ये वक्त का ही हेरफेर है, जिसने एक बावर्ची को करोड़ों के दिलों पर राज करने वाला एक सुपरस्टार बना दिया. ये भी इत्तेफाक की ही बात है कि आज जब अक्षय 51 साल के हो गए हैं, उनकी हालिया रिलीज फिल्म गोल्ड दर्शकों को खूब भा रही है.
बड़े पर्दे पर गोल्ड की कामयाबी अपने आप में अक्षय कुमार के बारे में बहुत कुछ कहती है. ये बताता है कि कैसे वक्त ने एक मामूली इंसान को खालिस सोना बना दिया है. वो सोना जो आज की तारीख में बॉक्स ऑफिस पर उनकी पहचान बनने के साथ-साथ डिस्ट्रीब्यूटरों और एक्जीबीटरों की जमात के लिये सफलता की गारंटी का रुप ले चुका है. हिट पर हिट फिल्मों की फेहरिस्त लगाने वाले अक्षय कुमार को आज के युग का सबसे विश्वसनीय सितारा कहे तो ये अतिशयोक्ति नही होगी.
मॉडलिंग से की थी शुरूआत
1991 में मॉडलिंग की दुनिया में अपने हाथ आजमाने अक्षय मुंबई तो जरूर आ गए थे लेकिन स्टारडम अभी भी दूर था. उसी वक्त उनको ये एहसास हुआ कि माडलिंग से कहीं ज्यादा पैसा शोबिज की दुनिया में है. लेकिन जब ऊपर वाले का हाथ किसी के सर पर होता है तो सफलता मिलने मे देर भले ही लग जाती है लेकिन मिलती जरूर है.
अक्षय के लिए फरिश्ता बने उनके खुद के मेकअप दादा जिन्होंने अक्षय को बताए बिना उनके मॉडलिंग का पोर्टफोलियो निर्देशक प्रमोद चक्रवर्ती को भेज दिया था. कुछ दिनों के बाद उनकी पहली फिल्म सौगंध उनके हाथ में थी. बहुतों को कम पता होगा कि अक्षय की शुरूआत वाकई में महेश भट्ट की फिल्म से हुई थी. महेश भट्ट निर्देशित फिल्म आज जिसमें कुमार गौरव मुख्य भूमिका में थे, उस फिल्म में अक्षय ने एक छोटी सी भूमिका निभाई थी. कहने की जरुरत नही है कि फिल्म में उनका कोई भी डायलॉग नहीं था.
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पैसे कमाने के लिए कर रहे थे कोई भी फिल्म
अगर आप अक्षय की शुरुआती फिल्मों पर गौर करेंगे तो एक पैटर्न देखने को मिलता है. और वो पैटर्न था सिर्फ फिल्में करने का क्योंकि अक्षय का एकमात्र उद्देश्य उन दिनों जल्द से जल्द ज्यादा फिल्में करके ज्यादा पैसे कमाने का था. वजह भी बड़ी साफ थी क्योंकि घर मे तंगहाली का माहौल था. डांसर, सौगंध, मि बांड जैसी फ्लाप फिल्में उन्होंने लाइन से दी.
ये तो उनकी किस्मत अच्छी थी जिसकी वजह निर्देशक अब्बास मस्तान की फिल्म खिलाड़ी में उनको लीड हीरो का काम मिल गया. फिल्म के सुपरहिट होने का फायदा ये हुआ कि अक्षय को और मौके मिलने लगे. लेकिन उसके बाद भी बात वही की वही रही- ढाक के तीन पात.
खिलाड़ी ने खोले सफलता के दरवाजे
यहां पर एक किस्सा बताना जरूरी हो जाता है कि कैसे किस्मत उनके ऊपर मेहरबान थी. जिस साल फिल्म खिलाड़ी के लिए उनको साइन किया गया था उसी साल उन्होंने फिल्म जो जीता वही सिकंदर के लिए अपना ऑडिशन दिया था. ऑडिशन लेने वाली और कोई नही बल्कि उनकी किसी जमाने में दोस्त रह चुकीं दोस्त फराह खान थीं जिन्होंने उनको दीपक तिजोरी के किरदार के लिए नाकाबिल समझा.
शुक्र था कि उनको बचाने के लिए उनके पास खिलाड़ी था. खिलाड़ी की वजह से उनको ये फायदा हुआ कि वो कुछ और फ्लॉप फिल्में दे सकते थे. इस बार सिलसिला चला 8 फ्लॉप फिल्मों का लेकिन उसके बाद की एक फिल्म ने उनका रास्ता पूरी तरह से खोल दिया. वो फिल्म थी राजीव राय की मोहरा जिसमें उनके काम की जबरदस्त प्रशंसा हुई. लेकिन उस वक्त भी अक्षय खिलाड़ी और एक्शन के टैग में फंसे हुए थे. एक अभिनेता का सील उनके करियर पर लगना बाकी था. अभिनेता बनने की हर कोशिश उनकी नाकाम हो रही थी.
अक्षय में जगा भरोसा
आखिरकार वो दरकार भी उनकी पूरी हुई 8 सालों के बाद जब उनकी दो फिल्में संघर्ष और जानवर एक के बाद सिनेमाघरों में रिलीज हुई. और इसके तुरंत बाद जब प्रियदर्शन की हेराफेरी और अब्बास मस्तान की अजनबी आई तब सच में लगा कि खान के साम्राज्य पर किसी ने सेंध मार दी हो.
ऐसा लगा कि फिल्म जगत में अक्षय कुमार धीरे-धीरे सफलता के पर्याय बनते जा रहे हैं. निर्माता की भीड़ उनके घर के सामने इकट्ठा होने लगी. अक्षय कुमार के फिल्मी करियर में एक अलग बदलाव आया और इस बार वो बेहद ही सुखमय था. बदलाव ये था कि फिल्म जगत के जाने माने निर्देशकों की नजर में वो आने लगे. उनको लगने लगा कि उनको एक और सितारा मिल गया है जिसके अंदर खान वाली ही खूबियां हैं.
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खान्स को देने लगे टक्कर
इसके चलते आने वाले समय में अक्षय राजकुमार संतोषी, विपुल शाह, विक्रम भट्ट और डेविड धवन जैसे बड़े निर्देशकों के साथ काम करने लगे. लेकिन 2007 का साल अक्षय के नाम पूरी तरह से रहा जब एक साल के अंदर उन्होंने नमस्ते लंदन, हे बेबी, भूल भुलैया और वेलकम जैसी फिल्में एक के बाद एक करके मानो धमाका कर दिया हो. लेकिन आमिर खान, शाहरुख खान और सलमान खान की सिंहासन डोल जाये ये वक्त अभी भी नही आया था. उसके लिए उनको अगले साल तक का इंतजार करना पडा.
जब सिंह इज किंग रिलीज हुई थी, तब उस वक्त उस फिल्म ने कुछ ऐसा कर दिखाया जिसकी किसी को उम्मीद नही थी. फिल्म के पहले तीन दिन का कलेक्शन चमत्कार था. उन दिनों 100 करोड़ का क्लब नहीं बना थीा. 100 करोड़ का क्लब फिल्म गजनी से बनने वाला था जो सिंह इज किंग के कुछ महीनों बाद रिलीज हुई थी. बहरहाल, अपने पहले वीकेंड में जब फिल्म में 29 करोड़ का कारोबार किया जब लोगों ने दांतो तले उंगलिया दबा ली थी.
आश्चर्य की वजह इसलिए थी क्योंकि इस फिल्म ने शाहरुख खान की ओम शांति ओम के पहले वीकेंड का रिकॉर्ड तोड़ दिया था जिसने 26 करोड़ कमाए थे. ये वाकई में अचरज वाली बात थी क्योंकि 26 करोड़ की रिकॉर्ड तोड़ने वाली फिल्म आमिर या सलमान की ना होकर अक्षय कुमार की थी और यही वो वक्त था जब अक्षय की गिनती खान्स के साथ की जाने लगी.
कमाई की गारंटी हैं अक्षय
पिछले कुछ सालों में अक्षय ने लोगों के इस विचार को और भी पुख्ता कर दिया है. एयरलिफ्ट, हाउसफुल सीरीज, रूस्तम, जॉली एलएलबी-2 और टॉयलेट-एक प्रेमकथा उनकी पांच बतौर हीरो के रोल में लगातार ऐसी फिल्में थी, जिसने बॉक्स ऑफिस पर 100 करोड़ का आंकड़ा हर बार छुआ और जता दिया कि सही मायने में बॉक्स ऑफिस के शहंशाह वही हैं.
महज 30 प्रतिशत मेहनत और 70 प्रतिशत किस्मत में भरोसा करने वाले और 4 बजे तड़के उठने वाले अक्षय अभी भी आराम करने के मूड में नही हैं और ये बात साबित होती है उनकी आने वाली फिल्मों को देखकर.
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एक ऐसी फिल्म इंडस्ट्री जहां हर कोई दुहाई देता है कि फिल्मों को बनाने का ढर्रा पुराने स्टाइल पर ही चला आ रहा है, उसको अक्षय हर कदम पर मात दे रहे हैं. अगर निर्देशक आर बाल्की की फिल्म पैडमैन तमिलनाडु के अरुणाचलम मुरुगुनाथम के बारे में है, तो वहीं दूसरी ओर रोबोट-2 में वो बतौर विलेन सुपरस्टार रजनीकांत के लिए मुसीबतें खड़ी करते नजर आने वाले हैं.
अगर कोई वेराइटी की बात करे तो अक्षय निसंदेह उसके मुंह पर तमाचा मार सकते हैं. कहने की जरुरत नही कि सही मायनों में अक्षय का गोल्डन पीरियड अब शुरु होने वाला है.
(यह लेख पूर्व में भी प्रकाशित हो चुका है)
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