइडिया के तौर पर मेरे दिमाग में आया. मैंने उसे उस नजरिये से नहीं देखा जैसे आप देख रही हैं. क्योंकि यह मेरी आदत नहीं. मैं बहुत ईमानदारी से यह बात कह रहा हूं. मुझे नहीं पता कि और क्या कहूं.
क्या इसकी वजह आपका अपना परिवेश हो सकता है? आप हिंदी फिल्मों के माहौल में पले-बढ़े हैं. जहां पर तमाम स्टीरियोटाइप देखने को मिल जायेंगे. इनमें हिंदू भी हैं, मुसलमान भी और ईसाई भी?
शायद हां. मेरी जिंदगी में बहुत सी बचकानी चीजें हैं.
क्या 'ऐ दिल है मुश्किल' पर 'तमाशा' और 'रॉकस्टार' फिल्मों का असर पड़ा?
'तमाशा' फिल्म तो मैंने तब देखी जब मैं 'ऐ दिल है मुश्किल' की लंदन में शूटिंग कर रहा था. रणबीर ने मुझे उसके बारे में कभी नहीं बताया. हां, जब हमने रणबीर के साथ यह फिल्म साइन की थी, तब यह जरूर लगा था कि इसमें 'रॉकस्टार' फिल्म की झलक दिखती है.
तब मैंने रणबीर को समझाया भी था कि यह तुम्हारे संगीत के सफर की कहानी नहीं है. 'रॉकस्टार' और इस फिल्म के किरदारों में एक बात समान है कि दोनों में रणबीर के रोल में गुस्सा है और दोनों ही गायक हैं.
मुझे पता था कि इसकी तुलना होगी. मैं इसके लिए तैयार था क्योंकि मुझे यकीन था कि फिल्म की दूसरी चीजें इस तुलना पर भारी पड़ेंगी.
दोनों ही किरदार उस शख्स से नफरत करने लगते हैं जो उनके प्यार को ठुकराता है?
मैं फिर कहूंगा कि यह आपके रहन-सहन और सोच की बात है. हां उसकी नफरत मेरे जज्बात दिखाती है. क्योंकि यह फिल्म वैसी है जैसा मैंने खुद महसूस किया है. दर्द, गुस्सा और बदला...
नफरत भी?
हां, नफरत भी. जो मेरे साथ हुआ, उसकी काफी हद तक झलक मेरे लिखने में और फिर इस फिल्म में दिखाई देती है.
क्या आपकी फिल्म ये बात साफ करती है कि अगर कोई महिला आपके प्यार को स्वीकार नहीं करती. तो उससे नफरत करना ठीक नहीं?
नहीं, ऐसा नहीं है. मगर वह ऐसा कुछ नहीं करता जिससे कोई हद लांघ रहा हो. वह सिर्फ उससे प्यार करता है.
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