अगर आपने फिल्म एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा का टीजर ध्यान से देखा होगा तो आपको इस बात की जानकारी हो गई होगी की सोनम कपूर का किरदार एक समलैंगिक का है. कहने की जरुरत नहीं है की अपने थीम की वजह से ही ये फिल्म बॉलीवुड की बाकी फिल्मों से काफी अलग हो जाती है. फिल्म को देखने के बाद एक बात साफ जाहिर है की ये फिल्म सेंसेशनलिस्म का सहारा नहीं लेता और अपनी कहानी को ही आगे रखती है और ये बॉलीवुड के लिए एक बहुत बड़ी छलांग कही जायेगी. अगर इस फिल्म के बारे में ये कहे की की ये एक अनोखी प्रेम कहानी जो आज के परिप्रेक्ष्य मे फिट बैठती है तो ये कही से भी गलत नहीं होगा.
फिल्म की कहानी पंजाब के एक संयुक्त परिवार के ऊपर केंद्रित है
फिल्म की कहानी पंजाब के मोंगा इलाके के एक संयुक्त परिवार के इर्द गिर्द घूमती है. इस परिवार के मुखिया है बलविंदर चौधरी (अनिल कपूर) जिनका कपड़े का एक कारखाना है लेकिन शेफ बनने की हसरत उनकी दिल में ही दब कर रह गयी है. बलविंदर चौधरी की बेटी है स्वीटी (सोनम कपूर) जो की एक समलैंगिक है. बाप और बेटी के दोनों के ही अंदर ही अधूरी हसरतें है जिनपर समाज की बेडिया लगी है. स्वीटी के ऊपर शादी करने का घर की ओर से जबरदस्त दबाव है जिसकी अगुवाई करती है उसकी नानी या फिर बीजी (मधुमालती कपूर)। लेकिन स्वीटी की इच्छा है की वो लंदन आर्ट्स स्कूल में दाखिला ले. दिल्ली में स्वीटी की मुलाकात साहिल (राजकुमार राव) से होती है जिसका ताल्लुक रंगमंच की दुनिया से है. शुरूआती बातचीत और मुलाकात के बाद साहिल के दिल में स्वीटी के लिए प्यार पनपने लगता है. और इसी वजह से साहिल अपने थिएटर ग्रुप के साथ मोंगा आ जाता है और उसके बाद कहानी की परतें एक के बाद एक करके खुलने लगती है.
अनिल कपूर और जूही चावला ने अभिनय में बाजी मारी
इस फिल्म में अनिल कपूर और सोनम कपूर पहली बार एक साथ नजर आएंगे और कहने की जरुरत नहीं है की दोनों के बीच बाप बेटी की केमिस्ट्री पूरे रंग में रुपहले परदे पर भी नजर आती है. एक लाचार बाप के रूप में अनिल कपूर और अपनी इच्छाओं को किसी भी कीमत पर ना दफनाने की पूरी कोशिश करने वाले स्वीटी की भूमिका में सोनम कपूर अपने रोल में बखूबी जंची हैं. जूही चावला एक बार फिर से दर्शकों का ध्यान अपनी ओर खींचने में कामयाब हुई है. उनका काम बेहद सधा हुआ है और जब भी परदे में पर उनके दीदार होते है नजरे उनके ऊपर ही टिकी रहती है. इसकी एक वजह ये भी है की फिल्म का जो सबसे लुभाने वाला किरदार है वो उनका ही है. सीमा पाहवा बेहद ही कम फिल्मों में नज़र आती है. आंखों देखी, दम लगा के हईशा में हमने उनके कमाल के अभिनय का नमूना पहले देखा ही था और अब इस फिल्म में भी उन्होंने जता दिया है की फिल्मों का ज्यादा भार वही संभालती है और अपने इस काम में वो बेहद सक्षम है
एक लड़की को देखा एक प्रोग्रेसिव फिल्म है
इस फिल्म का विषय वस्तु काफी संजीदा है लेकिन अपने पंजाबी माहौल की वजह से फिल्म दर्शकों का ध्यान अपनी ओर खींचने में कामयाब रहती है दूसरे शब्दों में ये कह सकते है कि हंसी मजाक और नाच-गाने के माहौल की वजह से लोग फिल्म में इनवेस्टेड रहते है. एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा को बॉलीवुड में बदलाव की एक लहर मानी जा सकती है. इसको अपने विषय की वजह से क्रांतिकारी कहा जा सकता है. इस फिल्म का सन्देश बेहद ही सरल है की प्यार करने वालो के बीच किसी भी तरह का बंधन नहीं होता है और ये जेंडर से परे है. अनिल कपूर और जूही चावला जब एक फ्रेम में होते है तब उन सीन्स को देखने में बेहद मजा आता है बल्कि ये भी कहा जा सकता है की फिल्म के सबसे जबरदस्त सीन्स इन्ही के हिस्से में है. जब ये दोनों एक दूसरे से कुकिंग के गुर सीखते है तब वो सीन्स बेहद ही लुभावने बन पड़े है.
ये अनकंवेंशनल फिल्म अच्छे सन्देश के साथ साथ मनोरंजन भी करती है
शेली चोपड़ा धर इस फिल्म से अपने फिल्मी निर्देशन की पारी की शुरुआत कर रही है और कई जगहों पर उनके काम में पैनापन नजर आता है. उनके इरादों में ईमानदारी दिखाई देती है. ये फिल्म बॉलीवुड की उन गिनी चुनो फिल्मों में आती है जिसका सेकंड हाफ प्रेडिक्टेबल होने के बावजूद पहले हाफ से बेहतर है. फिल्म में जब अनिल कपूर अपने बेटी के लेस्बियन होने का पता चलता है उन सीन्स में अनिल कपूर की अदाकारी कमाल की है. इस फिल्म में कुछ खामिया भी है. कई जगहों पर ये फिल्म उपदेश देने लगती है और कई जगहों पर इसके रिसर्च पर आप ऊंगली उठा सकते है. लेकिन इन सभी को दरकिनार किया जा सकता है क्योंकि एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा का मकसद साफ़ है - एक अच्छे सन्देश के साथ साथ लोगो का मनोरंजन भी करना.
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