शूजित सरकार की अक्टूबर को देखकर जिस बात का एहसास सबसे पहले होता है वो ये है कि शूजित अब अपनी फिल्मों के मामले में बेहद परिपक्व हो गए हैं.
यह बात अब पूरी तरह से नजर आती है. अक्टूबर उनकी किसी भी पहली फिल्म की तरह नहीं भले ही इसका जॉनर एक लव स्टोरी का है. फिल्म में एक सीन है जब फिल्म की हीरोइन होटल की चौथी मंजिल से अचानक गिर जाती है जिसके बाद फिल्म की दिशा बदल जाती है.
अगर इस सीन का फिल्मांकन कोई और डायरेक्टर करता है तो इस बात की मुझे पूरी आशंका है कि उसका ट्रीटमेंट काफी मैलोड्रामैटिक तरीके से होता लेकिन जिस तरीके से बिना मेलोड्रामा, बिना म्यूजिक के शूजित ने इस सीन को फिल्माया है वो इस बात की गवाही देता है कि शूजित के मुकाबले में फिलहाल कोई दूसरा नहीं है.
अक्टूबर एक अनुभव है जिसे आप महसूस करेंगे. इसको देखने के बाद आपका दिल हल्का लगेगा और ऐसा महसूस होगा कि जिंदगी के कुछ पन्ने मैंने अभी-अभी पढ़े हैं. कम शब्दों में कहें तो अक्टूबर के एक शानदार फिल्म है.
होटल के ट्रेनी की कहानी
अक्टूबर की कहानी की शुरुआत एक होटल से होती है जहां पर कुछ एक होटल मैनेजमेंट के छात्र अपनी ट्रेनिंग कर रहे हैं. उन्हीं छात्रों के समूह का हिस्सा है डैन जिसका सोचने का तरीका बाकियों से थोड़ा अलग है और इसलिए आए दिन उसकी मामूली गलतियों पर उसे सजा भुगतनी पड़ती है.
कभी उसका तबादला लांड्री में हो जाता है तो कभी क्लीनिंग जॉब के लिए. उन्हीं ट्रेनीज के समूह में शिउली भी है जो अपने काम को लेकर कभी भी किसी को नुक्स निकालने का मौका नहीं देती है. एक दिन पार्टी के दौरान जब शिउली होटल के चौथे मंजिल से गिर जाती है तब सब कुछ बदल जाता है खासकर कि डैन की जिंदगी.
डैन का काफी वक्त हॉस्पिटल में बीतने लगता है और एक वक्त ऐसा भी आता है जब होटल में काम के दौरान मारपीट की वजह से डैन को वहां से निकाल दिया जाता है. डैन उसके बाद रुख करता है मनाली के रिसोर्ट का और जहां पर उसे बतौर मैनेजर नौकरी मिल जाती है. जब वह पर शिउली की मां से फोन पर बातचीत के दौरान कुछ और चीजों का पता चलता है तब डैन वापस दिल्ली आने का निश्चय करता है.
मसाला फिल्मों से हटकर है अक्टूबर
अगर अक्टूबर की कहानी पर ध्यान दें तो यह उन गिनी चुनी फिल्मों की श्रेणी में शामिल होगी जिसके स्क्रिप्ट को पर्दे पर उतारने में खासा मुश्किल हुई होगी. अक्टूबर वाकई में जिंदगी का एक टुकड़ा है जो किसी के साथ भी हो सकता है और इसकी शाबाशी इसी बात में है कि शूजित सरकार ने इसका ट्रीटमेंट वैसे ही किया है. जाहिर सी बात है ट्रीटमेंट देना ही अपने आप में एक बड़ी बात और इसको क्रैक करने के लिए शूजित धन्यवाद के पात्र हैं.
इस फिल्म में शूजित ने कहीं से भी किसी तरह का कोई समझौता नहीं किया है. अक्टूबर यूरोपियन सिनेमा के काफी करीब आती है. फिल्म में जिस तरह से म्यूजिक का इस्तेमाल किया गया है वो भी काबिले तारीफ है. पूरी फिल्म में आपको बैकग्राउंड म्यूजिक ही सुनने को मिलेगा ना कि कोई गाना. इस तरह का निर्णय लेना अपने आप में एक साहसी निर्णय रहा होगा निर्माता के लिए लेकिन यह भी सच है की उनका यह निर्णय पूरी तरह से सही था.
वरुण धवन की बेस्ट एक्टिंग
अभिनय की बात करें तो इस फिल्म में एक भी ऐसा किरदार नहीं है जिसके पांव किसी सीन में गलत जगह पर पड़े हों. सभी का फिल्म में बेहद सधा हुआ अभिनय है. शुरुआत वरुण से करते हैं. इस बात में कोई शक नहीं कि वरुण के करियर का यह सबसे मुश्किल रोल कहा जाएगा यह अलग बात है कि जो हिदायत उनको शूजित से इस फिल्म के लिए मिली थी वो ये थी कि उनको इस फिल्म में एक्टिंग नहीं करनी थी.
बहरहाल जो भी हो वरुण के करियर का अब तक ये सबसे उम्दा अभिनय का नमूना है. सोचने पर यह एक कठिन रोल लगता है क्योंकि इस तरह के किरदार को लिखना थोड़ा जटिल काम है. इस फिल्म के बाद एक बात तो पक्की है की ये फिल्म अकेले ही वरुण के फिल्मी करियर को पांच साल और आगे कर देगी.
नींद ना पूरी होने वाली आंखों को जिस तरह से उन्होंने फिल्म में चित्रित किया है वो बेहद ही कमाल का है. वरुण का किरदार ऐसा है फिल्म में जिसको लिखने की बजाय महसूस ज्यादा किया जा सकता है. बनिता संधू का फिल्म में ज्यादातर वक्त हॉस्पिटल के बिस्तर पर बीतता है लेकिन उनका अभिनय उनकी आंखों से निकलता है. अपनी पहली फिल्म से ही उन्होंने बता दिया है की बॉलीवुड को एक अच्छी अभिनेत्री मिल गई है. गीतांजली राव फिल्म में बनिता की मां के किरदार में है और उनका काम भी बेहद शानदार है.
जूही चतुर्वेदी के कलम की धार जबरदस्त है
अक्टूबर की कहानी एक ट्रैजेडी की कहानी है लेकिन जूही चतुर्वेदी की कलम की वजह से इसमें कॉमेडी भी भरपूर दिखाई देती है. आप वरुण के हालात पर रोते हैं लेकिन उन्हीं हालात पर आपको हंसी भी आती है. यह अक्टूबर की ही खूबी है कि इस फिल्म के बारे में आप शब्दों से ज्यादा कुछ बयान नहीं कर सकते हैं.
आपको यह महसूस होगा कि फिल्म के किरदार आपके बगल में बैठे हुए हैं. अक्टूबर अगर सफलता के कदम चूमती है तो एक बात पक्की है कि इससे शूजित सरकार और उनके जैसे बाकी निर्देशकों को हौसला मिलेगा एक अलग कहानी कहने की मंशा रखते हैं जो बॉलीवुड के लिए काफी अच्छा कहा जाएगा.
लेकिन एक तबका ऐसा भी हो सकता है जो शायद नाच गाने या फिर फिल्म के बेहद ही सजीव चित्रण से नाक भौं सिकोड़े. लेकिन बात वहीं अटक जाती है कि आखिर कब तक हम वही चीजें देखते रहेंगे जो हम सालों से देखते रहे हैं. शूजित सरकार ने कुछ नई चीज परोसी है जाइए जाकर इसका मजा लीजिए. ये बेहद स्वादिष्ट है बिल्कुल घर के खाने की तरह.
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