लगता है आजकल बॉलीवुड को कुश्ती ज्यादा ही रास आने लगी है. तभी तो यह बॉलीवुड फिल्मों के लिए एक हिट फॉर्मूला बन गया है.
जब सुपरस्टार आमिर खान को अपनी आने वाली फिल्म ‘दंगल’ के लिए एक हरियाणवी पहलवान का किरदार निभाना पड़ा तो उनकी तैयारियां वजन बढ़ाने से भी आगे निकल गईं.
अपने परफेक्शनिज्म के लिए मशहूर आमिर, पहलवान वाले किरदार में सहज दिखना चाहते थे और इसके लिए कॉस्मेटिक मेकओवर कराने के बजाय आमिर ने पूरी ट्रेनिंग के लिए एक कुश्ती चैंपियन को हायर किया. आमिर खान के ये ट्रेनर हैं, इंदौर के 40 साल के पहलवान कृपा शंकर बिश्नोई.
बिश्नोई भारतीय महिला कुश्ती टीम के कोच और प्रतिष्ठित अर्जुन अवॉर्ड के विजेता भी हैं. बिश्नोई ने अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भारत के लिए कई मेडल जीते हैं. इन प्रतियोगिताओं में कॉमनवेल्थ गेम्स भी शामिल हैं. इस महीने रिलीज होने जा रही इस फिल्म के लिए बिश्नोई ने आमिर और पूरे क्रू को प्रशिक्षित किया.
नीतेश तिवारी के निर्देशन में बनी यह फिल्म मशहूर भारतीय पहलवान महावीर सिंह फोगाट की जिंदगी पर आधारित है, जिन्होंने अपनी बेटियों गीता फोगाट (कॉमनवेल्थ गेम्स में स्वर्ण पदक विजेता) और बबीता कुमारी (वर्ल्ड रेसलिंग चैंपियनशिप 2012 में कांस्य पदक विजेता) को कोचिंग दी. आमिर के प्रोडक्शन हाउस ने मार्च, 2015 में बिश्नोई को अप्रोच किया था.
बिश्नोई बताते हैं, “आमिर की टीम ने जब पहली बार मुझसे संपर्क किया, तो मैंने सोचा कि कोई मेरी खिंचाई कर रहा है. बाद में जब मुझे फिर से अप्रोच किया गया, तब मुझे संदेह और आश्चर्य हुआ कि कोई एक्टर कुश्ती कैसे कर सकता है. यह एक ऐसा खेल है जिसमें किसी शस्त्र का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता और इसमें चोट लगना लाजमी है. साथ ही कुश्ती के सीन करना, एक पहलवान की तरह अभिनय करना और उसके लिए ट्रेनिंग करना काफी मुश्किल है.
हालांकि जब मैं मुंबई आया और आमिर के जुनून और उनके पकड़ने की ताकत, सीखने के हुनर और कुश्ती की टेक्नीक को देखा, तो मैं गलत साबित हो गया. उन्हें इसी वजह से मिस्टर परफेक्शनिस्ट कहा जाता है.”
उन्होंने बताया, “फिल्म ‘दंगल’ में प्रतियोगिताओं के सीन में किरदार प्रोफेशनल पहलवानों से भिड़ते नजर आएंगे. अभिनेताओं को कुछ कुश्ती दांव-पेचों की महज नकल करते हुए दिखाकर हम दर्शकों को धोखा नहीं देना चाहते थे.”
बता दें कि उम्रदराज पहलवान फोगाट का किरदार निभाने के लिए आमिर ने अपना 30 किलो वजन बढ़ाकर 97 किलो किया था. फिल्म में एक युवा पहलवान का जवानी से उसके 50 साल के होने तक का सफर दिखाया गया है.
निर्देशक इस फिल्म को उसकी युवावस्था से शुरू करना चाहते थे लेकिन आमिर ने पहलवान के मध्यआयु वाले भाग को पहले फिल्माना बेहतर समझा. इसका कारण बताते हुए आमिर ने कहा, “फिल्म के करीब 80 प्रतिशत हिस्से में मैंने एक अधेड़ आदमी को दर्शाया है. मैं उसे पहले निभाना चाहता था क्योंकि अगर मैं युवा भाग को पहले शूट करता और बुढ़ापे को बाद में तो जब फिल्म पूरी होती तो मैं मोटा होता और मेरे लिए बाद में वजन कम करने की कोई वजह या प्रेरणा नहीं होती. ”
आमिर को डेढ़ साल तक ट्रेनिंग देने वाले बिश्नोई फिल्म में जोश भरने के लिए आमिर को क्रेडिट देते हुए कहते हैं, “मैं चिंतित था कि एक 50 साल के ज्यादा वजन वाले शख्स के रूप में वह खुद को चोट पहुंचा सकते थे. लेकिन उन्होंने मुझे गलत साबित किया कि जिद से ही सुपरस्टार बना जा सकता है. ट्रेनिंग के दौरान वह एक स्टंट को दो या तीन बार भी करते थे लेकिन कैमरे के सामने उन्हें रीटेक की जरूरत ही नहीं होती थी.”
बिश्नोई आगे कहते हैं, “मुझे काफी सावधानी रखनी पड़ती थी ताकि उन्हें चोट न लगे. जब वह कूदते थे तो उनके घुटनों में दर्द होता था. अपने रेसलिंग शूज के फीते बांधते समय भारी पेट की वजह से वह सही से सांस नहीं ले पाते थे. उस समय मुझे लगा कि वह एक पहलवान बनने के लिए फिट नहीं हैं लेकिन वह काफी फ्लेक्सिबल थे. उनके मसल्स उनके फैट के पीछे छिपे थे. धीरे-धीरे मुझे अहसास हुआ कि उनमें ताकत है और वह अच्छे से कोऑर्डिनेट कर रहे हैं और कुश्ती के दौरान टेकनीक का सही इस्तेमाल कर रहे हैं.
उनकी पकड़ने की ताकत और कला व हुनर सीखने की स्किल वाकई बेहतरीन थी. वह आज्ञाकारी छात्र भी थे. वह मेरे ट्रेनिंग प्रोग्राम को प्राथमिकता देते थे. वह टेक्नीक को तब तक करने की कोशिश करते थे, जब तक वह सही से नहीं कर लेते थे और एक बार उसे हासिल करने के बाद वह रुक जाते थे. बाद में, युवावस्था के दौरान वजन कम करने के बाद उनके कुश्ती के दृश्य काफी अलग थे.”
आमिर के समर्पण के बारे में बताते हुए बिश्नोई कहते हैं, “उन्होंने ट्रेनिंग सेशन के दौरान कभी कोई नखरा नहीं किया. एक लंबे दिन या चोटों के बाद भी अगर मैं उनसे कुछ दांव-पेचों का अभ्यास करने के लिए कहता था, तो वह बिना सवाल किए या कारण पूछे वैसा करते थे. ”
बिश्नोई बताते हैं कि कैसे आमिर ने स्मोकिंग छोड़ने के लिए उनकी सलाह ली थी. “वह बहुत ज्यादा स्मोक करते थे और एक कोच होने के नाते मुझे यह सही नहीं लगता था क्योंकि इससे उनके स्टेमिना पर असर हो सकता था जो सुबह और शाम की ट्रेनिंग के लिए बहुत जरूरी था. यह उनके अभिनय को भी प्रभावित कर सकता था. उन्होंने ट्रेनिंग और शूटिंग के दौरान तुरंत ही स्मोकिंग छोड़ दी. अगले दिन उन्होंने अपने सिगरेट पैकेट्स मुझे दिए और मुझसे उन्हें कूड़ेदान में डाल देने को कहा. ”
कोच बताते हैं, “शूटिंग शुरू होने से पहले आमिर को 6 महीने से ज्यादा समय के लिए ट्रेनिंग दी गई और शूटिंग के दौरान उनकी ट्रेनिंग जारी रही. इस दौरान उनका शेड्यूल बिल्कुल एक पहलवान जैसा ही था. अगर मुझे कोई दांव पसंद नहीं आया या वह किसी शॉट से खुश नहीं होते थे, तो वह तब तक शूट करते थे, जब तक कि वह परफेक्ट न लगे.”
फिल्म महावीर फोगाट की जिंदगी की कहानी कहती है कि कैसे उन्होंने अपनी बेटियों को प्रशिक्षित करने के लिए ग्रामीण हरियाणा में जाट समुदाय के शासन को चुनौती दी.
बिश्नोई अपने और फोगाट के अनुभव में समानता पाते हैं और कहते हैं, “मैं ‘दंगल’ के किरदार और उसकी बेचैनी से खुद को जोड़ सकता हूं क्योंकि मैं पहलवानों के पारंपरिक परिवार से आता हूं. हमारे परिवार के बुजुर्गों ने ‘सिर्फ पुरुष ’ की परंपरा को तोड़ने का फैसला किया था और अब मैं अपनी भतीजियों को भी ट्रेनिंग दे रहा हूं.” इस वजह से बिश्नोई को लगता है कि यह फिल्म देश में महिला पहलवानों के लिए भी दरवाजे खोलेगी.
बिश्नोई पिछले 34 वर्षों से इस खेल में हैं. वो कहते हैं कि बहुत कम भारतीय महिलाओं को कुश्ती में जाने के लिए प्रोत्साहित करते हैं, खासकर उस ड्रेस की वजह से जो उन्हें पहननी होती है. यह फिल्म इस सोच को भी बदलेगी. उम्मीद है कि लोग अपनी बेटियों को खेल के रूप में कुश्ती को चुनते हुए देखना चाहेंगे.
उन्होंने फिल्म ‘दंगल’ में गीता फोगाट और बबीता फोगाट का किरदार निभा रहीं न्यूकमर्स फातिमा सना शेख और सान्या मल्होत्रा को भी प्रशिक्षण दिया है. जब आमिर की फिल्म ‘दंगल’ की तैयारी के लिए फातिमा और सान्या को बिश्नोई के पास ट्रेनिंग के लिए भेजा गया था, तब वह इस साल अगस्त में हुए रियो ओलिंपिक्स के लिए महिला पहलवानों को तैयार कर रहे थे.
हालांकि यह केवल एक फिल्म के लिए था. लेकिन नेशनल कुश्ती कोच चाहते थे कि कैमरे पर उनके सभी दांव विश्वसनीय लगें. बिश्नोई ने फातिमा और सान्या को फोगाट बहनों वाली कसरत ही कराई.
बिश्नोई बताते हैं, “दोनों के लिए भरपूर ताकत लाना, कुश्ती के दांव-पेच सीखना और अपने दिमाग व शरीर के सही कोऑर्डिनेशन के अनुकूल बनना जरूरी था, क्योंकि यह एक पहलवान के लिए रिंग के अंदर बहुत महत्वपूर्ण होता है.”
इन दोनों युवा अभिनेत्रियों के बारे में वह बताते हैं कि फातिमा अपनी कुश्ती टेक्नीक के साथ बेहतरीन थीं. उनकी सीखने की क्षमता अच्छी थी लेकिन उनमें शक्ति नहीं थी और उनमें वो शक्ति लाने में सिर्फ 6 महीने लगे जो कि एक पहलवान को चाहिए. वहीं सान्या एक बेले डांसर हैं जिससे उनकी बॉडी बहुत फ्लेक्सिबल थी.
चूंकि आमिर को उनके पहलवान के किरदार के लिए दो अलग तरह की बॉडी बनाने की जरूरत थी. उन्होंने सितंबर के अंत में महेश भट्ट के बेटे राहुल को ट्रेनर रखा. आमिर, राहुल को उनके बचपन से जानते हैं, जब वह अपने डैड की फिल्म ‘दिल है कि मानता नहीं’ के सेट पर आते थे. इस फिल्म में आमिर ने मुख्य किरदार निभाया था. अब राहुल मुंबई के बेहतरीन फिजिकल ट्रेनर्स में से एक हैं.
आमिर ने पहले अपने किरदार के 45 साल वाले भारी लुक के लिए राहुल से ट्रेनिंग ली. उनके बाद उन्होंने 25 साल का दिखने के लिए ट्रेनिंग ली. आमिर के दोनों ही लुक्स के लिए राहुल ने उन्हें बहुत सख्त और केंद्रित तरीके की कसरत कराई.
अपनी खुद की चुनौती के बारे में राहुल बताते हैं, “मुझे अपना होमवर्क अच्छे से करना होता था क्योंकि आमिर कुशलता चाहते थे और जब वह पूरी तरह आश्वस्त हो जाते थे, तभी वह सरेंडर करते थे.”
राहुल आगे कहते हैं, “हमने कार्बोहाइड्रेट्स कम नहीं किए क्योंकि तब वह हर समय खाने के बारे में सोचते थे. इसके साथ ही उनके एक्टिविटी लेवल को देखते हुए उन्हें ताकत की जरूरत थी. ”
आमिर की डाइट में हेल्दी खाने के साथ ब्रेड और पोहा भी शामिल थे. राहुल ने 5 महीने के समय में आमिर को युवा फोगाट का किरदार निभाने के लिए 30 किलो वजन घटाने में भी मदद की.
आमिर के डेली रुटीन के बारे में राहुल बताते हैं कि आमिर का दिन अमूमन सुबह साढ़े 4 बजे कसरत के साथ शुरू होता था जिसमें कंपाउंड मूवमेंट और कार्डियोवस्कुलर एक्टिविटीज होती थीं.
राहुल बताते हैं, “हम सुबह और शाम दोनों समय वर्कआउट करते थे. इसके अलावा एक घंटे की कुश्ती प्रैक्टिस भी होती थी. इसके साथ ही आमिर स्क्वाश और टेनिस भी खेलते थे."
राहुल ने फंक्शनल मूवमेंट के साथ वेट ट्रेनिंग भी जोड़ी थी जिसके अद्भुत परिणाम सामने आए. चीजों को फैंसी बनाने की बजाय सिंपल रखने वाले राहुल कहते हैं, “आमिर को सिर्फ दिखाने के लिए अपनी बॉडी बनानी थी. उनके मसल्स को बड़ा दिखाने के लिए हम उन्हें 6 से 12 रेप्स के साथ एक्सरसाइज के कई सेट्स कराते थे.”
राहुल कहते हैं, “हम चीजों को वास्तविक रखना चाहते थे और ऐसा कुछ नहीं करना चाहते थे जिससे उन्हें चोट लगती और पैसा व समय बर्बाद होता. हम एक्सरसाइज और न्यूट्रिशन के बेसिक्स पर ही कायम रहे. हमने मनोवैज्ञानिक रास्ता भी लिया कि क्या है जो दिमाग सोच सकता है और शरीर हासिल कर सकता है.”
इसी बीच, कुछ महीनों से यह संदेह भी था कि इस तरह का बदलाव बिना स्टेरॉइड्स के संभव नहीं है. राहुल पूछते हैं, “जब हमें रिजल्ट के लिए एक स्ट्रिक्ट डाइट प्लान तक की जरूरत नहीं पड़ी, तो हमें स्टेरॉइड्स की क्या जरूरत थी?”
राहुल कहते हैं, “आमिर में परिवर्तन कड़ी मेहनत और दृढ़ता का नतीजा था. इसका कोई और तरीका नहीं है. आमिर ने कभी स्टेरॉइड्स का इस्तेमाल नहीं किया. एक आम आदमी भी यही नतीजे उतने ही समय में हासिल कर सकता है, जितने में आमिर ने किए. हालांकि यह याद रखना होगा कि आमिर के पास दो ट्रेनर्स, दो शेफ्स, दो मालिश करने वाले और आठ बॉडीगार्ड्स थे. एक आम आदमी के पास शायद यह सब न हो.”
बिश्नोई ने भी उन आलोचकों को जवाब दिया है जो कह रहे थे कि आमिर स्टेरॉइड्स के इस्तेमाल से इतने कम समय में अपने पहलवान के किरदार के लिए फिट हुए हैं. बिश्नोई कहते हैं, “स्टेरॉइड्स प्रतिबंधित दवाईयां हैं. वर्ल्ड ऐंटी-डोपिंग एजेंसी और नेशनल ऐंटी-डोपिंग एजेंसी उन खिलाड़ियों को पकड़ती है और सजा देती है जो स्टेरॉइड्स का इस्तेमाल करते हैं. स्टेरॉइड्स आपके शरीर को नुकसान पहुंचाते हैं.
आमिर के ट्रेनिंग प्रोग्राम का स्टेरॉइड्स से कोई लेना-देना नहीं है. यह सही डाइट का ही नतीजा है. आमिर ने अपनी पूरी फिटनेस उतनी कैलोरीज से हासिल की है जितनी अतिरिक्त बॉडी फैट को घटाने में जरूरी होती हैं. किसी शख्स का फिटनेस लेवल उसकी ट्रेनिंग और डाइट पर निर्भर करता है. हर आदमी आमिर खान जैसी बॉडी बना सकता है. मैंने आमिर को स्टेरॉइड्स लेते हुए नहीं देखा. वह उन लोगों में से नहीं है, जो अपनी जिंदगी में शॉर्टकट लेते हैं.”
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