वेब प्लेटफॉर्म्स ने आकर दुनिया भर के लोगों की मनोरंजन की आदत को बदल डाला है. भारत में तो इसने ऐसा धमाका किया है कि यहां इस आदत के साथ-साथ कॉन्टेंट भी बदल गया है. ये बदलाव लोगों को इतना पंसद आ रहा है कि अब घरों में लगा टीवी अब ज्यादातर बंद रहने लगा है.
कॉन्टेंट के इस नए दौर के क्रिएटिव लोग भी काफी अलग हैं. वो पुराने तरीकों से हटकर सोचते हैं इसलिए नए चैनल्स उनका स्वैग से स्वागत भी कर रहे हैं. हम आपको मिलवाने जा रहे हैं नए जमाने के क्रिएटिव्स नेहा आनंद और विक्टर मुखर्जी से जिनकी दो वेबसीरीज वीयू पर ‘लव, लस्ट एंड कन्फ्यूजन’ और ज़ी फाइव पर ‘बब्बर का टब्बर’ इन दिनों जमकर पसंद की जा रही हैं.
कॉन्टेंट की दुनिया में अपने अभी तक के सफर के बारे में बताएं?
नेहा – पिछले छह साल से हम इस तरह को शोज को लेकर काफी जगह बात कर रहे थे, तब दौर अलग था, इसलिए इन शोज का कुछ नहीं हुआ लेकिन जैसे ही पिछले एक साल में चीजें बदली हैं हमें शोज मिलना शुरू हो गए. वीयू ने लव, लस्ट एंड कन्फ्यूजन पास कर दिया. ज़ी 5 ने बब्बर का टब्बर और हमारी दो शॉर्ट फिल्म्स को IWM डिजिटल अवॉर्ड्स में बेस्ट शॉर्ट फिल्म्स कैटेगरी में नॉमिनेशन मिल गया. पिछले साल जो कुछ बनाया था वो इस साल स्क्रीन पर आ गया. इससे पहले हमारी कपंनी मैंगो पीपल मीडिया कॉरपोरेट फिल्म्स पर काम कर रही थी.
कभी टीवी के लिए आपने शो पिच नहीं किए?
विक्टर – हमें टीवी से निकलना था. टीवी में उस वक्त का फिक्शन हमें नहीं करना था.
लव लस्ट एंड कन्फ्यूजन वीयू पर आपकी सीरीज आई है उसके बारे में कुछ बताएं?
विक्टर – ये मेरी एक दोस्त की रीयल लाइफ स्टोरी से इंसपायर्ड है. लव और डिजायर की स्टोरी है जो आजकल के यूथ में काफी आम है. इसलिए इसे वीयू ने जल्दी से पास कर दिया. बाकी आप जब इसे देखेंगे तो एक साथ कई एपिसोड्स देखे बिना नहीं रह पाएंगे.
डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर जो इन दिनों बूम आया है उसे आप किस तरह से देखते हैं?
नेहा – डिजिटल के आने से एक बात तो पक्की है कि यहां सभी के लिए कुछ न कुछ काम है. जो छोटे प्लेयर्स हैं वो यूट्यूब के लिए कॉन्टेंट बना रहे हैं. डिजिटल शो में स्टोरी से लेकर एक्टिंग सब कुछ अलग है. आप सिर्फ लोगों के बात करने के तरीके को शूट कर लें तो आप कॉन्टेंट बना सकते हैं. लेकिन अब बड़े नाम जैसे धर्मा, यशराज इसमें आ रहे हैं, जिससे छोटे लोगों में एक डर बना हुआ है. लेकिन ये आनेवाला वक्त ही बताएगा कि क्या ये लोग भी इस प्लेटफॉर्म पर उतना बड़ा कमाल कर पाएंगे जैसे ये बॉक्स ऑफिस पर करते हैं. टीवी में भी संजय लीला भंसाली, आशुतोष गोवारिकर जैसे बड़े नाम आए थे लेकिन वहां वो कुछ खास नहीं कर पाए. वेब में सबसे बड़ा फायदा लेकिन ये है कि यहां सभी के करने के लिए कुछ न कुछ है.
टीवी धीरे धीरे खत्म होने जा रहा है. ये अब बूढ़े लोगों का प्लेटफॉर्म रह गया है. जो लोग नई तरह का कॉन्टेंट देखना चाहते हैं उनके लिए वेब है. वेब की सबसे पावरफुल बात ये है कि यहां कमिटमेंट व्यूअर्शिप के लिए आपको टीवी के सामने नहीं बैठे रहना, आपको जब वक्त हो आप अपने सीरियल्स देख सकते हैं और एक साथ कई एपिसोड्स देख सकते हैं. इसलिए ये सभी को खूब पसंद आ रहा है. ये आगे और बढ़ेगा. मुझे लगता है कि आने वाले वक्त में इंडिया का डिजिटल कॉन्टेंट पूरी दुनिया में वो धमाका कर सकता है जैसा अभी तक बॉलीवुड की फिल्मों ने भी नहीं किया. इससे हम हॉलीवुड को टक्कर दे सकते हैं.
क्या आपको लगता है कि वेब ने आकर टीवी की प्रोग्रामिंग को कन्फ्यूज कर दिया है?
नेहा – जी बिल्कुल, इसकी सबसे बड़ी वजह ये है कि ये प्लेटफॉर्म न सिर्फ जनता को पसंद आ गया है बल्कि एडवरटाइजर्स ने भी इसे हाथों-हाथ लिया है. वो अपना बड़ा बजट इस तरफ मोड़ रहे हैं, इसलिए वेब प्लेटफॉर्म्स पर पैसा भी अच्छा मिल रहा है.
विक्टर - टीवी के साथ दिक्कत ये है कि वो एक्सपेरिमेंट्स तो कर रहे हैं लेकिन वो अपनी पुरानी प्रोग्रामिंग में से नहीं निकलना चाहते हैं, उनका हर फिक्शन शो सास बहू जैसे स्टीरियो टाइप में आकर खत्म हो रहा है. तो वो कहीं न कहीं टाइपकास्ट हो गए हैं. इसलिए हर शो एक जैसा दिखता है. चैनल्स के साथ बड़ी दिक्कत ये भी है कि वो अपने कॉन्टेंट से वेब पर भी आना चाहते हैं. जहां उन्हें वो ही लोग देखेंगे तो टीवी पर उन्हें देखते हैं. इसके लिए उन्हें उतना बड़ा एड बजट मिलेगा. ऐसा मुश्किल है. इसलिए वो कन्फ्यूज्ड हैं और एक जैसा कॉन्टेंट बनाते जा रहे हैं.
डिजिटल प्लेटफॉर्म्स में क्या-क्या चैलेंजेस हैं?
विक्टर – सबसे बड़ा चैलेंज है कि आपको रीयल रहना है. टीवी की तरह एक एक्सप्रेशन यहां पर चार बार रिपीट नहीं किया जा सकता. टीवी के मुकाबले एक्टिंग यहां पर पूरी तरह से अलग है. यहां पर सब कुछ नैचुरल है. मैथड एक्टिंग का यहां पर ज्यादा स्कोप नहीं है. रीयल लाइफ में लोगों की लाइफ उतनी ड्रामे से भरी नहीं होती और यूथ को तो ड्रामा ज्यादा पसंद नहीं है इसलिए यहां ड्रामे से दूर रहकर रीयल सोचना पड़ता है.
यहां पर बड़ा डिफ्रेंस ये भी है कि क्वालिटी पर बहुत ध्यान देना है 10-12 एपिसोड में स्टोरी खत्म, सीजन खत्म. टीवी की तरह 1000 एपिसोड नहीं हैं. इसलिए क्वालिटी पर पहले दिन से फोकस रहता है. क्वालिटी वहां भी है लेकिन उतना फ्रेश कॉन्टेंट नहीं है.
हम फिल्म की तरह शूट करते हैं. पूरी स्टोरी का बाउंड स्क्रिप्ट होता है. फिल्म की तरह प्री-प्रोडक्शन और शॉट डिवीजन होता है. तो मेरे हिसाब से ये शूट करना ज्यादा सरल है. टीवी पर तो स्टोरी भी सेट पर बदल जाती है. यहां सब लॉक रहता है पहले से. टीवी में चैनल और प्रड्यूसर्स का क्लैश बहुत होता है लेकिन यहां पर माहौल बहुत कूल रहता है.
ज़ी 5 पर आपकी सीरीज बब्बर का टब्बर इन दिनों स्ट्रीम हो रही है उसके बारे में बताएं?
नेहा – बब्बर का टब्बर हमारे दोस्त आलोक शर्मा ने लिखी है. उन्होंने इसे फिल्म की तरह लिखा था. मुझे ये स्टोरी बहुत पसंद आई. ये माता-पिता और बच्चों के बीच आने वाले जेनेरेशन गैप की स्टोरी है. लेकिन बहुत फनी है. ये कॉमेडी जॉनर की स्टोरी है. एक दिल्ली वाली फैमिली की कहानी है. जिनके यहां एक किराएदार रहता है वो कुछ करता नहीं है पर अपने मकान मालिक का पटाकर रखता है. 6 एपिसोड रिलीज हो गए हैं. कास्टिंग बहुत शानदार है. मनु ऋषि का मेन रोल है. जो हमारे रिश्तेदार जैसा दिखता है. दो बच्चों के कैरेक्टर हैं जिनमें से एक तो डिजिटल स्टार है जिसके फॉलोअर्स एक मिलियन से भी ज्यादा हैं.
फिल्म्स में आने का भी आपका प्लान है?
नेहा – फिल्म्स पर काम चल रहा है. शॉर्ट फिल्म्स हमने कर ली हैं. फिल्म्स तो जरुर बनानी हैं. बॉलीवुड की जर्नी फिल्म्स के बिना पूरी नहीं हो सकती.
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