जया बच्चन ने फिल्मों का रुख ऐसे समय में किया था, जब शर्मिला टैगोर, मुमताज और हेमा मालिनी जैसी अभिनेत्रियां अपने ग्लैमर से दर्शकों के दिलों में खास जगह बना चुकी थीं. जया की मासूमियत और उनकी सादगी ही ऐसी थी जिसकी बदौलत वो हिंदी सिनेमा में अपनी जगह बनाने में कामयाब रहीं, लेकिन इसके लिए उन्हें संघर्ष के कड़े दौर से गुजरना पड़ा.
जया भादुड़ी का जन्म जबलपुर में 9 अप्रैल, 1950 को हुआ. मशहूर पत्रकार तरुण कुमार भादुड़ी उनके पिता थे. पुणे स्थित फिल्म इंस्टीट्यूट से एक्टिंग का डिप्लोमा करने के बाद जया भादुड़ी अपना करियर बनाने के संघर्ष में जुट गई.
फिल्मी सफर
साल 1963 में प्रख्यात फिल्मकार सत्यजीत रे ने उन्हें अपनी बंगाली फिल्म 'महानगर' में छोटा सा रोल दे दिया. मगर रे की प्रतिष्ठा भी जया के करियर को आगे बढ़ाने में सहायक साबित नहीं हुई. इसके बाद बंगाली अभिनेता उत्तम कुमार ने उन्हें 'धान्यी मेये' में एक बड़ा रोल दिया, लेकिन मामला ज्यों का त्यों रहा. जया भादुड़ी को हिंदी फिल्मों में अपना करियर शुरू करने के लिए लंबा इंतज़ार करना पड़ा.
जया ऐसे बनी 'गुड्डी'
हृषिकेश मुखर्जी उन दिनों फिल्म 'गुड्डी' क निर्माण की योजना बना रहे थे. जिसकी प्रेरणा उन्हें अपनी पोती से मिली, जो फिल्म स्टारों क पीछे पागल थी. मुखर्जी ने गुलज़ार को इसकी कहानी लिखने का जिम्मा सौंपा. उसी दरम्यान गुलज़ार ने किसी पार्टी में डिंपल को देखा और तय किया कि 'गुड्डी' के किरदार के लिए डिंपल से ज्यादा और कोई उपयुक्त नहीं हो सकता.
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एक अल्हड, शोख, ग्लैमर की दीवानी लड़की की भूमिका में 18 वर्षीय डिंपल खूब फब सकती थीलेकिन डिम्पल ने फिल्म करने से मना कर दिया. इसी बीच मुखर्जी ने कहीं जया भादुड़ी को देखा तो 'गुड्डी' की योजना फिर से परवान चढ़ने लगी. उन्हें जब मालूम हुआ कि जया उनके पत्रकार मित्र तरुण भादुड़ी की बेटी है तो उन्होंने जया को 'गुड्डी' क रूप में फाइनल कर दिया. 'गुड्डी' 1971 में प्रदर्शित हुई और सफल रही.
इस फिल्म की सफलता क साथ ही जया भादुड़ी की गाडी चल पड़ी. 'उपहार', 'अभिमान' जैसी फिल्मों ने उन्हें बुलंदी पर पहुंचा दिया. इसी बीच अमिताभ के साथ उनका रोमांस शुरू हुआ, जो साल 1973 में शादी में बदल गया. इस तरह वो जया भादुड़ी से जया बच्चन बन गई. 1981 में जया बच्चन ने अमिताभ और रेखा के साथ 'सिललिसा' फिल्म की. इस फिल्म के बाद जया ने फिल्मों दूरी बना ली.
शुरू हुई दूसरी पारी
फिल्म 'सिललिसा' रिलीज होने के 17 साल बाद वह 'हजार चौरासी की मां' फिल्म में नजर आयीं. यह एक तरह से उनकी दूसरी फिल्मी पारी थी. इसके बाद जया ने 'फिजा', 'कभी खुशी कभी गम', 'कोई मेरे दिल से पूछे', 'द्रोण' और 'लागा चुनरी में दाग' जैसी फिल्में कीं.
ऑफबीट फिल्मों की नायिका ‘जया’
अपने चालीस साल के कॅरियर में जया ने लगभग पचास फिल्में कीं. वह 1971 से लेकर 1981 तक सबसे ज्यादा सक्रिय रहीं. जया ऑफबीट फिल्म बनाने वाले निर्देशकों की पंसदीदा नायिका थीं. 'परिचय', 'शोर', 'कोशिश', 'अनामिका', 'कोरा कागज', 'मिली', 'चुपके चुपके' जैसी फिल्मों में जया ने दिखाया कि वह अलग तरह की अभिनेत्री हैं.
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