सोचकर मैंने इक सपना था बोया...लेकिन, क्या से क्या हो गया...मंजिल तो मुक्कमल न हुई...रास्ते और भटक गए...साल 1991 में आई फिल्म ‘डैडी’ में स्टेज पर गाया अनुपम खेर का वो गाना आज बरबस ही याद आता है कि आईना मुझसे मेरी पहली सी सूरत मांगे...मेरे अपने मेरी होने की निशानी मांगे...ये बस चंद अल्फाज नहीं जिसे तलत अजीज ने एक गाने में पिरो दिया...लगता है कि ये आज के परिपेक्ष्य में लिखी गई 1991 की दास्तान है, जो आज अनुपम खेर पर बिल्कुल फिट बैठती है...क्योंकि उन्होंने FTII के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है...आज FTII से जुड़ा हर एक शख्स और भारत सरकार के Minister of state for Information and Broadcasting जैसे पद पर विराजमान राज्यवर्धन सिंह राठौड़ भी यही सवाल पूछ रहे होंगे कि आखिर इस पद को उन्होंने स्वीकार ही क्यों किया जब इसका निर्वहन वो ठीक प्रकार से कर नहीं पा रहे थे?
2017 में अनुपम ने संभाला था पदभार
अनुपर खेर से किसी को कोई उम्मीद नहीं थी कि वो FTII जैसे संस्थान का कुछ भला कर पाएंगे क्योंकि महज एक साल पहले...साल 2017 में उन्होंने कार्यभार संभाला था लेकिन इस एक साल में उनमें पैसों और इज्जत की भूख ज्यादा दिखी लेकिन विद्यार्थियों की भलाई के लिए कोई कदम उठाते नजर नहीं आए. इससे पहले FTII के चेयरमैन के पद पर विराजमान रहे गजेंद्र चौहान के भी कुछ ऐसे ही सूरत-ए-हाल थे. उनके नए-नए स्टंट की वजह से छात्रों को काफी मुसीबतें झेलनी पड़ रही थीं, जिसका कड़ा विरोध जताते हुए छात्रों ने पूरे 139 दिन हड़ताल की और तब जाकर कुर्सी मिली अनुपम खेर को...लेकिन अनुपम खेर ने भी कोई अनुपम काम नहीं किया क्योंकि उन्हें छात्रों की दिक्कतों से कोई सरोकार कभी रहा ही नहीं...वो बस अपनी फिल्मों और अपने प्राइवेट थिएटर पर ही ध्यान केंद्रित करते नजर आए...तभी तो उनके खास दोस्त नसीरुद्दीन शाह से जब एक इंटरव्यू के दौरान पूछा गया कि, ‘FTII में अनुपम खेर के काम के बारे में आप क्या सोचते हैं? तो उन्होंने कहा वो कहां हैं? मैं उनके काम पर टिप्पणी कैसे कर सकता हूं जब वो कभी FTII में नजर ही नहीं आते? मुझे नहीं लगता कि वो दो बार से ज्यादा बार वहां गए होंगे.’ सोचिए कि अब उनके काम का तरीका कितना निराला है...एक ऊंचे ओहदे पर बैठकर उसकी गरिमा भी याद नहीं रहती...ऐसे में छात्रों का क्या भला होने वाला है? जब छात्र ही शिक्षक से उन्हीं की शिकायत करने लगे तो समझ जाइए कि उस संस्थान का भविष्य क्या है. क्योंकि 1 साल बिताने के बाद भी अनुपम खेर ने उन तमाम छात्रों को कुछ भी नहीं दिया जिसकी वो दिन-रात बाट जोहते रहे. हां, दी तो बस एक चीज और वो है बेइंतेहा इंतजार.
अनुपम खेर का अनुपम जवाब
जब अनुपम खेर ने FTII ज्वाइन की थी, उस वक्त छात्रों ने ये सवाल उठाया था कि FTII की स्थापना विभिन्न पहलुओं की शिक्षा देने के उद्देश्य से की गई थी लेकिन धीरे-धीरे ये एक ऐसा संस्थान बनता जा रहा है जो ‘धन जुटाने’ के लिए कम अवधि के क्रैश कोर्स चलाता है. जिसके जवाब में अनुपम खेर ने कहा था कि, ‘मैं वहां जाकर छात्रों के साथ चर्चा करना पसंद करूंगा. मैं उनके सीनियर की तरह हूं. मैं वर्ष 1978 में वहां छात्र था और अब 38 साल बाद मैं वहां अध्यक्ष के तौर पर जा रहा हूं.’ चर्चा तो कोई हुई नहीं लेकिन हमें लगता है कि अनुपम खेर को अपनी बोली गई बातों को अमल में जरूर लाना चाहिए था या फिर गजेंद्र चौहान की तरह ही कुछ करते...छात्रों के लिए तो ऐसा हो गया था जैसे...वक्त बीतता गया और हम गुबार देखते रहे...ये केवल हमारा कहना नहीं है क्योंकि उन्होंने एक साल में सिर्फ अपनी रोटी सेंकी, छात्रों के बारे में उन्हें तनिक भी चिंता नहीं रही. उन्होंने पूरे संस्थान का भरोसा इस एक साल में चकनाचूर कर दिया.
छात्र संगठन के मुखिया ने भी उठाए थे सवाल
FTII छात्र संगठन के मुखिया रॉबिन जॉय ने भी अनुपम खेर पर कई सवालों की बौछार की जो कि कई मायनों में सही जान पड़ते हैं. उन्होंने कहा कि, ‘भारत सरकार कैसे अनुपम खेर को चेयरमैन जैसे पद पर बिठा सकती है जबकि उनका खुद का इंस्टीट्यूट है और एक्टिंग स्कूल है? ये रूचि से बिल्कुल परे है क्योंकि उनकी पत्नी किरण खेर बीजेपी की एमपी हैं. उन्होंने मीडिया को प्रॉस्टीट्यूट कहा. जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के छात्रों को एंटी नेशनल्स कहा और तो और साल 2015 में छात्रों के जरिए किए गए हड़ताल पर उन्होंने गजेंद्र चौहान का विरोध करते हुए कहा था gone to dogs.’ इतना शायद काफी होगा लेकिन नहीं वो 9 महीने के लीव पीरियड पर न्यू यॉर्क चले गए और वो भी एक अमेरिकन शो के लिए. उस वक्त भी उन्हें FTII का ख्याल नहीं आया. शायद ये अच्छा ही हुआ कि उन्होंने खुद त्यागपत्र दे दिया वर्ना फिर से छात्रों के जरिए वही साल 2015 की कहानी दोहराई जा सकती थी.
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