आमतौर पर बेहद शांत और सौम्य दिखने वाली विद्या बालन से जब आप बात करते तो बिल्कुल नहीं लगता कि ये आपकी पहली मुलाकात है या आप मिलते रहे हैं.
उनकी मुस्कान हमेशा आपसे बात करती रहती है. विद्या की नई फिल्म बेग़मजान 14 अप्रैल को रिलीज हो रही है. फिल्म में वह एक वेश्यालय चलाती हैं.
विद्या ने जिस तरह के दमदार किरदारों को अभी तक निभाया है उसे देख कर लगता है कि वो बड़ी ही दमखम वाली महिला रही होंगी.
लेकिन विद्या फ़र्स्टपोस्ट हिंदी की संवाददाता रूना आशीष को बता रही हैं कि उनके जीवन मे वो भी समय था जब वो मंदिरों में जा कर साईं बाबा के सामने रो देती थीं.
आपने जिंदगी का वो समय भी देखा है जब आपको अनलकी कहा गया.
हां, हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में आने से काफी पहले की बात है. मुझे मायूसी निराशा महसूस होती. थी मैं रोती रहती थी. बहुत गुस्सा आता था.
मम्मी से बहुत झगड़े होते थे. मेरी मां ने भी मुझे कहा कि बेटा हो सकता है कि फिल्में आपके लिए नहीं बनी हो.
उनको एक डर था कि इस इंडस्ट्री में हमारा कोई जानने वाला नहीं है. वो कहती थीं पढ़ाई कर लो. एक्टिंग भी करना है तो कर लो. जिस दिन ऐक्टिंग की बात बननी होगी वो भी हो जाएगा.
वैसे भी मां से झगड़ा करना सबसे सेफ होता है ना!. मैं चैंबूर के साई बाबा मंदिर में मैं जाती थी. खूब प्रार्थना करती थी और रोती थी.
मुझे लगता था कि ऐक्टिंग छोड़ दूं. लेकिन फिर अगली सुबह उठकर खुद को बोलती थी कि मुझे ऐक्टर ही बनना है.
आज आप फिल्म इंडस्ट्री के बड़े नामों में शामिल हैं. क्या आप उस दिन को याद करती हैं जब आपको बिना बताए एक फिल्म से निकाल दिया गया था?
अाज भी जब सोचती हूं तो लगता है काफी वक्त बीत गया. फिर कभी सोचती हूं कि क्या वो समय इतना बुरा था. दूसरे पल सोचती हूं कि मैं कितने बुरे दौर से निकली हूं.
जब लोग कहते हैं कि आपने बहुत स्ट्रगल किया. तो मैं जवाब देती हूं नहीं किया. फिर वो लोग पूछते हैं साउथ में किया. तब जाकर मुझे याद आता है.
हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में कब लगा कि यह मुश्किल वक्त है?
शायद 2007-2008 में. इसके पहले तो लोग सिर्फ तारीफों के पुल बांध रहे थे. उसके बाद मेरी आलोचना शुरू हो गई.
मेरे कपड़ों, वजन और फिल्मों को लेकर लोग बातें करने लगें. तब लगने लगा कि शायद अब वो हनीमून पीरियड खत्म हो चुका है.
फिर उस समय से कैसे बाहर निकलीं?
मुझे याद है मेरी मम्मी ने कहा कि वजन के लिए आलोचना कर रहे हैं तो वो तो तुम कभी भी कम कर लोगी.
सिर्फ तुम्हें तय करना है. मेरे जीजाजी ने कहा कि तुम इंडस्ट्री में ऐक्टिंग करने आई हो तो वो ही करो. अच्छे अच्छे रोल मिल रहे हैं ना बस फिर क्यों फिक्र कर रही हो.
जब भी मैं घर से बाहर निकलती थी मेरी बहन पूछती थी कि क्या पहन कर जा रही हो? कपड़ों को लेकर मेरी इतनी आलोचना हो रही थी कि मेरी बहन मुझे इन सबसे बचा लेना चाहती थी.
वो मुझे डांटती थी कि हर बार जब कोई तुम्हें कुछ भी कहता है तो तुम्हें गुस्सा क्यों नहीं आता? हर बात पर तुम हंस क्यों देती हो?
वो चाहती थी कि मैं जो फील करूं उसे बयां कर दूं. तब लगता था कि शायद सब खत्म हो गया.
शायद मेरा सफर यहीं तक का है. लेकिन फिर अगले दिन उठ कर मैं सोचती थी चलो ये ही करते हैं.
सिद्धार्थ आपके इस नेचर को कैसे सपोर्ट करते हैं?
मेरी शादी के बाद मेरी कुछ फिल्में नहीं चलीं. मैं रोती हूं चीखती हूं. शिकायतें करती हूं. वो सुनते हैं.
फिर बड़ी शांत अवाज में कहते हैं कि ये दुनिया का अंत नही है. वो मुझे रोने देते हैं. फिर आराम से कहते हैं कि तुम जो कर रही हो वो अच्छा कर रही हो.
आपके घर में एक साथ कई कलाकार एक छत के नीचे रहते हैं.
हां सही कहा. मेरी सास सलोमी रॉय कपूर वेस्टर्न डांसर हैं. उनके कई स्टूडेंट्स मुझे भी आ कर कहते हैं कि उन्हें मेरी सास ने सिखाया है.
सिद्धार्थ के नाना भारत में कई डांस फॉर्म विदेश से लेकर आए. मेरे देवरों को तो आप जानती ही हैं.
फिर मेरी देवरानी शॉयोंती रॉय कपूर भी सिरेमिक ऑर्टिस्ट हैं. सभी पूछते हैं कि कैसे निभाते हैं एक दूसरे के साथ. तो मैं कह देती हूं कि हम एक दूसरे की सफलता का जश्न मना लेते हैं.
आपकी फिल्म बेग़मजान बंगाली में बनी फिल्म राजकाहिनी से प्रेरित है
हां बेग़म जान इस बंगाली फिल्म पर आधारित है. उसे भी श्रीजीत मुखर्जी ने ही बनाया था. लेकिन हिंदी रूपांतरण के लिए कह सकती हूं कि इसमे श्रीजीत ने नया रंग भरा है.
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