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मूवी रिव्यू ‘बेफिक्रे’: ठंडे चुंबनों में लिपटी एक कमजोर कहानी

फिल्म में गीत-संगीत बेहतर लेकिन कहानी सुनी-सुनाई सी लगती है

Updated On: Dec 09, 2016 09:46 PM IST

Ravindra Choudhary

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मूवी रिव्यू ‘बेफिक्रे’: ठंडे चुंबनों में लिपटी एक कमजोर कहानी

पिछले हफ्ते ‘कहानी’ आई थी. इस हफ्ते कहानी नहीं आई. जी हां! ‘बेफिक्रे’ में कोई कहानी नजर नहीं आती. कुल मिलाकर किस्सा यूं है कि धरम गुलाटी (रणवीर) पेरिस में ‘किस’ करने...मेरा मतलब...स्टैंड-अप कॉमेडी करने आया हुआ है. एक पार्टी में लड़की ढूंढने पहुंचे धरम को शायरा (वाणी) मिलती है. एक-दो मुलाक़ात के बाद दोनों में प्यार...नहीं...नहीं...सेक्स हो जाता है, जिसके बाद दोनों लिव-इन में रहने लगते हैं और कहते हैं कि हम कभी ‘आईलवयू’ नहीं बोलेंगे.

फिर दोनों अलग हो जाते हैं. लेकिन एक्चुअली नहीं होते क्योंकि ब्रेक-अप के बाद दोनों ‘अच्छे दोस्त’ बन जाते हैं. फिर अपने ब्रेक-अप की एनिवर्सरी मनाते हैं (बॉलीवुड में कुछ साल पहले शुरू हुआ ‘ब्रेक-अप सेलिब्रेशन’ का सिलसिला अब ‘ब्रेक-अप की एनिवर्सरी’ मनाने तक आ पहुंचा है.)

खैर, फिल्म के अंत में जब दोनों किसी और से शादी करने वाले होते हैं, तभी उन्हें एहसास होता है कि हम तो एक-दूसरे से प्यार करते हैं.

पुरानी सी लगती है स्टोरी

पहले सुना-सुना और देखा-देखा हुआ सा लगा ना! मौज-मस्ती करता बिंदास जोड़ा, कन्फ्यूजन, ‘जस्ट फ्रैंड्स’, ब्रेक-अप और लास्ट सीन में- आईलवयू! दी एंड!

आदित्य चोपड़ा ने 'रब ने बना दी जोड़ी' के आठ साल बाद डायरेक्टर की कुर्सी संभाली लेकिन निराश ही किया. सिर्फ नंग-धड़ंग, बेडरूम और किसिंग सीन्स डालने भर से ही आज के जमाने की लव-स्टोरी नहीं बन जाएगी. उसके लिए कोई कहानी भी तो चाहिये.

बेहतर है संगीत

फिल्म में कहानी बेशक न हो लेकिन गीत-संगीत अच्छा है, जो गुनगुनाने और झूमने पर मजबूर करता है. रणवीर भी दिल्ली के मस्तमौला और बेफिक्र लौंडे के किरदार में स्वाभाविक लगे हैं. उन्होंने कैमरे के सामने भी वही किया है, जो अपनी असल जिंदगी में करते हैं लेकिन उनके और वाणी के बीच में केमिस्ट्री नहीं सिर्फ फिजिक्स ही दिखती है. वाणी को देखकर नेहा धूपिया की याद आती है. पेशे से मॉडल रहीं वाणी ज़्यादातर सीन्स में कैट-वॉक करती ही नजर आई हैं. इसलिए फिल्म देखते हुए कई बार महसूस होता है कि कोई मॉडलिंग का शूट था जो गलती से 2 घंटे लंबा खिंच गया.

फिल्म के अंत में लिखा आता है- ‘लव’ बेफिक्र, ‘किस’ बेफिक्र, ‘लिव’ बेफिक्र...और चोपड़ा साब ने फिल्म भी बनाई एकदम बेफिक्र! न कहानी की फिक्र और न किरदारों की! इसीलिए शायद उन्होंने एक सीन में हीरोइन को कैप पहनाई है, जिस पर लिखा है- WHO CARES?

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