लिपस्टिक अंडर माय बुर्का, ये नाम जितना अलग है, ये फिल्म उससे भी ज्यादा हटकर है. पूरे साल में ऐसी कम ही फिल्में आती हैं जिनमें धमाकेदार एक्सपेरिमेंट्स होते हैं. बिना किसी फेल्योर के. जितनी संजीदगी से इस फिल्म में बोल्ड सीन्स को दिखाया गया है उसमें जरा सी भी फूहड़ता नहीं है. डायरेक्टर अलंकृता श्रीवास्तव की इस खूबसूरत क्रिएटिविटी को कई बार सलाम करने का मन करता है.
फिल्म में ऐसा एक भी मूमेंट नहीं है, जिससे बोर होकर आप अपना ध्यान कहीं और लगा पाएंगे, आपने अगर मिस कर दिया तो इसे दोबारा देखने जाने में भी आपकी दिलचस्पी बनी रहेगी.
तो चलिए अब बात करते हैं इस साल की सबसे कॉन्ट्रोवर्सियल फिल्म की. जिसमें कॉन्ट्रोवर्सियल कुछ भी नहीं है. बस सेंसर बोर्ड की मानसिकता कॉन्ट्रोवर्सियल सी लगती है, जिसके लिए बोर्ड की इन दिनों काफी थू-थू हो रही है.
पुरुषों के एडल्ट साहित्य पर कई फिल्में बन चुकी हैं. लेकिन महिलाओं के एडल्ट साहित्य पर ये शायद पहली फिल्म है. पहली इसलिए कि इससे पहले जो भी फिल्म आई हो ना तो उसका पहले नाम हुआ और ढंग का नहीं होगी इस वजह से किसी ने बाद में उसे पूछा नहीं.
खैर, रोजी की कहानी से शुरू करते हैं. फिल्म भी उसी की कहानी से शुरू होती है. वैसे इस फिल्म में रत्ना पाठक शाह, कोंकोणा सेन शर्मा, अहाना कुमरा और पल्बिता बोरठाकुर हैं, जिनकी अपनी-अपनी स्टोरीज हैं लेकिन इन सबको रोजी के सपनों में पिरोकर पेश किया गया है क्योंकि कहीं ना कहीं ये रोजी जैसे सपने देखने की कोशिश करती हैं.
मजे की बात ये है कि इस फिल्म में 20 साल से लेकर 50 साल तक की इन महिलाओं के सपने एक ही जैसे हैं वो अपनी जिंदगी में कुछ अलग करना चाहती हैं और अपनी इसी स्पिरिट के लिए वो हर वक्त जद्दोजहद में लगी रहती हैं.
उनकी जिंदगी की अपनी-अपनी उम्र के हिसाब से अपनी अपनी कहानियां और जरूरतें हैं लेकिन इस बात को दिमाग से निकाल दीजिए कि ये फिल्म सेक्स के बारे में है.
छोटे शहर की स्टोरी
इस फिल्म के को-प्रड्यूसर प्रकाश झा हैं जिन्होंने भोपाल में राजनीति, आरक्षण, गंगाजल समेत कई फिल्में बनाई हैं और लिपस्टिक अंडर माय बुर्का की ये चारों नाइकाएं इसी शहर में रहती हैं.
स्क्रीनप्ले का जादू
रत्ना पाठक की आवाज के साथ कहानी जब शुरू होती है तो वो रोजी की बात करती हैं, लेकिन रोजी की स्टोरी कैसे चारों अदाकाराओं की जिंदगी का तानाबाना बुनती है ये इसके स्क्रीनप्ले का जादू है.
फिल्म की सूत्रधार ने कहीं पर भी रोजी के अलावा दूसरे नाम का प्रयोग नहीं किया है फिर भी सूत्रधार की आवाज से कब आप हीरोइन की जिंदगी में चले जाएंगे और फिर कैसे वापस इस आवाज पर लौटकर आ जाएंगे आपको पता ही नहीं चलेगा.
एक्टिंग है बेमिसाल
रत्ना पाठक की एक्टिंग पर इसलिए कुछ भी लिखना ठीक नही होगा क्योंकि उन्होंने खुद को बॉलीवुड में बहुत पहले से साबित कर दिया है. कोंकोणा सेन शर्मा ने मिडिल क्लास वाइफ की भूमिका में कमाल की एक्टिंग की है. वो एक सेल्सगर्ल बनी हैं और साथ ही अपने परिवार को पूरा वक्त भी देती हैं. और अपने पति की दगाबाजी की पोल भी खोलती हैं.
सबसे उम्दा एक्टिंग का ताज फिर भी अहाना कुमरा के सिर पर सजता है क्योंकि वो इस फिल्म में एक्टिंग से लेकर डायलॉग डिलीवरी और रोमेंटिक सीन्स में सबसे आगे नजर आई हैं. सबसे ज्यादा बोल्ड सीन्स उन्हीं के हैं, जिन्हें उन्होंने बहुत ही संजीदगी से निभाया है.
पल्बिता बोरठाकुर एक सिंगर भी हैं इसलिए उनके टैलेंट को फिल्म में उनकी आवाज के जादू के साथ दिखाया गया है. सही मायने में लिपस्टिक अंडर माय बुर्का पल्बिता पर ही सबसे ज्यादा फिट होती है.
बुर्का पहनर रहने वाली एक लड़की कैसे माइली सायरस बनने की सपने देखती है और उसमें वैसी ही निराली बात भी है.
अलंकृता को ‘अलंकरण’
फिल्म की डायरेक्टर अलंकृता श्रीवास्तव सबसे ज्यादा बधाई की पात्र हैं उन्होंने अपने विजन से फिल्म को एक अलग ही लेवल पर पहुंचा दिया है. इस तरह के बोल्ड कॉन्सेप्ट को सोचना फिर दुनिया से लड़कर इसे फिल्म का रूप देना, उनको ही सही मायनों में इसकी सफलता का पूरा क्रेडिट देना चाहिए.
एकता कपूर की तारीफ
एकता की तारीफ इसलिए क्योंकि वो इस फिल्म को कानूनी पचड़ों और झमेलों से निकालकर दर्शकों तक लेकर आई हैं. ये काम कोयले की खान में हीरे को ढूंढने जैसा ही है. लेकिन एकता कपूर ने इससे पहले भी इस तरह के हीरे ढूंढे हैं और दर्शकों तक पहुंचाए भी हैं, चाहे वो छोटे पर्दे के ही क्यों न सही.
फिल्म बनेगी माइलस्टोन
ये फिल्म भारतीय सिनेमा में एक मील का पत्थर इसलिए साबित होगी क्योंकि महिलाओं की फैंटसीज को इसने जिस खूबसूरत अंदाज में पेश किया है, उससे ये फिल्म एक उदाहरण के तौर पर याद की जाएगी. ‘जरूर’ देखना तो बनता है
अगर आप सिनेमा के फैन है तो ये फिल्म इसलिए आपको एंटरटेन करेगी क्योंकि स्टीरो के साथ जबरदस्त एक्सपेरिमेंट्स किये गए हैं. और अच्छा सिनेमा कैसे बनता है और उसे साफ सुधरे अंदाज मेंकैसे दिखाया जाया है ये इस फिल्म से जरूर सीखा जा सकता है.
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