एक बेजोड़ संगीतकार जो गायक भी है, एक उम्दा गायक जो फिल्मकार भी है, एक खामोश रहने वाला कलाकार जो संगीत की जबान में बोलता है, एक सुरीला गायक जिसकी जबान शहद जैसी मीठी है, एक जन्मना हिंदू जो अपनी पसंद से मुसलमान भी है, एक मुसलमान जिसके भजन में देवताओं का संगीत गूंजता है, एक भारतीय जो विश्व संगीत में दखल रखता है, एक विश्व संगीतकार जिसके बंदे मातरम की गूंज से आपको सिहरन हो सकती है, ऐसा है भारतीय फिल्म संगीत का नाम जिसे आप एआर रहमान के नाम से जानते हैं.
वे भारतीय फिल्म संगीत में किसी धमाके की तरह आए थे और बाद में यही उनकी अदा बन गई है. वे अपनी आलोचनाओं और तारीफों पर ध्यान दिए बिना चुपचाप अपना काम करते रहते हैं, फिर अचानक चर्चा में आते हैं किसी शानदार एल्बम के लिए, किसी उम्दा म्यूजिकल हिट फिल्म के लिए, आॅस्कर, ग्रैमी, एकेडेमी या बाफ्टा जैसे अवॉर्ड के लिए.
उनका संगीत हिंदुस्तानी संगीत का अंतर्राष्ट्रीय वर्जन है, उनका संगीत अंतर्राष्ट्रीय संगीत का भारतीय वर्जन है. उनके पहले के संगीतकारों ने भारतीय और पश्चिमी संगीत का फ्यूजन रचा जरूर था, लेकिन उनके फ्यूजन ने धमाल मचा दिया. पूरी एक पीढ़ी फ्यूजन का मतलब न सिर्फ जान गई, बल्कि गुनगुनाने लगी.
वे भारतीय फिल्म संगीत के दिलीप कुमार हैं, जो बाद में अल्ला रक्खा रहमान यानी एआर रहमान बन गए. यह तुलना तथ्यत: भी सही है क्योंकि उनके बचपन का नाम भी दिलीप कुमार था.
मनोरंजन रेडियो चैनल विविध भारती से बातचीत में संगीतकार खय्याम ने एक बार कहा था कि फिल्म 'रोजा' के गाने रिलीज हुए तो हम लोग चौंक गए कि क्या हुआ? 'दिल है छोटा सा, छोटी सी आशा...' में अद्भुत प्रयोग हुआ था. भारतीय संगीत और पश्चिमी संगीत का ऐसा फ्यूजन पहले कभी नहीं सुना गया था.
यह तब की बात है जब फिल्मों का सुनहरा दौर यानी साठ का दशक गुजर चुका था. मणिरत्म की फिल्म 'रोजा' में रहमान को पहला ब्रेक मिला और रहमान हर संगीत प्रेमी के प्रिय बन गए.
'रोजा' से शुरू हुआ सिलसिला 'बॉम्बे', 'जेंटलमैन', 'रंगीला' 'दिल से' और 'ताल' जैसी म्यूजिकल हिट फिल्मों से होता हुआ 'लगान' और 'स्लमडॉग मिलियनेयर' तक पहुंचा, जिसके लिए रहमान को 'एकेडेमी अवॉर्ड', बाफ्टा अवॉर्ड और ग्रैमी अवॉर्ड भी मिला.
भारत के स्वतंत्रता दिवस की 50वीं सालगिरह पर उन्होंने गैरफिल्मी अल्बम 'वंदे मातरम' लॉन्च किया जो जबरदस्त लोकप्रिय हुआ. 'वंदे मातरम' तमाम गायकों ने गाया है, लेकिन रहमान के वंदे मातरम जैसा बेजोड़ प्रयोग कोई नहीं कर पाया. सबसे ज्यादा भाषाओं में इस गाने पर प्रस्तुति दिए जाने के कारण इसे गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी दर्ज किया गया है.
रहमान अलग-अलग फिल्मों के लिए चार बार नेशनल अवॉर्ड भी जीत चुके हैं. संगीत में उनके योगदान के लिए भारत सरकार उन्हें 'पद्म श्री' और पद्म भूषण' सम्मानों से नवाज चुकी है. उन्हें गोल्डन ग्लोब, ऑस्कर और ग्रैमी अवार्ड भी मिल चुके हैं. 15 फिल्मफेयर पुरस्कार भी उनके नाम हैं.
एआर रहमान 6 जनवरी, 1966 को चेन्नई में जन्मे थे. संगीतकार पिता से विरासत में मिले संगीत को रहमान अभी सहेजना सीख पाते तब तक उनके पिता आरके शेखर का देहांत हो गया. तब रहमान यानी दिलीप कुमार मात्र नौ साल के थे. पिता के देहांत के बाद घर खर्च का चलाना मुश्किल हुआ तो उनके संगीतकार पिता के वाद्ययंत्र तक बेचने पड़े.
हालांकि, रहमान को एक महान संगीतकार बनना था तो वे बने. महज 11 साल की उम्र में वे अपने दोस्त शिवमणि के साथ 'रहमान बैंड रुट्स' के लिए सिंथेसाइजर बजाने लगे. रहमान पियानो, हारमोनयिम, गिटार भी बजा लेते थे.
बैंड ग्रुप में काम करते हुए वे संगीत सीख भी रहे थे. इसी दौरान उन्हें लंदन के ट्रिनिटी कॉलेज से स्कॉलरशिप मिल गई और संगीत सीखने लंदन चले गए. वहां जाकर उन्होंने पश्चिमी शास्त्रीय संगीत की तालीम हासिल की.
1992 में उन्हें मणि रत्नम ने 'रोजा' में संगीत देने का मौका दिया और इस फिल्म के गाने इतने हिट हुए कि रहमान स्टार बन गए. उन्हें पहली ही फिल्म के लिए फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला.
रहमान ने भारतीय फिल्म संगीत में धमाल करने के बाद अंतरराष्ट्रीय संगीत की तरफ रुख किया. उन्होंने दुनिया भर में कन्सर्ट करने के अलावा हॉलीवुड की कई फिल्मों में संगीत दिया है. 2013 में कनाडाई की राजधानी ओंटारियो के मार्खम में एक सड़क का नाम उनके सम्मान में 'अल्लाह रक्खा रहमान' कर दिया गया.
रहमान के गानों की 200 करोड़ से भी अधिक रिकॉर्डिंग बिक चुकी है. वह विश्व के कुछ-एक सर्वश्रेष्ठ संगीतकारों में शुमार किए जाते हैं. 2010 में रहमान नोबेल पीस प्राइज कंसर्ट में प्रस्तुति दे चुके हैं. 2004 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने रहमान को टीबी की रोकथाम के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए सद्भावना दूत बनाया.
संगीत की ऐसी शख्सियत का आज जन्मदिन है. नई-नई बुलंदियों को छू रहे रहमान को खूब-खूब शुभकामनाएं देते हुए उनके चाहने वाले उनके लिए गा सकते हैं 'ताबीज बनाकर पहनूं उसे आयत की तरह मिल जाए कहीं...'
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