कादर खान भले ही आज दुनिया को हमेशा-हमेशा के लिए अलविदा कह गए हों, लेकिन बॉलीवुड फिल्मों में उनके अभिनय को शायद ही कोई भूल पाएगा. चाहे एक्टिंग हो या फिर स्क्रिप्ट लेखन, कादर खान की काबिलियत का जवाब नहीं था. चाहे विलेन का रोल हो या कॉमेडी रोल, कादर खान हर चीज में फिट बैठते थे. इसके अलावा लोग उनके डायलॉग बोलने के अंदाज के भी फैन थे. उनके डायलॉग डिलीवरी के अंदाज से ही हर फिल्म में जान आ जाती थी.
कादर खान ने नाटकों में काम करने से लेकर, अभिनय और स्क्रीन प्ले के क्षेत्र में बॉलीवुड को बहुत कुछ दिया है. 1970 से उन्होंने बॉलीवुड के हर बड़े कलाकार के साथ काम किया है. उन्होंने राजेश खन्ना से लेकर फिरोज खान, अमिताभ बच्चन, जितेंद्र, अनिल कपूर और गोविंदा तक के साथ काम किया और उनकी फिल्मों को अपनी उपस्थिति से एक संपूर्णता दी. एक इंटरव्यू में जब उनसे उनकी सबसे पसंदीदा लाइंस के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बिना किसी नोट के अपनी भारी आवाज़ में अपनी सबसे पसंदीदा लाइंस सुनाई.
फिल्म मुकद्दर का सिकंदर का एक सीन याद करते हुए कादर खान अपनी जादुई आवाज़ में कहते हैं कि फिल्म में मैं एक भिखारी के किरदार में था और मैं एक कब्रिस्तान में जाता हूं, जहां देखता हूं कि एक छोटा सा बच्चा (अमिताभ बच्चन) एक कब्र के पास बैठा रो रहा है. फिर वो कहते हैं..
किसकी कब्र पर बैठे हो बच्चों, हमारी मां मर गई है, उठो, आओ मेरे साथ चारों तरफ देखो. यहां भी कोई किसी की की बहन है, कोई किसी का भाई है, कोई किसी की मां है. इस शहर ए खामोशियों में, इस खामोश शहर में, इस मिटटी के ढेर के नीचे, सब दबे पड़े हैं. मौत से किसको रास्तागारी है? मौत से कौन बच सकता है? आज उनकी तो कल हमारी बारी है. पर मेरी एक बात याद रखना, इस फ़कीर की बात ध्यान रखना ये ज़िन्दगी में बहुत काम आएगी कि अगर सुख में मुस्कुराते हो तो दुःख में कहकहा लगाओ. क्योंकि जिन्दा हैं वो लोग जो मौत से टकराते हैं, पर मुर्दों से बद्तर हैं वो लोग जो मौत से घबराते हैं.
कादर खान का ये डायलॉग आज भी लोग काफी पसंद करते हैं. आज हम कादर खान के ऐसे ही कुछ फेमस डायलॉग की लिस्ट लेकर आए हैं जो जिसने भी सुने, वो कभी भूल नहीं पाया.
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