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कोंकणी के बाद अब सिंधी रिवाज से हो रही है दीपिका-रणवीर की शादी, जानिए क्या है दोनों के रीति रिवाजों में अंतर

दरअसल दीपिका कोंकणी ब्राह्मण है और रणवीर सिंह संधी, इसलिए दोनों स्टार्स की शादी भी इन दोनों तरीकों से हो रही है

Updated On: Nov 15, 2018 05:20 PM IST

FP Staff

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कोंकणी के बाद अब सिंधी रिवाज से हो रही है दीपिका-रणवीर की शादी, जानिए क्या है दोनों के रीति रिवाजों में अंतर

बॉलीवुड स्टार्स रणवीर सिंह और दीपिका पादुकोण बुधवार को शादी के बंधन में बंध गए. दोनों ने इटली के लेक कोमो शहर में कोकंणी रीति रिवाजों के साथ शादी की. अब आज यानी 15 नवंबर को दोनों सिंधी रिवाज के साथ शादी करेंगे. अब अगर आप ये सोच रहे हैं कि दोनों अलग-अलग रीति रिवाजों से शादी क्यों कर रहे हैं तो इसका जवाब भी हम आपको बता देते हैं.

दरअसल दीपिका कोंकणी ब्राह्मण है और रणवीर सिंह सिंधी हैं, इसलिए दोनों स्टार्स की शादी भी इन दोनों तरीकों से हो रही है. इन दोनों तरह की शादियों में क्या-क्या रीति रिवाज होते हैं और दोनों एक दूसरे से कैसे अलग हैं ये भी हम आपको बता देते हैं.

कोंकणी शादी के रीति रिवाज

उदिदा मुहूर्त

उदिदा मुहूर्त कोंकणी शादी की एक प्रमुख रस्म है. उदिदा का मतलब होता है काले चने. इस रस्म में वर-वधू को काले चने एक साथ मिलकर पीसने होते हैं. इस दौरान उन्हें वैवाहिक जीनव के आदर्शों के बारे में बताया जाता है और ये समझाया जाता है कि कैसे उन दोनों मिलजुलकर परिवार को संभालना होगा.

काशी यात्रा

उदिदा मुहूर्त के बाद होती है काशी यात्रा रस्म. इस रस्म में वर शादी की सभी रस्मों से परेशान होकर काशी जाने का अभिनय करता है. वह हाथ में छड़ी, पोटली और छाता लेकर काशी जाने की जिद करता है. फिर वधू के पिता उसे समझाते हैं और मनाकर शादी के लिए राजी करवाते हैं. इस दौरान वर को मनाने के लिए कन्या के पिता वर को उपहार भी देते हैं.

मंडप पूजा

वर के मान जान के बाद उसे कपड़े बदलने के लिए भेजा जाता है. इस दौरान कन्या मंडप पूजन करती है.

वरमाला

इसके बाद वरमाला की रस्म शुरू होती है. वरमाला के लिए कन्या को उसके मामा मंडप में लेकर आते हैं और फिर वरमाला की रस्म होती है.

कन्यादान

इस रस्म में कन्या के पिता कन्या का हाथ वर के हाथ में देते हैं और कन्या की माता कलश में दूध, फूल, चांदी का सिक्का रखकर वर के हाथों पर डालती है. बाद में इस सिक्के को वे अपने पास ही रख लेती हैं.

कसथली

कसथली का मतलब होता है मंगलसूत्र. इस रस्म में वर वधू को मंगलसूत्र पहनाता है.

लाइ होम

इसके बाद लाइ होम की रस्म होती है जिसमें कन्या धान का लावा और मुरमुरा हवन कुंड में डालती है. इस रस्म को पांच बार किया जाता है.

सप्तपदी

इसके बाद वर-वधू सात फेरे लेते हैं जिसके बाद विवाह संपन्न माना जाता है. इसके बाद कन्या एक साड़ी बिछाती है जिस पर पति पत्नी दोनों एक साथ बैठकर केला खाते हैं और परिवार के लोग उन्हें आर्शीवाद देते हैं.

सिंधी शादी के रिवाज

सिंधी रिवाज में होने वाली शादी कोंकणी रिवाज से बहुत अलग होती है. इसमें शादी की रस्में किसी दूसरी शादी की तरह ही दो भागों में बंटी हुई है. एक वो रस्में जो शादी से पहले होती हैं और दूसरी वो रस्में जो शादी वाले दिन होती हैं. शादी वाले दिन रस्मों की शुरुआत हल्दी से होती है जो वर- वधू दोनों के घर होती है.

घरी पूजा

घरी पूजा वर-वधू दोनों घरों में होती है, जिसमें पंडितजी पूजा कराते हुए वर-वधू के हाथ गेंहू के आटे से भर देते हैं. इस रस्म को घर भरने के तौर पर किया जाता है.

खीरम सत

इस रस्म में भगवान की कच्चे दूध से पूजा की जाती है और लौंग इलायची, जायफल और चावल चढ़ाए जाते हैं. इसके बाद सभी को प्रसाद बांटा जाता है.

पीर वीर

पीर वीर की रस्म शादी के एक दिन पहले भी होती है और शादी वाले दिन भी होती है. इस रस्म में वधू के परिवार वाले वर की लंबाई एक धागे से नापते हैं और फिर उस जगह गांठ बांध देते हैं.

गरो धागो

ये रस्म शादी वाले दिन होती है जिसमें वर वधू के पूर्वजों की पूजा होती है. इसके बाद ऐसी कुछ रस्में होती हैं जो केवल दुल्हन के घर होती हैं. वो रस्में हैं-

सागरी

सागरी रस्म में दुल्हे के परिवार की महिलाएं दुल्हन को फूलों से नहलाती हैं और फिर दुल्हन को फूलों से बनी ज्वेलरी पहनाई जाती है. फिर दुल्हन दुल्हे के परिवार के सभी सदस्यों से एक-एक कर मिलती है.

बारात स्वागत

इसके बाद बारात दरवाजे पर आने के बाद दुल्हन का परिवार बारात का स्वागत करता है.

पांव धुलाई

स्वागत के बाद दुल्हा दुल्हन को एक साथ बैठाया जाता है. इसेक बाद दुल्हन के माता-पिता दुल्हे के पैर धोते हैं.

जयमाला और पल्ली पल्लो

इसके बाद होती है जयमाला की रस्म जिसमें दुल्हा दुल्हन एक दूसरे को जयमाला पहनाते हैं. यह रस्म तीन बार होती है. इसेक बाद होती है पल्ली पल्लो की रस्म जिसमें दु्ल्हे की बहन दोनों का गठबंधन करती है. जिसके बाद शादी की रस्में शुरू होती है.

सप्तपदी

शादी की रस्में करने के बाद सात फेरे लिए जाते हैं. इसके लिए 7 चावल के छोट ढेर बनाए जाते हैं जिनपर दुल्हन दुल्हे का हाथ थामे हुए चलती है. इसके बाद दुल्हा दुल्हन के परिवार वाले दोनों को आर्शीवाद देते हैं

दूल्हे के घर होने वाली रस्मे

सांथ प्रथा

इस रस्म में दुल्हे के भाई और उसके दोस्त दुल्हे के सिर पर तेल लगाकर मालिश करते हैं. फिर दुल्हे को दाहिने पैर में जूता पहनाकर जमीन पर रखे मटके को फोड़ने के लिए कहते हैं. दुल्हे के मटके फोड़ने पर उसके पहने हुए कपड़ फाड़ दिए जाते हैं

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इस रस्म में पंडित जी दुल्हन के घर से आई सामग्री से दुल्हे के घर में गणपती भगवान और नवग्रहों की पूजा करते हैं

जेनया

इस रस्म में दुल्हे को पवित्र धागा बांधा जाता है.

पसली भरना

इस रस्म में एक लाल कपड़े में चावल, नारियल और चांदी का सिक्का रखकर दुल्हे की कमर में बांध दिया जाता है.

कंडी पूजा

कंडी पूजा के दौरान शादी के दिन कांटेदार पौधे रखकर बारात निकलने से पहले उसकी पूजा की जाती है. फिर बारात जब लौटकर आती है तो दोबारा इसकी पूजा की जाती है.

बारात निकलना

सारी रस्में हो जाने के बाद बारात निकाली जाती है. इस दौरान बाराती नाचते गाते हुए दुल्हन के घर पहुंचते हैं.

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